भारत का पहला स्लेंडर लोरिस अभ्यारण्य
- हाल ही में देश में पहली बार, तमिलनाडु सरकार ने करूर और डिंडीगुल जिलों में 11,806 हेक्टेयर में फैले कडुवुर स्लेंडर लोरिस अभयारण्य को 12 अक्टूबर 2022, को अधिसूचित किया है।
- स्लेंडर लॉरिस सिर्फ भारत और श्रीलंका में ही मिलता है।
- हालांकि लॉरिस की अन्य प्रजातियां दक्षिण एशियाई देशों में जैसे- मलेशिया, इंडोनेशिया, जकार्ता आदि जगहों पर मिलती हैं।
- कुछ प्रजातियाँ अफ्रीका में भी मिलती हैं।
- स्लेंडर लॉरिस की दो प्रजातियां होती हैं:
1. रेड स्लेंडर लॉरिस (Red Slender Loris)
2. ग्रे स्लेंडर लॉरिस (Grey Slender Loris) - लाल पतला लोरिस श्रीलंका में पाया जाता है, और ग्रे पतला लोरिस श्रीलंका और भारत दोनों में पाया जाता है।
- ये अपना ज्यादा समय पेड़ों के ऊपर बिताते हैं धीमे-धीमे चलते हैं इसलिए इन्हें स्लो लॉरिस (Slow Lorris) भी बुलाते हैं।
- भारत में स्लेंडर लॉरिस को अलग-अलग भाषाओं में अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है।
- तेलुगू में देवांगा पिल्ली या आरावी पापा, तुलू में काडा नारामणि, मराठी में वानर मनुष्य, केरल में कुट्टी थेवांगु एवं कट्टू पापा, श्रीलंका में इन्हें उनआहापुलुवाला बुलाते हैं।
- स्लो लॉरिस के शरीर में एक ताकतवर जहर होता है जो उसके कुहनियों के पास स्थित ग्लैंड्स से निकलता है वो अपने शिकार को मारने से पहले ये जहर अपने दांतों पर रगड़ते हैं, उसके बाद शिकार पर हमला करते हैं।
- अगर जहर वाले दांत के साथ स्लो लॉरिस इंसान को काट ले तो इन्सान बेहोश हो जायेगा।
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