राज्य परीक्षाओं में व्याकरण भाग से विभिन्न प्रश्न पूछे जाते है ये प्रश्न आप बहुत आसानी से हल कर सकते है यदि आप हिंदी भाषा से सम्बंधित नियमों का अध्ययन ध्यानपूर्वक करें । यहां बहुत ही साधारण भाषा में विषय को समझाया गया है तथा विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से भी अवधारणा को स्पष्ट किया गया है प्रस्तुत नोट्स को पढ़ने के बाद आप रस सम्बंधित विभिन्न प्रश्नों को आसानी से हल कर पाएंगे।
हिंदी भाषा: रस पर स्टडी नोट्स
रस: काव्य में रस का अर्थ आनंद होता है। वह आनंद जो श्रोता या पाठक को आत्म विभोर कर दे। कविता पढने व सुनने से जो आनंद की अनुभूति होती है,उसे ही रस कहते हैं। रस के चार अवयव हैं-
1) स्थायी भाव
2) विभाव
3) अनुभाव
4) व्यभिचारी या संचारी भाव
1) स्थायी भाव: स्थायी भाव का मतलब है प्रधान भाव। मन के विकार को 'भाव' कहते हैं। जो भाव चिरकाल तक चित्त में स्थिर रहता है, उस आनंद के मुलभुत भाव को स्थायी भाव कहते हैं। इनकी संख्या दस होती है।
2) विभाव:- स्थायी भावों के उद्बोधक कारण को विभाव कहते हैं । विभाव के दो भेद हैं-
(क) आलंबन विभाव - जिसका सहारा पाकर स्थायी भाव जागते हैं
(ख) उद्दीपन विभाव - जिन वस्तुओं को देखकर स्थायी भाव उत्पन्न होने लगता है
उदाहरण- पुष्प वाटिका में राम और जानकी घूम रहे हैं। जानकी के साथ उनकी सखियाँ हैं और राम के साथ लक्ष्मण। यहाँ जानकी के ह्रदय में जाग्रत 'रतिभाव' (स्थायी भाव) के 'आलंबन विभाव' हैं-राम। जानकी की सखियाँ जो उन्हें राम के दर्शन में सहायता पंहुचा रही हैं, 'उद्दीपन विभाव' हैं।
3)अनुभाव: आलंबन और उद्दीपन विभावो के कारण उत्पन्न भावो को बाहर प्रकाशित करने वाले कार्य 'अनुभाव' कहलाते है।
जैस:-राम के दर्शन से सीता का सकुचाना या चकित होना अनुभाव है। ऐसे स्थल पर राम या सीता किसी का एक-दुसरे के प्रति कटाछपात, संकेत, रोमांच, लज्जा आदि अनुभाव के अंतर्गत आयंगे। यहाँ राम सीता के अनुभावो के आश्रय हो सकते है और सीता, राम के अनुभावो की अर्थात ह्रदय में संचित रति आदि स्थायी भावो का कार्य,मन और वचन की चेष्टा के रूप में प्रकट होना ही 'अनुभाव' है। अनुभाव के तीन भेद हैं:-
(क) कायिक
(ख) मानसिक
(ग) वाचिक
4) व्यभिचारी या संचारी भाव: ये संचारी भाव स्थायी भावों के सहायक हैं, जो अनुकूल परिस्थितियो में घटते- बढ़ते हैं। पानी में उठने वाले और आप ही विलीन होने वाले बुलबुले के समान संचारी भाव अलग- अलग रासो में हो सक्त्र हैं। इसकी संख्या 33 है।
जैसे- गर्व, दीनता ग्लानि, शंका आदि।
रसों की संख्या:- रसों की संख्या दस होती है। उनके स्थायी भाव इस प्रकार है:-
प्रमुख रस एवं उनके उदाहरण:
करुण रस - इस रस का जन्म आत्मीय या प्रियजनों का विनाश ,वियोग,धर्म पर संकट , द्र्व्यनाश आदि अनिष्ट सूचक कार्यों से होता है।इसका स्थायी भाव शोक होता है।
उदाहारण:
"अभी तो मुकुट बंधा था माथ,
हुए अब ही हल्दी के हाथ,
खुले भी न थे लाज के बोल
खिले भी न चुम्बन शून्य कपोल।
हाय! रुक गया यहाँ संसार
बना सिंदूर अँगार।"
वीर रस: ह्रदय के उमड़ते हुए अत्यधिक उत्साह से ही इस रस की उत्पति होती है।इसका स्थायी भाव उत्साह होता है।
उदहारण:
"चमक उठी सन सत्तावन में वह तलवार पुरानी थी।
बुंदेले हरबोलों के मुख हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।"
रोद्र रस: शत्रु द्वारा अपमान, शत्रु का सम्मुख आ जाना, किसी के द्वारा बुराई या गुरुजनो की निन्दा रोद्र रस को जन्म देती है। इसका स्थायी भाव क्रोध होता है।
उदहारण:
"कहा कैकेयी ने सक्रोध ,दूर हो अरे निर्बोध !
श्रृंगार रस: रति नामक स्थायी भाव का जब विभाव, अनुभाव और संचारी भाव से संयोग होता है, तब श्रृंगार रस उत्पन्न होता है। इसके दो भेद हैं:-
1):- संयोग श्रृंगार
2):- वियोग श्रृंगार
संयोग श्रृंगार - पारस्परिक प्रेम प्रवाह में बहकर जब नायक और नायिका एक दुसरे के दर्शन, मिलन, स्पर्श और आलाप आदि में संलग्न होते हैं, तब इस अवस्था की गणना श्रृंगार में की जाती है।
उदाहरण:-
"बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करे, भोहनि हँसे, देन कहे नट जाय।।"
वियोग श्रृंगार:- उत्कट अनुराग होने पर भी जहाँ प्रिय का समागम प्राप्त न हो वहां वियोग श्रृंगार होता है।
उदाहरण:
"मधुबन तुम कत रहत हरे?
विरह वियोग श्यामसुंदर के ठाढ़े क्यों न जरे?"
हास्य रस: जब किसी की विचित्र वेश-भूषा,हाव -भाव को देखकर हंसी आती हो ,वहाँ हास्य रस होता है। इसका स्थायी भाव हास है।
उदाहरण:
"जब धूमधाम से जाती है बारात किसी की सजधज कर।
मन करता धक्का दे दुल्हे को,जा बेठुं घोड़े पर।।
सपने में ही मुझको अपनी शादी होती दिखती है।
भयानक रस: किसी भयंकर वस्तु के दर्शन , भयंकर ध्वनि श्रवण आदि से भयानक रस की उत्पत्ति होती है। इसका स्थायी भाव भय होता है।
उदाहरण:
"एक ओर अजगरहि लखि, एक ओर मगराय।
विकल बटोही बीच में, परयो मुरछा खाय ।।"
वीभत्स रस: जब रक्त,मांस , मज्जा आदि घर्णित वस्तुएँ तथा नेतिक पतन, आदि देखने में आएँ तब मन में जो ग्लानि पैदा होती है, वही वीभत्स रस का रूप ग्रहण कर लेती है। इसका स्थायी भाव जुगुप्सा होता है।
उदाहरण:
"सिर पर बैठ्यो काग, आँख दोउ खात निकारत,
खींचत जीभहि स्यार, अतिही आनंद उर धारत,
गिद्ध जांध को खोद- खोद के मांस उकारत,
स्वान अंगुरिन काट-काट के खात विदारत।"
अद्भूत रस:- आश्चर्य जनक अथवा विचित्र वस्तुओ को देखने से अद्भूत रस की उत्पत्ति होती है। इसका स्थायी भाव आश्चर्य होता है।
उदहारण:
"बिनु पग चले सुने बिनु काना,
कर बिनु कर्म करे विधि नाना।
आनन् रहित सकल रेड भोगी,
बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी।"
शांत रस: जहाँ सुख- दुःख, चिन्ता, राग, द्वेष, कुछ भी नही है, वहाँ शांत रस होता है। इसका स्थायी भाव निर्वेद होता है।
उदहारण:
"सुन मन मूढ़! सिखावन मेरो।
हरिपद- विमुख लह्यो न काहू सुख,
सठ यह समुझ सवेरो।"
वात्सल्य रस: शिशुओ की क्रीडाओ से आल्हादित, जनक जननी के ह्रदय में जो आनंद की भावना जागृत होती है, उसी से वात्सल्य रस उत्पन्न होता है। इसका स्थायी भाव स्नेह होता है।
उदाहरण:
" मैया मैं नहि माखन खायॊ।
ख्याल परे ये सखा सबे मिलि , मेरे मुख लपटायो।
देखि तुही सींके पर भाजन ऊँचे पर लटकायो।
तू ही निरखि नान्हें कर अपने मैं कैसे करिपायो।।"
UPSSSC VDO 2018 Test Series (Based on the same pattern) - Attempt Now
शुभकामनाये
टीम ग्रेडअप
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