मानक हिंदी का स्वरुप (Form of Standard Hindi in Hindi)
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 13th, 2023

मानक हिंदी से तात्पर्य, खड़ी बोली से विकसित हुई और देवनागरी लिपि में लिखी जाने वाली उस मानक भाषा से है जिसे उच्च हिंदी या परिनिष्ठित हिंदी कहा जाता है। यही हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा, राजभाषा तथा संपर्क भाषा है। मानक हिंदी ही शिक्षा, प्रशासन, वाणिज्य, समाचार-पत्र, कला और संस्कृति की विभिन्न विधाओं के लिये आदान प्रदान का माध्यम है।
इस लेख में हम आपको मानक हिंदी का स्वरुप (Form of Standard Hindi) के बारे में सम्पूर्ण जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं। उम्मीदवार नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करके मानक हिंदी का स्वरुप से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी का पीडीएफ़ हिंदी में डाउनलोड कर सकते हैं।
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मानक हिंदी का स्वरुप (Form of Standard Hindi)
‘मानक भाषा’ किसी भाषा के उस स्वरूप को कहते हैं जो उस भाषा के पूरे क्षेत्र में शुद्ध माना जाता है तथा जिसे उस प्रदेश का शिक्षित और शिष्ट समाज अपनी भाषा का आदर्श रूप मानता है और प्रायः सभी औपचारिक परिस्थितियों में, लेखन , प्रशासन और शिक्षा, के माध्यम के रूप में हर संभव उसी भाषा को प्रयोग करता है।
आज हिंदी का जो मानक स्वरूप निर्धारित हो पाया है वह लगभग दस शताब्दियों का परिणाम है। सही स्तर पर यह प्रक्रिया भारतेंदु युग से प्रारंभ हुई थी। मानक हिंदी का मूल आधार ‘खड़ी बोली’ है। हिंदी की विभिन्न शैलियों एवं बोलियों में से एक ‘खड़ी बोली’ ने मानक हिंदी की ओर अग्रसर होने के क्रम में शब्दावली के स्तर पर विभिन्न स्रोतों का सहारा लिया है।
शिक्षा, प्रशासन, वाणिज्य, समाचार-पत्र, कला और संस्कृति की विभिन्न विधाओं के लिये आदान प्रदान का माध्यम मानक भाषा के बाहरी रूप या बहिरंग आयाम हैं। जबकि अंतरंग आयामों के अंतर्गत मानक हिंदी की भाषायी संरचना तथा व्याकरण व्यवस्था की दृष्टि से उसके स्वरूप को देख सकते हैं। इन्हीं आयामों के कारण हिंदी निरन्तर विकसित और परिष्कृत होती रही है।
भाषाओं को मानक रूप देने की भावना जिन कारणों से विश्व में जाग्रत हुई उनमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं :
1. सामाजिक आवाश्यकता
2. प्रेस का विकास और प्रसार
3. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास
4. सामाजिक एकरूपता का रूझान
5. स्व अस्मिता
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भाषा का मानकीकरण
भाषा के मानकीकरण से तात्पर्य भाषा को एक मानक रूप प्रदान करना होता है।जिसमें भाषा के सभी विकल्पों में एक को मानक मान लिया गया हो तथा जिस भाषा रूप को उस भाषा के सारे बोलने वाले मानक भाषा के रूप में स्वीकार करते हों। विश्व की अधिकांश समुन्नत भाषाओं का मानक रूप होता है, जबकिअवभाषा (वर्नाक्यूलर), बोली आदि का मानक रूप नहीं होता है। मानकीकरण के कारण ही कोई भाषा अपने पूरे क्षेत्र में शब्दावली तथा व्याकरण की दृष्टि से समरुप मणि जाती है, इसीलिए वह सभी लोगों के लिए बोधगम्य भी होती है। साथ ही वह सभी लोगों द्वारा मान्य होती है अतः अन्य भाषा रूपों की तुलना में मानक भाषा अधिक प्रतिष्ठित भी होती है। भाषा की मानकता में निम्नांकित बातें शामिल होती हैं:
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- भाषा की मानकता का आधार कोई व्याकरणिक या भाषावैज्ञानिक तथ्य अथवा नियम नहीं होते है। इसका मूल आधार सामाजिक स्वीकृति है। समाज विशेष के लोग भाषा के जिस रूप को अपनी मानक भाषा मान लें, उनके लिए वही मानक भाषा हो जाती है।
- भाषा की मानकता का प्रश्न तत्त्वतः भाषाविज्ञान का न होकर समाज-भाषाविज्ञान होता है। भाषाविज्ञान भाषा की संरचना का अध्ययन करता है और संरचना मानक भाषा की भी होती है और अमानक भाषा की भी होती है। उसका इससे कोई संबंध नहीं कि समाज किसे शुद्ध मानता है और किसे नहीं। इस तरह मानक भाषा की संकल्पना को संरचनात्मक न कहकर सामाजिक कहना उपयुक्त होगा।
- जब हम समाज विशेष से किसी भाषा-रूप के मानक माने जाने की बात करते हैं, तो समाज से आशय होता है सुशिक्षित और शिष्ट लोगों का वह समूह जो पूरे भाषा-भाषी क्षेत्र में प्रभावशाली एवं महत्त्वपूर्ण माना जाता है। वस्तुतः उस भाषा-रूप की प्रतिष्ठा उसके उन महत्त्वपूर्ण प्रयोक्ताओं पर ही आधारित होती है। दूसरे शब्दों में उस भाषा के बोलनेवालों में यही वर्ग एक प्रकार से मानक वर्ग होता है।
- समाज द्वारा मान्य होने के कारण भाषा के अन्य प्रकारों की तुलना में मानक भाषा की अधिक प्रतिष्ठित होती है। इस तरह मानक भाषा सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है।
- सामान्यत- मानक भाषा मूलतः किसी देश की राजधानी या अन्य दृष्टियों से किसी महत्त्वपूर्ण केन्द्र की बोली होती है, जिसे राजनीतिक अथवा धार्मिक अथवा सामाजिक कारणों से प्रतिष्ठा और स्वीकृति प्राप्त हो जाती है।
- बोली का प्रयोग अपने क्षेत्र तक सीमित रहता है, किंतु मानक भाषा का क्षेत्र अपने मूल क्षेत्र के भी बाहर अन्य बोली-क्षेत्रों में भी किया जाता है।
- यदि किसी भाषा का रूप मानक है तो साहित्य में, शिक्षा के माध्यम के रूप में, अंतःक्षेत्रीय प्रयोग में तथा सभी औपरचारिक परिस्थितियों में उस मानक रूप का ही प्रयोग होता है, अमानक रूप या बोली आदि का प्रयोग नहीं होता है।
- किसी भाषा के बोलने वाले अन्य भाषा-भाषियों के साथ प्रायः उस भाषा के मानक रूप का ही प्रयोग करते हैं, बल्कि किसी बोली का अथवा अमानक रूप का उपयोग नहीं करते हैं।
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