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भारत में दहेज प्रथा – कानून, दुष्प्रभाव

By BYJU'S Exam Prep

Updated on: September 25th, 2023

दहेज प्रथा (Dowry System) एक गंभीर सामाजिक बुराई है जिसके कारण समाज में महिलाओं के प्रति यातनाएँ और अपराध उत्पन्न हुए हैं और साथ ही भारतीय वैवाहिक पद्धति प्रदूषित हुई है। दहेज शादी के समय दुल्हन के ससुराल वालों को लड़की के परिवार द्वारा नकद या वस्तु के रूप में किया जाने वाला भुगतान है। सरकार ने दहेज प्रथा को मिटाने के लिये तथा बालिकाओं की स्थिति के उत्थान के लिये दहेज निषेध अधिनियम 1961 में बनाया था परन्तु सामाजिक प्रवृत्ति के कारण यह कानून हमारे समाज में वांछित परिणाम देने में विफल रहा है।

भारत में दहेज प्रथा (Dowry System in India)

दहेज का अर्थ है जो सम्पत्ति, विवाह के समय वधू के परिवार की तरफ़ से वर को दी जाती है। दहेज को उर्दू में जहेज़ कहते हैं। यूरोप, भारत, अफ्रीका और दुनिया के अन्य भागों में दहेज प्रथा का लंबा इतिहास है। भारत में इसे दहेज, हुँडा या वर-दक्षिणा के नाम से भी जाना जाता है तथा वधू के परिवार द्वारा नक़द या वस्तुओं के रूप में यह वर के परिवार को वधू के साथ दिया जाता है। आज के आधुनिक समय में भी दहेज़ प्रथा नाम की बुराई हर जगह फैली हुई है। पिछड़े भारतीय समाज में दहेज़ प्रथा अभी भी विकराल रूप में है।

दहेज प्रथा का दुष्प्रभाव

भारत में दहेज़ प्रथा एक गंभीर सामाजिक बुराई के रूप में समाज में ब्याप्त है जिसके निम्नलिखित दुष्प्रभाव है:

1. लैंगिक भेदभाव

दहेज प्रथा के कारण महिलाओं को एक दायित्व के रूप में देखा जाता है और उन्हें अक्सर अधीनता हेतु विवश किया जाता है तथा उन्हें शिक्षा या अन्य सुविधाओं के संबंध में दूसरे दर्जे की सुविधाएँ दी जाती हैं।

2. महिलाओं के कॅरियर को प्रभावित करना

दहेज प्रथा के लिये कार्यबल में महिलाओं की खराब उपस्थिति और इसके परिणामस्वरूप वित्तीय स्वतंत्रता की कमी आ जाती है। जिससे महिलाओं का कॅरियर को प्रभावित होता है।

3. दहेज़ के लिए महिलाओं का काम पर जाना

दहेज में मदद के लिये अपनी बेटियों को काम पर भेजते हैं ताकि वे कुछ पैसे कमा सकें।मध्यम और उच्च वर्ग के परिवार अपनी बेटियों को नियमित रूप से स्कूल तो भेजते हैं लेकिन कॅरियर विकल्पों पर ज़ोर नहीं देते है।

4. महिलाओ का अविवाहित रह जाना

देश में लड़कियों की एक बेशुमार संख्या शिक्षित और पेशेवर रूप से सक्षम होने के बावजूद अविवाहित रह जाती है क्योंकि उनके माता-पिता विवाह पूर्व दहेज की मांग को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं।

5. महिलाओं का वस्तुकरण होना

समकालीन दहेज दुल्हन के परिवार द्वारा शक्तिशाली संबंध और पैसा बनाने के अवसरों हेतु एक निवेश की तरह है। जो कि महिलाओं का वस्तुकरण करता है।

6. महिलाओं के खिलाफ अपराध

कुछ मामलों में दहेज प्रथा महिलाओं के खिलाफ अपराध को जन्म देती है, इसमें भावनात्मक शोषण और चोट से लेकर मौत तक शामिल है।

दहेज प्रथा के विरुद्ध कानून

  • दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है।
  • दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-A जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।
  • धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं।
  • यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-B के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

भारत में दहेज के कारण हत्याएँ

देश में औसतन हर एक घंटे में एक महिला दहेज संबंधी कारणों से मौत का शिकार होती है। वर्ष 2007 से 2011 के बीच इस प्रकार के मामलों में काफी वृद्धि देखी गई है।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार विभिन्न राज्यों से वर्ष 2012 में दहेज हत्या के 8,233 मामले सामने आए हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार 2020 में करीब 7,000 हत्याएं दहेज की वजह से हुईं, यानी करीब 19 महिलाएं हर रोज मारी गईं है। इसके अलावा 1,700 से ज्यादा महिलाओं ने दहेज से जुड़े कारणों की वजह से आत्महत्या कर ली है। आंकड़ों का औसत बताता है कि प्रत्येक घंटे में एक महिला दहेज की बलि चढ़ रही है। यदि विवाह के 7 साल के अन्दर दहेज प्रताड़ना से डेथ होती हैं तो वो दहेज हत्या मानी जाती हैं।

दहेज प्रथा न केवल अवैध है बल्कि समाज में अनैतिक भी है। इसलिये दहेज प्रथा की बुराइयों के प्रति समाज की अंतरात्मा को पूरी तरह से जगाने की ज़रूरत है ताकि समाज में दहेज की मांग करने वालों की प्रतिष्ठा कम हो जाए और इस सामजिक बुराई को जड़ से समाप्त किया जा सके।

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