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बसव (बसवेश्वर जयंती

By BYJU'S Exam Prep

Updated on: September 25th, 2023

जगद्गुरु बसवेश्वर (बसवन्ना) के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में बसव जयंती प्रतिवर्ष वैशाख महीने के तीसरे दिन शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। वीरशैव लिंगायत हिंदू धर्म का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण त्यौहार है। यह पूरे भारत में हर्षोल्लास सहित मनाया जाता है। इसमें लिंगायत मत के प्रसारक बसव की जयंती मनायी जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, बसवन्ना का जन्म वैशाख महीने के तीसरे दिन शुक्ल पक्ष में हुआ। जो कि अंग्रेज़ी कैलेंडर के मई-अप्रैल माह के मध्य में पड़ता है।

बसवेश्वर (बसवन्ना) बसव जयंती 

  • महान संत बसवेश्वर का जन्म 1131 ई.वी. में बागेवाडी (कर्नाटक के संयुक्त बीजापुर जिले में स्थित) में हुआ था।
  • जगद्गुरु बसवेश्वर (बसवन्ना) के जन्मदिवस के उपलक्ष्य में बसव जयंती प्रतिवर्ष वैशाख महीने के तीसरे दिन शुक्ल पक्ष में मनाई जाती है। बसव लिंगायत मत के प्रसारक थे।
  • बसवेश्वर, सामान्य भाषा में बसवन्ना के रूप में जाना जाता है, बसवेश्वर 12 वीं शताब्दी के भारतीय राजनेता, दार्शनिक, कवि, शिव-केंद्रित भक्ति आंदोलन में लिंगायत समाज सुधारक और कल्याणी चालुक्य / कलचुरी वंश के शासनकाल के दौरान एक हिंदू शैव समाज सुधारक थे।
  • कल्याण में कलचुरी शासक बिज्जल (1157-1167 ई.) ने अपने दरबार में बसवेश्वर को लेखाकार और बाद में प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया था।
  • बसवेश्वर का आध्यात्मिक अनुशासन अरिवु (सच्चा ज्ञान), आचार (सही आचरण) और अनुभव (दिव्य अनुभव) के सिद्धांतों पर आधारित था जिसने 12वीं शताब्दी में एक सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक क्रांति को जन्म दिया।
  • बसवेश्वर का यह मार्ग लिंगनगयोग (ईश्वर के साथ मिलन) के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की व्याख्या करता है। जो कि वृहद अनुशासन भक्ति, ज्ञान, और क्रिया को अच्छी तरह से शामिल करता है। 
  • बसवेश्वर ने कई सामाजिक सुधारों के लिये कार्य किये थे।
  • उन्होंने जाति व्यवस्था से मुक्त समाज में सभी के लिये समान अवसर की बात की और शारीरिक परिश्रम का उपदेश दिया।
  • उन्होंने अनुभव मंडप की भी स्थापना की थी , जिसका अनुवाद अनुभव के मंच के रूप में किया गया, यह एक तप्रकार की अकादमी थी जिसमें लिंगायत मनीषियों, संतों और दार्शनिकों को शामिल किया गया था।
  • बसवेश्वर ने दो बहुत महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक सिद्धांत प्रतिपादित किये थे।

1. कायाक (ईश्वरीय कार्य):
इस सिद्धांत के अनुसार समाज के प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के कार्य को पूरी ईमानदारी के साथ करना चाहिये।

2. दसोहा (समान वितरण):
इस सिद्धांत के तहत समान काम के लिये समान आय होनी चाहिये।
कार्यकर्त्ता (कायाकजीवी) अपनी मेहनत की कमाई से अपना दैनिक जीवन व्यतीत कर सकता है लेकिन उसे धन या संपत्ति को भविष्य के लिये सुरक्षित नहीं रखना चाहिये और अधिशेष धन का उपयोग समाज और गरीबों के हित में करना चाहिये। यही बसवेश्वर का समाज के लिए प्रमुख सन्देश था।

  • बसवेश्वर द्वारा स्थापितअनुभव मंडप , व्यक्तिगत समस्याओं के साथ-साथ धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों सहित सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक स्तर की मौजूदा समस्याओं पर चर्चा करने हेतु सभी के लिये एक सामान्य सभासद था।
  • इसे भारत की पहली और सबसे महत्त्वपूर्ण संसद के रूप में देखा गया , जहांँ शरणों (कल्याणकारी समाज के नागरिक) के साथ एक लोकतांँत्रिक व्यवस्था के समाजवादी सिद्धांतों पर चर्चा की जाती थी ।
  • कल्याणकारी समाज के नागरिक की सभी चर्चाएँ वचनों के रूप में लिखी गई थीं। वचन सरल कन्नड़ भाषा में लिखे गए एक अभिनव साहित्यिक रूप थे।
  • वचनों के व्यावहारिक दृष्टिकोण और ‘कल्याणकारी राज्य’ (कल्याण राज्य) की स्थापना के कार्य ने वर्ग, जाति, पंथ एवं लिंग के बावजूद समाज के सभी नागरिकों को एक नई स्थिति और परिस्तिथि प्रदान की थी।
  • आधुनिक भारत में सामाजिक परिवर्तन और धार्मिक जागृति के संदर्भ में बसवेश्वर का संदेश विशेष स्थान रखता है। आज हमारा भारतीय समाज, लोकतंत्र और राष्ट्रवाद के अपने विचारों, शिक्षा के प्रसार और वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर जोर देने के साथ खुद को नया आकार दे रहा है। यह विश्व विचार की मुख्य धारा से प्रभावित है। हमारे विचार इतनी तेजी से बदल रहे है कि यह हमारे पुराने मूल्यों, संस्थाओं और परम्पराओं का अस्तित्व बनाये रखना मुश्किल हो रहा है। बसवन्ना आज से लगभग आठ सौ साल पहले हुए, लेकिन उनके विचार इतने आधुनिक और व्यावहारिक हैं इसलिए आज भी उनकी शिक्षाओं की प्रासंगिकता है। यदि भारतीय समाज द्वारा उनकी शिक्षाओं की अनुपालना की गई होती तो आज हमारे समाज का चित्र बिल्कुल अलग होता। वास्तव में बसवेश्वर को कर्नाटक और भारत का महान अवतारी पुरुष कह सकते हैं।

बसव जयंती  – Download PDF

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