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भारत में किसान आंदोलन, Peasant Movement in India in Hindi
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 25th, 2023

औपनिवेशिक काल तक किसान आंदोलनों (Peasant Movement) का एक लंबा इतिहास रहा है। किसान शब्द बल्कि जटिल है क्योंकि यह कई अंतरों को अपने भीतर छुपाता है। किसान शब्द में विभिन्न प्रकार के काश्तकार शामिल हैं, जिनका भूमि में निहित स्वार्थ था, अर्थात् छोटे किसान, धनी जमींदार, भूमिहीन मजदूर जिन्हें भूमि पर खेती करने के लिए किराए पर लिया गया था, बटाईदार और ऐसे अन्य समूह जो भूमि को आजीविका का स्रोत मानते हैं। इसलिए, ‘किसान’ शब्द आंतरिक भिन्नताओं और जटिलताओं को पूरी तरह से प्रकट नहीं करता है। इस लेख में हमने ब्रिटिश भारत में किसान आंदोलन से सम्बंधित नोट्स उपलब्ध कराएं हैं जो परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
Table of content
ब्रिटिश समय के भारत में जन आन्दोलन
ब्रिटिश शासन के विरुद्ध मुख्यतः दो प्रकार के विद्रोह हुए थे। ये थे –
1) जन विद्रोह
2) आदिवासी विद्रोह
जन विद्रोह
नागरिक विद्रोहों में आम जनता, जमींदारों, पालीगारों, ठेकेदारों इत्यादि द्वारा किए गए विद्रोह शामिल होते हैं। इसमें सैन्य अथवा रक्षा बल द्वारा किया गया विद्रोह शामिल नहीं होता है। देश के विभिन्न भागों में इन विद्रोहों का नेतृत्व अपदस्थ मूल शासकों अथवा उनके उत्तराधिकारियों, पूर्व-नौकर-चाकरों, अधिकारियों आदि ने किया। उनका मूल उद्देश्य शासन की पूर्व प्रणाली और सामाजिक संबंधों को फिर से स्थापित करना था। ऐसे नागरिक विद्रोहों के प्रमुख कारण हैं:
- औपनिवेशिक भू-राजस्व प्रणाली: जमींदारी, रैयतवाड़ी और महालवाड़ी प्रणालियों के कारण पारम्परिक सामाजिक ढांचा परिवर्तित हुआ। किसान वर्ग उच्च कराधान, अपनी जमीनों से पूर्ण न्यायिक प्रक्रिया से हटकर एक आदेश द्वारा निष्कासन, कराधानों में अचानक वृद्धि, कार्यकाल सुरक्षा का अभाव आदि से पीड़ित था।
- शोषण: बिचौलिये राजस्व संग्रहकर्ताओं, धन उधारदाताओं, किरायेदारों आदि में वृद्धि के कारण किसानों का गंभीर आर्थिक शोषण हुआ।
- कलाकारों का गरीब होना: ब्रिटिश निर्मित सामान के प्रोत्साहन के कारण भारतीय हथकरघा उद्योग तबाह हो गया। कलाकारों के पारंपिक संरक्षक गायब हो गए जिससे बाद में भारतीय उद्योगों का ओर अधिक नुकसान हुआ।
- विऔद्योगिकीकरण: पारम्परिक उद्योगों के खत्म होने से श्रमिकों का उद्योग से हटकर कृषि क्षेत्र में पलायन हुआ।
- विदेशी चरित्र: ब्रिटिशों ने इस भूमि में कोई दखल नहीं दिया और मूल निवासियों के साथ तिरस्कार का व्यवहार किया।
महत्वपूर्ण जन विद्रोह
वर्ष |
विद्रोह |
तथ्य |
1763-1800 |
सन्यासी विद्रोह अथवा (फकीर विद्रोह) |
कारण: 1770 का अकाल और अंग्रेजों का गंभीर आर्थिक शोषण भागीदारी: किसान, अपदस्थ जमींदार, बरख़ास्त सैनिक और गांव के गरीब। हिंदुओं और मुस्लिमों की ओर से समान भागीदारी देखी गई थी। नेता: देवी चौधरानी, मजनूम शाह, चिराग अली, मूसा शाह, भवानी पाठक साहित्यिक रचना: बंकिंम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा आनन्दमठ और देवी चौधरानी। |
1766-1774 |
मिदनापुर और ढालभूम में विद्रोह |
कारण: बंगाल में स्थायी बंदोबस्त व्यवस्था लागू करना और जमींदारों को अपदस्थ करना। नेता: दामोदर सिंह और जगन्नाथ ढाल |
1769-1799 |
मोमारियाओं का विद्रोह |
कारण: असम राजाओं के अधिकार को चुनौती देने के लिए निम्न-जाति के मोमारिया किसानों का विद्रोह परिणाम: यद्यपि असम का राजा विद्रोह कुचलने में कामयाब रहा, लेकिन अंततः बर्मा आक्रमण हुआ और वह ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया |
1781 |
गोरखपुर, बस्ती और बहराइच में नागरिक विद्रोह |
कारण: वारेन हेस्टिंग्स की मराठाओं और मैसूरों के खिलाफ युद्ध का खर्चा उठाने की योजना। अंग्रेजी अफ़सर अवध में इजारदारों अथवा राजस्व किसानों के रूप में शामिल थे। |
1794 |
विजयनगर के राजा का विद्रोह |
कारण: अंग्रेजों ने विजयनगर के राजा आनंद गजपतिराजू से फ्रांसिसियों को उत्तरी तट से बाहर निकालने के लिए सहायता मांगी। जीत के बाद अंग्रेज अपनी बात से पलट गए, और राजा से सम्मान की मांग की और उनसे अपनी सेना को हटाने के लिए कहा। दिवगंत राजा आनंद गजपतिराजू के पुत्र राजा विजयरामाराजू ने विद्रोह कर दिया। बाद में वह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। |
1799-1800 |
बेदनूर में धूंदिया विद्रोह |
धूंदिया एक मराठा नेता थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। वह वेलेजली के हाथों 1800 में पराजित हुए थे। |
1797; 1800-1805 |
केरल के सिम्हम पझासी राजा का विरोध |
अंग्रेजों का कोट्टयम के ऊपर प्रभुत्व विस्तार और किसानों के ऊपर अत्याधिक कर दरों के विरोध में राजा पझासी के नेतृत्व में आंदोलन हुआ था। |
1799 |
अवध में नागरिक आंदोलन |
वज़ीर अली द्वारा बनारसियों का नरसंहार। वह अवध का चौथा नबाव था जिसे बाद में अंग्रेजो द्वारा हटाकर जेल की सजा सुनाई गई। |
1800; 1835-1837 |
गंजम और गुमसुर में विद्रोह |
यह अंग्रेजों के खिलाफ स्त्रीकरा भंज और उनके पुत्र धनंजय भंज और गुमसुर के जमींदारों का विद्रोह था। |
1800-1802 |
पालामऊ में विद्रोह |
किसानी जमींदारी तथा भू-सामंती व्यवस्था |
1795-1805 |
पॉलीगार विद्रोह |
पॉलीगर दक्षिण भारत के जमींदार थे। उन्होंने अपनी राजस्व मांगों के लिए अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया था। कत्ताबोमन नायाकण, ओमैथुरई और मारुथु पाण्डयन विद्रोह के प्रमुख नेता थे। |
1808-1809 |
दीवान वेलू थंपी का विद्रोह |
कारण: सहायक संधि मान लेने के बाद त्रावणकोण राज्य कर्जे में डूब गया। त्रावणकोण के अंग्रेजी लोग राज्य के आंतरिक मामलों में दखल दे रहे थे। इस वजह से वेलू थम्पी को कंपनी के खिलाफ खड़ा होना पड़ा। उनके विद्रोह के आह्वाहन को कुंद्रा घोषणा के नाम से जाना गया। |
1808-1812 |
बुंदेलखंड में अशांति |
बुंदेलखंड के बंगाल प्रांत में शामिल किए जाने के बाद बुंदेल के नेताओं ने विद्रोह किया। इस अशांति को बुंदेलों के साथ इकारनामा नाम की समझौता शर्तों के साथ दबाया गया। |
1813-1814 |
पार्लाकिमेड़ी विद्रोह |
पार्लाकिमेड़ी राजा नारायण देव ने कंपनी के खिलाफ विद्रोह कर दिया। |
1816-1822 |
कच्छ विद्रोह |
कारण: · कच्छ के अंदरूनी मामलों में अंग्रेजों का दखल। · अंग्रेज प्रशासनिक नवाचार · अत्यधिक भूमि आकलन नेता : कच्छ के राजा भारमल II |
1816 |
बरेली विद्रोह |
कारण: · पुलिस कर लागू करना · विदेशी प्रशासन के कारण असमहति |
1817 |
हाथरस में विद्रोह |
हाथरस से उच्च राजस्व मूल्यांकन के परिणामस्वरूप दयाराम ने कंपनी के खिलाफ विद्रोह किया। |
1817 |
पैका विद्रोह |
उड़ीसा में पैका पारंपरिक भू-संरक्षक थे। कारण: · अंग्रेजी कंपनी के उड़ीसा को जीतने और खुरदा के राजा को हटाने से पैकाओं के सम्मान और शक्ति को काफी क्षति पहुंची। · जबरन भू-राजस्व नीतियों ने जमींदारों और किसानों के मध्य असंतोष की ज्वाला को ओर भड़काया। · करों के कारण नमक के मूल्य में वृद्धि हुई · कावरी मुद्रा का त्याग · करों का चांदी के रूप में भुगतान की शर्त। नेता: बख्शी जगबंधु विद्याधर |
1818-1820 |
वाघेरा विद्रोह |
· विदेशी शासन के खिलाफ असंतुष्टि · बड़ौदा के गायकवाड़ से अनुरोध |
1828 |
असम विद्रोह |
· प्रथम बर्मा युद्ध के बाद अंग्रेजों द्वारा असम को ब्रिटिश साम्राज्य में विलय करने का प्रयास · गोंधर कोंवर ने इस विद्रोह का नेतृत्व किया |
1840 |
सुरत नमक आक्रोश |
· नमक पर कर को 50 पैसे से 1 रुपए बढ़ा दिया गया · बंगाल मानक वजन और माप का प्रयोग शुरु हुआ |
1844 |
कोल्हापुर और सावंतवाड़ी विद्रोह |
गडकरियों ने प्रशासनिक पुनर्गठन तथा बेरोजगारी के कारण अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया |
1840 |
वहाबी आंदोलन |
· रायबरेली के सैय्यद अहमद द्वारा प्रेरित इस्लामी पुनर्जागरण आंदोलन · दार-उल-हर्ब का दार-उल-इस्लाम में परिवर्तन · पहले सिक्खों और बाद में अंग्रेजों पर जिहाद की घोषणा |
1840 |
कूका आंदोलन |
· पश्चिमी पंजाब में भगत जवाहर मल द्वारा स्थापित। दूसरे प्रमुख नेता बाबा राम सिंह थे जिन्होंने नामधारी सिक्ख पंथ की स्थापना की। उद्देश्य: · सिक्ख धर्म में जातिवाद और अन्य भेदभावों का उन्मूलन। · मांस, मदिरा और नशा के सेवन को हतोत्साहित करना · अंतर-धर्म विवाह की अनुमति · विधवा विवाह · अंग्रेजों को हटाकर सिक्ख साम्राज्य की पुनर्स्थापना · अंग्रेजी कानूनों, शिक्षा और उत्पादों का बहिष्कार |
1782-1831 |
नारकेलबेरिया विद्रोह |
· अंग्रेजों के खिलाफ पहला सशस्त्र किसान विद्रोह · तीतू मीर ने मुस्लिम किसानों को हिंदु जमींदारों के विरुद्ध खड़े होने के लिए प्रेरित किया |
1825-1835 |
पागल पंथी |
· हाजोंग और गारो जनजातियों को मिलाकर करम शाह द्वारा प्रेरित · उन्होंने किराया देने से मना कर दिया और जमींदारों के घरों पर हमला किया |
1838-1857 |
फराजी विद्रोह |
· फरीदपुर के हाजी शरीयत अल्लाह द्वारा प्रेरित · दादू मियां ने अपने समर्थकों को बंगाल से अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए संगठित किया |
1836-1854 |
मोपला विद्रोह |
· केरल में हुआ था। कारण: · राजस्व मागों में वृद्धि · खेत के आकार में कमी · अधिकारियों की ओर से दमन |
1917 |
चम्पारण सत्याग्रह |
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1918 |
खेड़ा सत्याग्रह |
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