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भारतीय वित्त आयोग (Finance Commission of India)
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 25th, 2023
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भारत में केन्द्रीय सरकार एवं राज्य सरकारों के बीच वित्तीय सम्बन्धों को पारिभाषित करने के उद्देश्य से वित्त आयोग की स्थापना की गई थी, जिसका प्रावधान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280 में है। इस आर्टिकल हम वित्त आयोग से सम्बंधित समस्त जानकारी उपलब्ध करा रहे है जिससे आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं में उम्मीदवारों के लिए आसानी हो।
Table of content
भारतीय वित्त आयोग (Finance Commission of India)
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 280(1) के अंतर्गत यह प्रावधान है कि संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और उसके बाद प्रत्येक पाँच वर्ष की समाप्ति पर या पहले उस समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझते हैं, एक वित्त आयोग का गठन किया जाएगा।
- वित्त आयोग प्रत्येक पाँच वर्ष बाद गठितकिया जाता है। संविधान में यह नहीं बताया गया है कि आयोग की सिफारिशों के प्रति भारत सरकार बाध्य होगी और आयोग द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर राज्यों द्वारा प्राप्त धन को लाभकारी मामलों में लगाने का उसे विधिक अधिकार होगा।
- इस संबंध में डॉ पीवी राजा मन्नार चौथे वित्त आयोग के अध्यक्ष ने कहा है कि वित्त आयोग एक संवैधानिक निकाय है जो अर्ध न्यायिक कार्य करता है तथा इसकी सलाह को भारत सरकार तब तक मानने के लिए बाध्य नहीं है जब तक कि कोई आधिकारिक कारण ना हो।
- अभी तक 15 वित्त आयोग गठित किए जा चुके हैं।
- 2017 में 15वां वित्त आयोग एन के सिंह (भारतीय योजना आयोग के भूतपूर्व सदस्य) की अध्यक्षता में गठित किया गया था।
- वित्त आयोग का गठन एक संवैधानिक निकाय के रूप में अनुच्छेद 280 के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
- वित्त आयोग का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। परन्तु 5 वर्ष से पूर्व भी राष्ट्रपति वित्त आयोग को समाप्त कर नए वित्त आयोग का गठन कर सकता है। यह एक अर्ध न्यायिक संस्था है।
- भारत में वित्त आयोग का गठन वित्त आयोग अधिनियम 1951 के अंतर्गत किया गया है।
- अनुच्छेद 280(1) गठित के तहत वित्त आयोग में एक अध्यक्ष तथा 4 सदस्य होते हैं सदस्यों में 2 सदस्य पूर्ण कालीन सदस्य जबकि 2 सदस्य अंशकालीन सदस्य होते हैं।
- 73वें संविधान संशोधन 1993 से भारत के सभी राज्यों में राज्य वित्त आयोग का गठन करने का प्रावधान है।
वित्त आयोग के सदस्यों हेतु योग्यताएँ:
वित्त आयोग में एक अध्यक्ष एवं चार अन्य सदस्य होते हैं जिनकी योग्यताएँ निम्न है –
अध्यक्ष: एक ऐसा व्यक्ति हो जिसे लोक मामलों का सम्पूर्ण ज्ञान हो।
सदस्य: 1. एक ऐसा व्यक्ति जो उच्च न्यायालाय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखता हो।
2. एक ऐसा व्यक्ति जो सरकार के वित्त और लेखाओं का विशेष ज्ञान रखता हो।
3. एक ऐसा व्यक्ति जो वित्तीय विषयों और प्रशासन के बारे में व्यापक अनुभव रखता हो।
4. एक ऐसा व्यक्ति जिसे अर्थशास्त्र का विशेष ज्ञान हो।
वित्त आयोग के कार्य:
आयोग का यह कर्तव्य है कि वह निम्न विषयों पर राष्ट्रपति को सिफारिश करता है –
- आय कर और अन्य करों से प्राप्त राशि का केंद्र और राज्य सरकारों के बीच किस अनुपात में बँटवारा किया जाये।
- “भारत के संचित कोष” से राज्यों के राजस्व में सहायता देने के क्या सिद्धांत हों।
- सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति द्वारा आयोग को सौंपे गए अन्य विषय के बारे में आयोग राष्ट्रपति को सिफारिश करता है।
- राष्ट्रपति वित्त आयोग की संस्तुतियों को संसद के समक्ष रखता है. अनुच्छेद -280, अनुच्छेद -270, 273, 275 भी इसकी पुष्टि करते हैं. संविधान के अनुच्छेद 280 के मुताबिक़ वित्त आयोग जिन मुद्दों पर राष्ट्रपति को परामर्श देता है, उनमें टैक्स से कुल प्राप्तियों का केंद्र और राज्यों में बँटवारा, भारत की संचित निधि से राज्य सरकार को दी जाने वाली सहायता/अनुदान के सम्बन्ध में सिफारिशें शामिल होती हैं।
- पिछले वर्षों में राज्य सरकारें निरंतर यह कहती रहीं हैं कि केंद्र सरकार द्वारा उन्हें अधिक वित्तीय साधन प्रदान किये जाने चाहिए, सरकार ने इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए राज्यों को दिए जाने वाले अनुदानों में निरंतर वृद्धि की है।
केंद्र और राज्य सम्बन्ध:
- संविधान के अनुच्छेद 275 (1) के तहत संसद कानून के जरिये जरुरत पड़ने पर राज्यों को अनुदान के तौर पर पैसा दे सकती है।
- यह अनुदान कितना होगा ये वित्त आयोग के सिफारिशों के बाद तय होगा।
- इसके अलावा अनुच्छेद 282 के तहत केंद्र और राज्य दोनों किसी सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनुदान दे सकते हैं. लेकिन इसे वित्त आयोग के निर्णय क्षेत्र से बाहर रखा गया है।
अब तक गठित वित्त आयोग:
1951 से लेकर अब तक 15 वित्त योग गठित हो चुके हैं जिनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
वित्त आयोग | नियुक्ति वर्ष | अध्यक्ष | अवधि |
पहला | 1951 | के.सी. नियोगी | 1952-1957 |
दूसरा | 1956 | के. संथानम | 1957-1962 |
तीसरा | 1960 | ए.के. चंद्रा | 1962-1966 |
चौथा | 1964 | डॉ. पी.वी. राजमन्नार | 1966-1969 |
पाँचवां | 1968 | महावीर त्यागी | 1969-1974 |
छठा | 1972 | पी. ब्रह्मानंद रेड्डी | 1974-1979 |
सातवाँ | 1977 | जे.पी. शेलट | 1979-1984 |
आठवाँ | 1982 | वाई.पी. चौहान | 1984-1989 |
नौवाँ | 1987 | एन.के.पी. साल्वे | 1989-1995 |
10वाँ | 1992 | के.सी. पंत | 1995-2000 |
11वाँ | 1998 | प्रो. ए.एम. खुसरो | 2000-2005 |
12वाँ | 2003 | डॉ. सी. रंगराजन | 2005-2010 |
13वाँ | 2007 | डॉ. विजय एल. केलकर | 2010-2015 |
14वां | 2012 | डॉ. वाई.वी. रेड्डी | 2015-2020 |
15वां | 2017 | एन.के. सिंह | 2020-2025 |
15वें वित्त आयोग पर विवाद क्यों?
1951 से लेकर अब तक 15 वित्त योग गठित हो चुके हैं और हर बार राज्यों और केंद्र के बीच पैसों के बँटवारे को लेकर काफी चर्चा और विवाद होते रहे हैं। 15वाँ वित्त आयोग भी कुछ ऐसे ही विवाद उठ रहे है:
15वें वित्त आयोग में वित्तीय वितरण का आधार 2011 की जनगणना को बनाने का प्रावधान था। ऐसे में अगर 2011 की जनसंख्या राजस्व बँटवारे का आधार बनती है तो वे राज्य फायदे में रहेंगे जिनकी आबादी बढ़ गयी है। जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार दक्षिण भारत के अधिकांश राज्यों की जनसंख्या की दर में गिरावट देखी गई थी। इसको लेकर दक्षिण भारत के विभिन्न राज्यों की सरकार ने 15वें वित्त आयोग के इस नए प्रावधान की कड़ी आलोचना की थी।
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