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केंद्र- राज्य संबंध | Centre State Relations in Hindi
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 25th, 2023
भारत राज्यों का एक संघ है। इसलिए भारत के संविधान में संघ और राज्यों के बीच संबंधों को परिभाषित किया गया है। भारतीय संविधान के भाग 11 (अनुच्छेद 245 – 263) और 12 (अनुच्छेद 264 – 300) में केंद्र और राज्यों के बीच संबंधों का वर्णन किया गया है। केंद्र राज्य विधायी संबंधों की सातवीं अनुसूची में उल्लिखित संघ सूची (Union List) , राज्य सूची (State List) और समवर्ती सूची (Concurrent List) पर आधारित है।
केंद्र राज्य संबंधों की अवधारणा बीपीएससी, यूपीपीएससी और अन्य पीएससी परीक्षाओं में एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस प्रकार, इस लेख में हम केंद्र-राज्य विधायी संबंधों (Centre State Relations in Hindi) पर सरल और आसान तरीके से चर्चा करेंगे और इसके विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं को समझेंगे।
Table of content
केंद्र-राज्य संबंध (Centre State Relations in India)
केंद्र तथा राज्यों के बीच सम्बन्धों को भारतीय संविधान के भाग 11 और 12 में तीन प्रकार से परिभाषित किया गया है :
1. विधायी सम्बन्ध
2. प्रशासनिक सम्बन्ध
3. वित्तीय सम्बन्ध
केंद्र-राज्य विधायी सम्बन्ध
भारतीय संविधान के भाग- XI में अनुच्छेद 245 से 255 तक केन्द्र-राज्य विधायी संबंधों को परिभाषित किया गया है। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य अनुच्छेद भी इस विषय से संबंधित हैं। जिनका वर्णन इस प्रकार है: संविधान के अनुच्छेद 245 के अनुसार केंद्र को संघ सूची, राज्य को राज्य सूची तथा समवर्ती सूची के विषय में कानून बनाने का अधिकार केंद्र एवं राज्य दोनों को है।
भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में तीन प्रकार की सूचियों का उल्लेख किया गया है:
1. संघ सूची
2. राज्य सूची
3. समवर्ती सूची
संघ सूची (Union List)
संघ सूची में राष्ट्रीय महत्व के विषयों को शामिल किया गया है, इनमे जिन विषयों को शामिल किया गया उसमे केवल कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार अर्थात भारतीय संसद को दिया गया है |मूलतः संघ सूची में 97 विषय थे , परन्तु वर्तमान में संघ सूची में 100 विषय शामिल है। जिनमे से कुछ प्रमुख विषय निम्नलिखित हैं :
- विदेशी मामले
- रेडियो, टेलिविजन
- डाकघर बचत बैंक
- शेयर बाजार
- बैंकिंग
- बीमा
- रक्षा
- रेलवे
- जनगणना
- निगम कर
राज्य सूची (State List)
राज्य सूची में क्षेत्रीय महत्व के विषयों को शामिल किया गया है | इनमे उन विषयों को शामिल किया गया जो क्षेत्रीय महत्व रखते है | इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानमंडल को प्रदान किया गया है | राज्य सूची में मूलतः 66 विषय थे, परन्तु वर्तमान में राज्य सूची में 61 विषय है। जिनमे से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं:
- पुलिस
- लोक व्यवस्था
- लोक स्वास्थ्य
- स्वच्छता
- भूमि सुधार
- प्रति व्यक्ति कर
- कृषि
- गैस
- निखात निधि
- रेलवे पुलिस
- पंचायती राज
- कारागार
समवर्ती सूची (Concurrent List)
समवर्ती सूची में सम्मिलित किये गए विषयों पर राज्य सरकार और केंद्र सरकार दोनों कानून का निर्माण कर सकती है | इसे तीसरी सूची भी कहते हैं। केंद्र सरकार द्वारा बनाये गए कानून को राज्य सरकार द्वारा अनिवार्य रूप से स्वीकार किया जाता है | इस सूची में मूलतः 47 विषय थे, किन्तु 42वें संविधान संशोधन 1976 में इस सूची में 5 विषय और शामिल किये गए। इसलिए वर्तमान में समवर्ती सूची में 52 विषय हैं। जिनमे प्रमुख निम्नलिखित हैं:
- आर्थिक योजना/नियोजन
- योजना आयोग
- आपराधिक मामले
- जनसंख्या नियंत्रण व परिवार नियोजन
- शिक्षा
- वन
- विद्युत
- दण्ड प्रक्रिया
- विवाह
- विवाह-विच्छेद
- सामाजिक नियोजन
- गोद लेना
42वें संविधान संशोधन 1976 (42nd Amendment Act 1976)
42वें संशोधन अधिनियम, 1976 (42nd Amendment Act 1976) के तहत राज्य सूची से 5 विषयों को समवर्ती सूची में शामिल किया गया था। 42वें संशोधन अधिनियम के अनुसार समवर्ती सूची में जोड़े गए पांच विषय निम्नलिखित हैं –
- शिक्षा,
- वन,
- नाप-तौल,
- वन्यजीवों एवं पक्षियों का संरक्षण,
- न्याय का प्रशासन।
जो भाग किसी राज्य के अंतर्गत नहीं आता है, संसद उस भाग के लिए तीनों सूचियों में से किसी पर भी कानून बना सकती है या उसके अतिरिक्त कोई अन्य विषय भी बना सकती है, जैसे केंद्र शासित प्रदेश।
केंद्र-राज्य विधायी सम्बन्ध भारतीय संविधान के भाग- XI में कुछ अन्य अनुच्छेद भी हैं, जिनका विवरण इस प्रकार है:
- संविधान के अनुच्छेद 248 (1) के अनुसार संसद को उन सभी विषयों पर कानून बनाने का अनन्य अधिकार है जिनका उल्लेख राज्य व समवर्ती सूची में नहीं है। अर्थात अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास हैं।अर्थात अवशिष्ट शक्तियाँ केंद्र सरकार के पास हैं।
- संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार, यदि राज्यसभा अपने उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव करें कि राष्ट्र हित में यह आवश्यक या हितकर है तो संसद राज्य सूची में दिये गए किसी विषय पर कानून बना सकती है।
- अनुच्छेद 250 के अनुसार, यदि आपातकाल की उद्घोषणा प्रवर्तन में हो तो राज्य सूची के विषय के संबंध में कानून बनाने की शक्ति संसद के पास होगी।
- अनुच्छेद 252 के अनुसार, दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमंडल एक संकल्प पारित करके संसद से अनुरोध कर सकते हैं कि वे राज्य सूची के किसी विषय के बारे में कानून बनाएँ। ऐसी विधियों का विस्तार अन्य राज्यों पर भी किया जा सकता है बशर्ते संबद्ध राज्यों के विधानमंडल इस आशय के संकल्प पारित कर दे ।
- अनुच्छेद 253 के अनुसार संसद को यह शक्ति है कि वह किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि, करार, अभिसमय को कार्य रूप देने के लिये समूचे देश या उसके किसी भाग के लिये कोई भी कानून बना सकती है।
- अनुच्छेद 356 के अनुसार, जब राष्ट्रपति को राज्यपाल की रिपोर्ट पर यह समाधान हो जाए कि किसी राज्य में ऐसी स्थिति पैदा हो गई है जिसमें राज्य का शासन वैधानिक उपबंधों के अनुसार नहीं चल रहा है तो राष्ट्रपति यह घोषणा करेगा कि राज्य के विधानमंडल की शक्तियाँ संसद के द्वारा प्रयोग की जाएंगी।
- किसी विषय विशेष पर कानून निर्माण का अधिकार राज्य विधानमंडल का है अथवा केंद्रीय विधानमंडल का, इस पर राज्य और संघ के बीच अथवा राज्यों के बीच मतभेद हो सकता है। निर्णय करने के लिए न्यायालय को यह देखना होता है कि उस विषय का सार और सत्त्व सातवीं अनुसूची की कौन सी सूची के अंतर्गत आता है। इसे ‘सार और सत्त्व का सिद्धांत’ या ‘डॉक्ट्रिन ऑफ पीथ एंड सब्सटेंस’ भी कहा जाता है।
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