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गुप्तकाल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग (Gupta Period Golden Age of Indian History in Hindi)

By BYJU'S Exam Prep

Updated on: September 25th, 2023

प्राचीन भारतीय इतिहास में गुप्त काल (Gupta Period) का श्रेष्ठ स्थान है। गुप्त सम्राटों ने उत्तर भारत को एक राजनीतिक स्थिरता प्रदान की थी। गुप्त साम्राज्य पूरे 200 वर्षों तक रहा। एक के बाद एक योग्य गुप्त सम्राटों ने अपने साम्राज्य को दूर दूर तक फैलाया। इन्होंने लगभग पूरे भारतवर्ष को एक सूत्र में बांध दिया था। गुप्त काल में हिन्दू धर्म को उन्नति मिली तो अन्य धर्मो का भी विकास हुआ। यही कारण हैं कि गुप्तकाल को भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग कहा जाता है।

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गुप्तकाल भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग (Gupta Period Golden Age of Indian History)

गुप्त साम्राज्य प्राचीन भारत का एक हिन्दू साम्राज्य था। जिसने लगभग संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया। गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त था और अंतिम शासक विष्णुगुप्त था। इतिहासकारों द्वारा इस अवधि को भारत का स्वर्ण युग माना जाता है। गुप्तकाल को प्रचीन भारत के इतिहास मे इतिहाकारों ने स्वर्ण युग माना है। यही कारण हैं कि गुप्त युग की सांस्कृतिक विशेषताएं दूसरे युगों के लिए आर्दश बनी।

महान सम्राटों का युग- चन्द्रगुप्त प्रथम, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त द्वितीय तथा स्कन्दगुप्त इस युग के महान शासक थे। समुद्रगुप्त द्वारा की गई महान सैनिक विजयों के कारण उसे ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है। चन्द्रगुप्त द्वितीय को ‘विक्रमादित्य’ की उपाधि प्राप्त थी।

आर्थिक सम्पन्नता का युग- गुप्तकाल में आर्थिक क्षेत्र में अत्यधिक उन्नति हुई थी। आन्तरिक शान्ति, कुशल प्रशासनिक व्यवस्था तथा यातायात की समुचित व्यवस्था के कारण भारत के आन्तरिक तथा बाह्य व्यापार को पर्याप्त प्रोत्साहन मिला। गुप्तकाल में भारत के चीन, जावा, बर्मा (म्यांमार) तथा रोम आदि देशों से व्यापारिक सम्बन्ध थे।

धार्मिक सहिष्णुता की स्थापना- गुप्त सम्राट वैष्णव धर्म के अनुयायी थे, परन्तु वे बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म का भी आदर करते थे। प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म के अनुसार उपासना तथा पूजा-पाठ की स्वतन्त्रता थी।

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लोक कल्याणकारी राज्य- गुप्तकाल के शासक केवल निरंकुशता में ही विश्वास नहीं करते। थे वरन् उनके अन्दर लोक कल्याण की भी भावना थी। चीनी यात्री फाह्यान के यात्रा विवरण से स्पष्ट हो जाता है कि गुप्त सम्राट राज्य की आय का एक विशाल भाग जन या लोक कल्याण में खर्च करते थे।

विज्ञान का विकास- ज्योतिष, रसायनशास्त्र, गणित तथा खगोलशास्त्र का इस काल में अपूर्व विकास हुआ था। दशमलव प्रणाली की खोज इस काल में ही हुई थी। आर्यभट्ट, वराहमिहिर तथा नागार्जुन जैसे श्रेष्ठ वैज्ञानिक तथा खगोलशास्त्री इस काल में ही हुए थे।

साहित्य का अपूर्व विकास- गुप्तकाल में साहित्य का अपूर्व विकास हुआ। कालिदास, विशाखदत्त तथा हरिषेण इस काल के महान साहित्यकार थे।

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ललित कलाओं का अपूर्व विकास- गुप्तकाल ललित कलाओं का भी स्वर्ण युग माना जाता है। मूर्तिकला के क्षेत्र में गुप्त काल में भरहुत, अमरावती, सांची तथा मथुरा कला की मूर्तिर्यों में कुषाण कालीन प्रतीक देखने को मिलते हैं। स्थापत्य के क्षेत्र में देवगढ़ का दशावतार मंदिर, भूमरा का शिव मंदिर बोध गया और सांची के उत्कृष्ट स्तूपों का निर्माण भी इसी काल में हुआ है। चित्रकला का भी इस युग में अपूर्व विकास हुआ। अजन्ता की गुफाओं केअधिकांश चित्र इस युग में ही बनाये गये थे। चित्रकला के क्षेत्र में अजंता, एलोरा तथा बाघ की गुफाओं में की गई, चित्रकारी तथा फ्रेस्को चित्रकारी परिष्कृत कला के उदाहरण हैं।

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