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सूचना का अधिकार (RTI) – Right to Information Act
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 25th, 2023
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम भारतीय संसद द्वारा 15 जून 2005 को अधिनियमित किया गया था। और पूर्ण रूप से 12 अक्टूबर 2005 को लागू कर दिया गया था। सूचना का अधिकार से आशय , सूचना पाने का अधिकार है। जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला देश अपने नागरिकों को प्रदान करता है।सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को, अपने कार्य को और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है।
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सूचना का अधिकार (RTI)
भारत का संविधान देश के नागरिकों को विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है अर्थात् देश के प्रत्येक नागरिक को किसी भी विषय पर अपनी स्वतंत्र राय देने और उसे अन्य लोगों के साथ साझा करने का अधिकार है, परंतु कई स्वतंत्र विचारक शरू से ही मानते रहे हैं कि सूचना और पारदर्शिता के अभाव में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का कोई महत्त्व नहीं है। भारत जैसे बड़े लोकतंत्र देशों को मज़बूत करने और नागरिकों के विकास में सूचना का अधिकार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
सूचना का अधिकार: इतिहास एवं पृष्ठभूमि
- अंग्रज़ों ने भारत पर लगभग 250 वर्षो तक शासन किया है ब्रिटिश काल में और ब्रिटिश सरकार ने शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 बनया था, जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकर था कि वह किसी भी सूचना को गोपनीय कर कर सकती है।
- सन् 1947 में भारत की आजादी के बाद 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू हुआ, लेकिन संविधान निर्माताओ ने संविधान में शासकीय गोपनीयता अधिनियम का कोई वर्णन नहीं किया और न ही इस अधिनियम में कोई संशोधन किया। बाद में बनने वाली सरकारों ने भी गोपनीयता अधिनियम 1923 की धारा 5 व 6 के प्रावधानों का लाभ उठकार जनता से सूचनाओं को छुपाया।
- सूचना के अधिकार के प्रति सजगता की शुरूआत उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राज नारायण” वाद वर्ष 1975 से हुई।
इस वाद की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में हुई, जिसमें न्यायालय ने अपने आदेश में लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यो का व्यौरा जनता को प्रदान करने की व्यवस्था की। इस निर्णय ने नागरिकों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाकर सूचना के अधिकार को शामिल कर दिया था। - वर्ष 1982 में द्वितीय प्रेस आयोग ने शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 की विवादस्पद धारा 5 को निरस्त करने की सिफारिश की , क्योंकि इसमें कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया था कि ’गुप्त’ क्या है और ’शासकीय गुप्त बात’ क्या है ? इसलिए परिभाषा के अभाव में यह सरकार के निर्णय पर निर्भर था, कि कौन सी बात को गोपनीय माना जाए और किस बात को सार्वजनिक किया जाए।
- बाद के वर्षो में साल 2006 में वीरप्पा मोइली की अध्यक्षता में गठित ’द्वितीय प्रशासनिक आयोग’ ने इस कानून को निरस्त करने का सिफारिश की थी।
- सूचना के अधिकार की मांग राजस्थान से शुरू हुई। राज्य में सूचना के अधिकार के लिए 1990 के दशक में जनान्दोलन की शुरूआत हुई, जिसकी शुरुआत मजदूर किसान शक्ति संगठन(एम.के.एस.एस.) द्वारा अरूणा राय की अगुवाई में भ्रष्टाचार के भांडाफोड़ के लिए जनसुनवाई कार्यक्रम के रूप में हुई थी।
- 1989 में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद बीपी सिंह की सरकार सत्ता में आई, जिसने सूचना का अधिकार कानून बनाने का वादा किया। 3 दिसम्बर 1989 को अपने पहले संदेश में तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह ने संविधान में संशोधन करके सूचना का अधिकार कानून बनाने तथा शासकीय गोपनीयता अधिनियम में संशोधन करने की घोषणा की थी। किन्तुबीपी सिंह की सरकार कोशिश करने के बावजूद भी इसे लागू नहीं कर सकी और यह सरकार भी समाप्त हो गई ।
- वर्ष 1997 में केन्द्र सरकार ने एच.डी शौरी की अध्यक्षता में एक समिति गठित करके मई 1997 में सूचना की स्वतंत्रता का प्रारूप प्रस्तुत किया था , किन्तु शौरी समिति के इस प्रारूप को संयुक्त मोर्चे की दो सरकारों ने दबाए रखा।
- वर्ष 2002 में संसद ने ’सूचना की स्वतंत्रता विधेयक(फ्रिडम ऑफ़ इन्फाॅरमेशन बिल) पारित किया। इसे जनवरी 2003 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, लेकिन इसकी नियमावली बनाने के नाम पर इसे लागू नहीं किया गया था।
- अंततः सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम भारतीय संसद द्वारा 15 जून 2005 को अधिनियमित किया गया था। और सम्पूर्ण धाराओं के साथइस कानून को 12 अक्टूबर 2005 को लागू कर दिया गया था।
सूचना का अधिकार: प्रमुख बिंदु
किसी भी भारतीय नागरिक द्वारा सरकार से रिकार्ड, दस्तावेज, ज्ञापन, ईःमेल, विचार, सलाह, प्रेस विज्ञप्तियाँ, परिपत्र, आदेश, लांग पुस्तिका, ठेके सहित कोई भी उपलब्ध सामग्री, निजी निकायो से सम्बन्धित तथा किसी लोक प्राधिकरण से उस समय के प्रचलित कानून के अन्तर्गत प्राप्त किया जा सकता है।
सूचना अधिकार के अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दु आते हैं:
- सार्वजानिक निकायों के कार्यो, दस्तावेजों, रिकार्डो का निरीक्षण।
- सार्वजानिक निकायों के दस्तावेज या रिकार्डो की प्रस्तावना।
- सार्वजानिक निकायों के सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना।
- सार्वजानिक निकायों के सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना।
- सार्वजानिक निकायों के प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लाॅपी, टेप, वीडियो कैसेटो के रूप में या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक रूप में जानकारी प्राप्त करना।
सूचना का अधिकार: अन्य देशों में कानून का तुलनात्मक अध्ययन
- विश्व में सबसे पहले स्वीडन ने सूचना का अधिकार कानून 1766 में लागू कियाथा , जबकि कनाडा ने 1982, फ्रांस ने 1978, मैक्सिको ने 2002 तथा भारत ने 2005 में लागू किया।
- विश्व में स्वीडन पहला देश है, जिसके संविधान में सूचना की स्वतंत्रता प्रदान की गई है, इस मामले में कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत क संविधान उतनी आज़ादी प्रदान नहीं करता है । जबकि स्वीडन के संविधान ने 250 वर्ष पूर्व सूचना की स्वतंत्रता की वकालत की है।
- सूचना मांगन वाले को सूचना प्रदान करने की प्रक्रिया स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत में अलग-अलग है। स्वीडन सूचना मांगने वाले को तत्काल और निशल्क सूचना देने का प्रावधान है।
- सूचना प्रदान करने लिए फ्रांस और भारत में 1 माह का समय निर्धारित किया गया है, हालांकि भारत ने जीवन और स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे का समय दिया गया है।
- कनाडा 15 दिन तथा मैक्सिको 20 दिन में सूचना प्रदान कराता है। सूचना न मिलने पर अपील प्रक्रिया भी लगभग सभी देशों में एक ही समान है।
- स्वीडन में सूचना न मिलने पर न्यायालय में जातें है। कनाडा तथा भारत में सूचना आयुक्त जबकि फ्रांस में संवैधानिक अधिकारी एवं मैक्सिको में ’द नेशनल ऑन एक्सेस टू पब्लिक इनफाॅरमेशन’ अपील और शिकयतों का निपटारा करता है।
- स्वीडन किसी भी माध्यम द्वारा तत्काल सूचना उपलब्ध कराता है जिनमें वेबसाइट पर भी सूचना जारी किया जाती है। कनाडा और फ्रांस अपने नागरिकों को किसी भी रूप में सूचना दे सकता है, जबकि मैक्सिको इलेक्ट्राॅनिक रूप से सूचनाओं का सार्वजनिक करता है तथा भारत प्रति व्यक्ति को सूचना उपलब्ध कराता है।
- गोपनीयता के मामले में स्वीडन ने गोपनीयता एवं पब्लिक रिकार्ड एक्ट 2002, कनाडा ने सुरक्षा एवं अन्य देशों से सम्बन्धित सूचनाएँ मैनेजमंट ऑफ गवर्नमेण्ट इन्फाॅरमेशन होल्डिंग 2003, फ्रांस ने डाटा प्रोटेक्शन एक्ट 1978 तथा भारत ने राष्ट्रीय, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा तथा अधिनियम की धारा 8 में उल्लिखित प्रावधानों से सम्बन्धित सूचनाएँ देने पर रोक लगा रखी है।
सूचना का अधिकार: प्रमुख प्रावधान
सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम 2005 के प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित है:
- समस्त सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थान आदि विभाग इसमें शामिल हैं। पूर्णतः से निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है।
- प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना अधिकारी बनाए गए हैं, जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं।
- जनसूचना अधिकारी की दायित्व है कि वह 30 दिन अथवा जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) मांगी गई सूचना उपलब्ध कराता है।
- यदि जनसूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का जुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होती है।
लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का कारण पुछे। - सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस 10 रुपए देनी होती है। लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, बीपीएल कार्डधरकों को आवेदन शुल्क में छुट दी गई है।
- दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी 2 रुपए प्रति पृष्ठ फीस देनी होती है लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, अगर सूचना तय समय सीमा में नहीं उपलब्ध कराई गई है तो सूचना मुफ्त दी जायेगी।
- यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यह उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होती है ।
- लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है। अथवा परेशान करता है। तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते है।
- जनसूचना अधिकारी कुछ मामलों में सूचना देने से मना कर सकता है। जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है। लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है। जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता है।
- यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, या दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित जनसूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है।
- यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 90 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे सम्बंधित हो) के पास करनी होती है।
- द्वितीय अपील के तहत केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के आदेश से संतुष्ट न होने पर न्ययालय जा सकते है। यदि किसी आदेश के खिलाफ या आदेश के बाद भी केंद्रीय जन सूचना अधिकारी उसे मानने से इंकार करता है तो ऐसी परिस्थितियों में केन्द्र में उच्चतम न्यायालय और राज्य में उच्च न्यायालय में जाया जा सकता है।
सूचना का अधिकार (RTI) – Download PDF
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