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स्वराज पार्टी | Swaraj Party in Hindi
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 25th, 2023
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स्वराज पार्टी या कांग्रेस-खिलाफत स्वराज्य पार्टी का गठन 1 जनवरी 1923 को सी आर दास और मोतीलाल नेहरू ने किया था। स्वराज पार्टी का गठन विभिन्न महत्वपूर्ण घटनाओं जैसे असहयोग आंदोलन की वापसी, भारत सरकार अधिनियम 1919 और 1923 के चुनावों के बाद हुआ। इस पार्टी का गठन आधुनिक भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है और इसे आईएएस परीक्षा के लिए अच्छी तरह से पढ़ा जाना चाहिए।
निम्नलिखित दिए गए लेख में आप स्वराज पार्टी के उद्देश्यों के बारे में पढ़ सकते हैं, स्वराज पार्टी की उपलब्धियां क्या थीं, स्वराज पार्टी क्यों बनाई गई, इसके विघटन के कारण भी| पढ़े Swaraj Party in Hindi और PDF भी डाउनलोड करें|
Table of content
स्वराज पार्टी – पृष्ठभूमि | Swaraj Party Background
- 1922 में घटित चोरी चोरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया था। जिस कारण कांग्रेस का एक गट असंतुष्ट था। कांग्रेस चाहती थी कि देश में असहयोग आंदोलन के स्थगन के बाद कुछ अलग कार्यों को बढ़ायें, परन्तु कांग्रेस के दूसरे गुट का मत था कि 1919 के भारत शासन अधिनियम के आधार पर होने वाले चुनावों में भाग लिया जाए तथा विधान परिषदों में जाकर सरकार के कार्यों में रुकावट पैदा की जाए। लेकिन गांधी समर्थक गुट इस बात से सहमत नहीं था और वह चुनावों में भागीदारी करने के पक्ष में नहीं था।
- जब दिसंबर 1922 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन गया में आयोजित किया गया। इस अधिवेशन की अध्यक्षता देशबंधु चितरंजन दास जबकि मोती लाल नेहरू इस अधिवेशन के महामंत्री थे।
- मोती लाल नेहरू ने एक प्रस्ताव रखा कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को चुनाव में भाग लेकर विधान परिषद में प्रवेश करना चाहिए और विधान परिषद में प्रवेश करके सरकार की नीतियों का विरोध करना चाहिए। लेकिन महात्मा गांधी के समर्थक सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. राजेंद्र प्रसाद जैसे लोगों ने इस प्रस्ताव का तीखा विरोध किया और यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका।
स्वराज पार्टी PDF
- कांग्रेस के इस अधिवेशन के बाद चितरंजन दास व मोती लाल नेहरू ने अपने पदों से इस्तीफा दे दिया और ‘कांग्रेस खिलाफत स्वराज पार्टी’ के गठन की घोषणा की। 1 जनवरी, 1923 को स्वराज पार्टी (Swaraj Party) का गठन हुआ। जिसके अध्यक्ष चितरंजन दास और सचिव मोतीलाल नेहरू थे।
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स्वराज पार्टी: कांग्रेस और उपलब्धियां, Swaraj Party Congress and its Achievements
- मौलाना अबुल कलाम आजाद की अध्यक्षता में वर्ष 1923 में दिल्ली में कांग्रेस का एक विशेष अधिवेशन आयोजित हुआ। इस अधिवेशन में स्वराज पार्टी एवं उसके कार्यक्रमों को कांग्रेस के अंतर्गत मान्यता प्रदान कर दी गई।
- वर्ष 1923 में ही कांग्रेस का काकीनाडा में वार्षिक अधिवेशन आयोजित हुआ तब कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने व चुनाव में मतदान करने की अनुमति भी प्रदान कर दी गई थी।
- इसके बाद स्वराज पार्टी ने अपना चुनावी घोषणा पत्र जारी किया और उसमें इस बात के लिए प्रतिबद्धता जाहिर की कि वह केंद्रीय और प्रांतीय दोनों ही विधान मंडलों में भागीदारी करके सरकार के कामकाज में रूकावट पैदा करेगी।
- वर्ष 1923 में हुए चुनावों में स्वराज पार्टी ने केंद्रीय विधान मंडल की कुल 101 सीटों में से 42 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
- साथ ही प्रांतीय विधान मंडलों के चुनाव में स्वराज पार्टी ने मध्य प्रांत में पूर्ण बहुमत प्राप्त किया था, और बंगाल में वह सबसे बड़े दल के रूप में सामने आई थी।
- स्वराज पार्टी को उत्तर प्रदेश और बंबई प्रांतों में भी संतोषजनक सफलता प्राप्त हुई थी। वर्ष 1925 में विट्ठल भाई पटेल केंद्रीय विधान परिषद के अध्यक्ष चुने गए।
- स्वराज पार्टी ने कपास पर लगे उत्पादक शुल्क को समाप्त करवाने तथा नमक कर में कटौती करवाने में सफल रही थी।
स्वराज पार्टी का अंत | End of Swaraj Party
- जून 1925 में देशबंधु चितरंजन दास की मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु के बाद से स्वराज पार्टी निरंतर कमजोर होने लगी थी। सांप्रदायिकता, उत्तरदायित्व इत्यादि विभिन्न मामलों को लेकर स्वराज पार्टी में अनेक गुट बनने लगे थे।
- चितरंजन दास की मृत्यु के बाद ये गुट अधिक प्रभावी हो गए और इन्होंने या तो स्वराज पार्टी छोड़ दी या फिर किसी नए दल का गठन कर लिया। जैसे मोतीलाल नेहरू से रुष्ट होकर लाला लाजपत राय और मदन मोहन मालवीय ने स्वराज पार्टी से त्यागपत्र दे दिया था।
- स्वराज पार्टी में उपजी इस संकट की स्थिति के परिणाम स्वरूप कांग्रेस का नेतृत्व फिर से महात्मा गांधी के हाथों में आ गया था। इस प्रकार, स्वराज पार्टी अपने उद्देश्यों में पूर्णतया सफल तो नहीं हो सकी थी, लेकिन उसने कांग्रेस को विधान परिषद के भीतर प्रवेश करके विरोध करने के लिए तैयार कर लिया था।
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