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अनुच्छेद 368 (Article 368 in Hindi) – संविधान संशोधन की प्रक्रिया
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 25th, 2023
भारतीय संविधान के भाग 20 के अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन है। संविधान में संशोधन की प्रक्रिया दक्षिण अफ्रीका के संविधान से ली गई है। अनुच्छेद 368 में बताया गया है कि किस प्रकार से भारतीय संविधान में संशोधन किया जा सकता है।
Table of content
अनुच्छेद 368: संविधान संशोधन की प्रक्रिया (Constitution Amendment Procedure)
संविधान के प्रावधानों में परिवर्तन या उसमें नया प्रावधान जोड़ना संविधान का संशोधन कहलाता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का वर्णन है। संविधान में संशोधन मुख्य 2 प्रकार से हो सकता है:
1. अनौपचारिक संशोधन – न्यायपालिका द्वारा
2. औपचारिक संशोधन – संसद द्वारा
अनुच्छेद 368 के तहत संसद संविधान में संशोधन तीन प्रकार से कर सकती है:
(i) संसद के साधारण बहुमत द्वारा संशोधन।
(ii) संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधन।
(iii) संसद के विशेष बहुमत द्वारा एवं आधे राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के उपरांत संशोधन।
साधारण बहुमत द्वारा संशोधन: संसद के साधारण बहुमत द्वारा संविधान के अनेक उपबंध संसद के दोनों सदनों साधारण बहुमत से संशोधित किए जा सकते हैं। ये व्यवस्थाएं अनुच्छेद 368 की सीमा से बाहर हैं। इन व्यवस्थाओं में शामिल हैं:
1. नए राज्यों का प्रवेश या गठन।
2. नए राज्यों का निर्माण और उसके क्षेत्र, सीमाओं या संबंधित राज्यों के नामों का परिवर्तन।
3. राज्य विधानपरिषद का निर्माण या उसकी समाप्ति।
4. दूसरी अनुसूची – राष्ट्रपति, राज्यपाल, लोकसभा अध्यक्ष, न्यायाधीश आदि के लिए परिलब्धियां, भले विशेषाधिकार आदि।
5. संसद में गणपूर्ति।
6. संसद सदस्यों के वेतन एवं भत्ते।
7. संसद में प्रक्रिया नियम।
8. संसद, इसके सदस्यों और इसकी समितियों को विशेषाधिकार।
9. संसद में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग।
10. उच्चतम न्यायालयों में अवर न्यायाधीशों की संख्या।
11. उच्चतम न्यायालय के न्यायक्षेत्र को ज्यादा महत्व प्रदान करना।
12. राजभाषा का प्रयोग।
13. नागरिकता की प्राप्ति एवं समाप्ति।
14. संसद एवं राज्य विधानमंडल के लिए निर्वाचन।
15. निर्वाचन क्षेत्रों का पुनर्निर्धारण।
16. केंद्रशासित प्रदेश।
17. पांचवीं अनुसूची-अनुसूचित क्षेत्रों एवं अनुसूचितजनजातियों का प्रशासन।
18. छठी अनुसूची-जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन।
विशेष बहुमत द्वारा संशोधन:
संसद के विशेष बहुमत द्वारा संविधान के ज्यादातर उपबंधों का संशोधन संसद के विशेष बहुमत द्वारा किया जाता है अर्थात् प्रत्येक सदन के कुल सदस्यों का बहुमत (अर्थात् 38 प्रतिशत से अधिक) और प्रत्येक सदन के उपस्थित और मतदान के सदस्यों के दो-तिहाई का बहुमत कुल सदस्यता अभिव्यक्ति का अर्थ सदन के सदस्यों की कुल संख्या से है फिर चाहे इसमें रिक्तियां या अनुपस्थिति हो। स्पष्ट शब्दों में विशेष बहुमत की आवश्यकता विधेयक के तीसरे पठन-चरण पर केवल मतदान के लिए आवश्यक होती है। परन्तु पूर्ण बचाव के लिए विधेयक की सभी अवस्थाओं के संबंध में सभा के नियमों में विशेष बहुमत की आवश्यकता की व्यवस्था की गई है।
इस तरह से संशोधन व्यवस्था में शामिल हैं-
1. मूल अधिकार
2. राज्य की नीति के निदेशक तत्व, और;
3. वे सभी उपबंध, जो प्रथम एवं तृतीय श्रेणियों से संबद्ध नहीं हैं।
विशेष बहुमत द्वारा एवं आधे राज्य विधानमंडलों की संस्तुति के उपरांत संशोधन:
संसद के विशेष बहुमत एवं राज्यों की स्वीकृति द्वारा नीति के संघीय ढांचे से संबंधित संविधान के उपबंधों को संसद के विशेष बहुमत द्वारा संशोधित किया जा सकता है और इसके लिए यह भी आवश्यक है कि आधे राज्य विधानमंडलों में साधारण संविधान का बहुमत के माध्यम से उनको मंजूरी मिली हो। यदि एक, कुछ या बचे राज्य विधेयक पर कोई कदम नहीं उठाते तो इसका कोई फर्क नहीं पड़ता। आधे राज्य उन्हें अपनी संस्तुति देते हैं, तो औपचारिकता पूरी हो जाती है। विधेयक को स्वीकृति देने के लिए राज्यों के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं है।निम्नलिखित उपबंधों को इसके तहत संशोधित किया जा सकता है।
1. राष्ट्रपति का निर्वाचन एवं इसकी प्रक्रिया।
2. केंद्र एवं राज्य कार्यकारिणी की शक्तियों का विस्तार।
3. उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय।
4. केंद्र एवं राज्य के बीच विधायी शक्तियों का विभाजन।
5. सातवीं अनुसूची से संबद्ध कोई विषय।
Note: भारतीय संसद ने अनुच्छेद 368 का उपयोग करते हुए भारतीय संविधान में अभी तक 106 संशोधन किये हैं।
भारतीय संविधान के अन्य महत्वपूर्ण अनुच्छेद:
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