राजपूत काल
उत्तर-पश्चिमी भारत में आक्रामक और विस्तारवादी तुर्क जनजातियों का विस्तार था जिनके युद्ध का प्रमुख तरीका तेजी से आगे बढ़ना और पीछे हटना था। उत्तर-पश्चिमी भारत में गुर्जर प्रतिहारों के विघटन के कारण राजनीतिक अनिश्चितता के एक समय का उदय हुआ।
गजनवी (Ghaznavids)
- महमूद (998-1030) गजनी के सिंहासन पर बैठा।
- फिर्दुअसी, गजनी के राजसभा कवि थे। उनका लोकप्रिय कार्य “शाह नमः” ईरानी पुनर्जागरण में एक जल-विभाजक (वाटरशेड) था।
- महमूद ने मंदिरों के खजानों को लूटा एवं उन्हें ध्वस्त कर दिया। 1025 ईसवी में, उसने गुजरात में सोमनाथ मंदिर पर हमला किया और उसके खजाने को लूट लिया। उसने भारत पर 17 बार आक्रमण किया और हिन्दुशाही शासकों के विरुद्ध निरंतर लड़ाई लड़ी।
- महमूद की मृत्यु के साथ सेल्जुक साम्राज्य की स्थापना की गई थी।
राजपूत राज्य
प्रतिहार साम्राज्य के विभाजन के बाद राजपूताना राज्यों का निर्माण किया गया। इनमें से कुछ महत्वपूर्ण थे:
- कन्नौज के गहदावाला
- मालवा के परमार
- अजमेर के चौहान
कुछ अन्य महत्वपूर्ण राज्य जबलपुर के समीप कलचुरी(kalachuris), बुंदेलखंड में चंदेल (chandellas), गुजरात के चालुक्य (chalukyas), दिल्ली के तोमर (tomars) इत्यादि हैं।
राजपूतों ने हिन्दू धर्म एवं जैन धर्म की कुछ हद तक सहायता की। उन्होंने वर्ण प्रणाली एवं ब्राह्मणों के विशेषाधिकारों को भी कायम रखा।
तुर्की आक्रमण
- राजपूतों ने तुर्की जनजातियों के विरूद्ध एक मजबूत बचाव रखा, उन्होंने मुस्लिम व्यापारियों को अनुमति दी जिससे व्यापार एवं वाणिज्य में वृद्धि हुई।
- सेल्जुक साम्राज्य को ईरान में ख्वारिज्मी साम्राज्य से एवं घुर में घुरिड़ साम्राज्य से प्रतिस्थापित किया गया।
- जबकि चौहानों के अधिकारों में भी निरंतर वृद्धि हो रही थी, मुइज़्ज़ुदिन मुहम्मद ने गजनी को सिंहासन पर चढाया। दिल्ली के कब्जे के साथ, चौहान एवं घुरिड़ प्रत्यक्ष प्रतियोगिता में थे।
- मुहम्मद गोरी एवं पृथ्वीराज चौहान के बीच तारेन का पहला युद्ध (1191) – युद्ध में घुरिडों (ghurids) की हार हुई।
- मुहम्मद गोरी एवं पृथ्वीराज चौहान के बीच तारेन का दूसरा युद्ध (1192)– इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार हुई। इसके कारण दिल्ली एवं पूर्वी राजस्थान को तुर्की शासन के तहत रहना पड़ा।
- मुहम्मद गोरी ने पदों को कुतुबुद्दीन ऐबक के अधीन सौंपा, जिसने बाद में गुलाम वंश को स्थापित किया और दिल्ली सल्तनत की नींव का नेतृत्व किया। बक्थियार खिलजी को पूर्वी बेनारस के पद सौंपे गए थे।
अजमेर के चौहान
- चौहान, गुर्जर-प्रतिहारों के सामंतवादी थे।
- अजयराज चौहान, शाकम्बरी के राजा ने एक शहर की स्थापना की जिसे अजयमेरु कहा गया और बाद में इसे अजमेर के नाम से जाना गया।
- उनके उत्तराधिकारी विग्रहराज ने तोमर राजाओं से धिल्लिका (Dhillika) पर कब्जा कर लिया।
- पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद, राजवंश कमजोर पड़ गया।
- कुतुबुद्दीन ऐबक ने राजवंश को 1197 ईसवी में हराकर अंतिम वार के साथ निपटारा किया।
दिल्ली में तोमर
- तोमर, प्रतिहारों के सामंतवादी थे।
- उन्होंने 736 ईसवी में दिल्ली शहर की स्थापना की, 9वीं-12वीं शताब्दी के दौरान, दिल्ली के तोमरों ने वर्तमान दिल्ली एवं हरियाणा के हिस्सों पर शासन किया।
- महिपाल तोमर ने 1043 ईसवी में थानेश्वर, हंसी एवं नगरकोट पर कब्जा किया।
- चौहानों ने 12वीं शताब्दी के मध्य में दिल्ली पर कब्जा किया और तोमर उनके सामंतवादी बने।
मेवाड़
मेवाड़, पश्चिमी भारत में दक्षिण-केन्द्रीय राजस्थान राज्य का एक क्षेत्र है। इसमें वर्तमान जिले भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमन्द, उदयपुर, राजस्थान के झालावाड़ जिले का पिरावा तहसील, मध्य-प्रदेश के नीमच एवं मंदसौर तथा गुजरात के कुछ भाग शामिल हैं। यह क्षेत्र राजपूत-शासित मेवाड़ राज्य या उदयपुर राज्य का एक भाग था। 1568 में, अकबर ने मेवाड़ की राजधानी, चित्तौड़गढ़ पर कब्जा कर लिया।
महाराणा सांगा (1508 - 1528)
मेवाड़ के राणा सांगा सिसोदिया वंश से संबंधित थे जो इब्राहिम लोदी एवं बाबर के समकालीन थे। खानवा, 1527 का युद्ध बाबर एवं राणा सांगा के बीच लड़ा गया था, जिसमें बाबर की विजय हुई एवं उसने उत्तरी भारत में दृढपूर्वक मुग़ल शासन की स्थापना की।
महाराणा प्रताप (1572 - 1597)
मेवाड़ के राणा प्रताप, राणा सांगा की भांति ही सिसोदिया राजपूतों से तालुक रखते थे। वह अकबर के समकालीन थे। जब अकबर ने राणा प्रताप को जागीरदार बनाने और उन्हें अकबर के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु कईं राजदूत भेजे, राणा ने उन्हें अस्वीकृत कर दिया और अंबर के राजा मानसिंह I एवं महाराणा प्रताप के बीच 1576 में हल्दीघाटी का युद्ध लड़ा गया, जिसमें मुगलों द्वारा महाराणा प्रताप की हार हुई।
मारवाड़
- 1194 में, गोरी के महमूद ने कन्नौज के जयचंद को हराया। उनके वंशज, शेओजी ने, मारवाड़ के मन्दौर शहर में स्वयं अर्थात् अपने साम्राज्य की स्थापना की।
- 13वीं शताब्दी में राजपूतों के राठौर वंश द्वारा जोधपुर राज्य की खोज की गई, जो कन्नौज के गहदवाला राजाओं के वंश से होने का दावा करते हैं।
- भारतीय राजसी राज्य जोधपुर के राठौड़ शासक, 8वीं शताब्दी में स्थापित हुए एक प्राचीन राजवंश के शासक थे। हालांकि, वंश का भाग्योदय 1459 में जोधपुर में राठौड़ राजवंश के प्रथम शासक राव जोधा के द्वारा किया गया था।
बुंदेलखंड के चंदेल
- इनकी स्थापना 9वीं शताब्दी में की हुई। इस राजवंश के प्रवर्तक हर्षदेव थे।
- बुंदेलखंड को जेजाकाभुक्ति के नाम से भी जाना जाता था।
- प्रमुख यसोवार्मन के काल के दौरान चंदेल की राजधानी महोबा थी।
- कालिंजर उनका महत्वपूर्ण किला था।
- चंदेलों ने 1050 ईसवी में सबसे प्रसिद्ध कंदरिया महादेव मंदिर एवं खजुराहो में अनेक भव्य मंदिरों का निर्माण करवाया। विद्याधर कंदरिया महादेव मंदिर की स्थापना हेतु प्रसिद्ध है।
- अंतिम चंदेल शासक परमल को 1203 ईसवी में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा हराया गया।
मालवा के परमार
- वे अग्निवंशी राजपूत राजवंश का एक भाग थे। वे 9-10वीं शताब्दी में स्थापित किए गए, राष्ट्रकूट के जागीरदार थे।
- उन्होंने धर को अपनी राजधानी बनाया। उनके शासन के दौरान भोज एक महत्वपूर्ण शासक था।
- बाद के परमार शासकों ने उनके शत्रुओं द्वारा कईं बार धर को लूटने के बाद मांडू को अपनी राजधानी बनाया।
- महालाकदेव, अंतिम परमार राजा थे, जिन्हें 1305 ईसवी में दिल्ली के अलाउद्दीन खिलजी के सैन्य-बलों द्वारा हराया एवं मारा गया।
गुजरात के चालुक्य
- चालुक्य राजवंश ने उत्तर-पश्चिम भारत के वर्तमान में गुजरात एवं राजस्थान नामक स्थानों पर, 940 ईसवी एवं c. 1244 ईसवी के बीच शासन किया। उनकी राजधानी अनाहिलावादा (आधुनिक पाटन) में स्थित थी।
- मुलरजा इस राजवंश के प्रवर्तक थे। भीम I के शासन के दौरान, महमूद गजनी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण किया और उसे लूट लिया।
- दिगम्बर जैनों के लिए मुलवसतिका मंदिर तथा श्वेताम्बर जैनों के लिए मूलनाथ-जिनदेव मंदिर का निर्माण भी मुलरजा ने करवाया था।
- दिलवर मंदिर एवं मोढेरा सूर्य मंदिर का निर्माण भी भीम I के राज्यकाल के दौरान किया गया था।
- रानी-की-वाव का आरम्भ रानी उदयमती द्वारा किया गया था।
त्रिपुरी के कलचुरी
- छेदी के कलचुरी ने, जबलपुर के समीप उनकी राजधानी त्रिपुरी से 7वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान केन्द्रीय भारत के हिस्सों पर शासन किया।
- लक्ष्मीकर्ण के शासनकाल के दौरान राज्य अपनी चरम सीमा पर पहुंचा, जिसे कईं पडोसी राज्यों के खिलाफ सैन्य अभियानों के बाद चक्रवर्तिन का शीर्षक मिला।
- अमरकंटक में कर्ण मंदिर का निर्माण लक्ष्मीकर्ण (1041 – 1173 ईसवी) द्वारा करवाया गया।
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