खिलाफत आंदोलन - Khilafat Andolan Hindi Mein
खिलाफत आंदोलन का मुख्य उद्देश्य तुर्की के खलीफा पद को पुनः स्थापित करना था। खिलाफत आंदोलन 1919 से 1924 तक चला था। हालाँकि इस आंदोलन का सीधा सम्बन्ध भारत से नहीं था। इस का प्रारम्भ 1919 में अखिल भारतीय कमिटी का गठन करके किया गया था। अखिल भारतीय कमिटी का गठन अली बंधुओं द्वारा किया गया था।
खिलाफत आंदोलन के उदय का कारण - Khilafat Andolan Ke Kaaran
खिलाफत आंदोलन का मुख्य कारण प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की की हार थी। प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात तुर्की के प्रति ब्रिटिश शासन के रवैये से सम्पूर्ण विश्व के मुसलमान आक्रोशित हो उठे थे । गौरतलब है कि प्रथम विश्व युद्ध में तुर्की ने ब्रिटेन के विरुद्ध जर्मनी एवं आस्ट्रिया का साथ दिया था, जिसके कारण ब्रिटेन ने तुर्की के प्रति कठोर रवैया अपनाया। तुर्की के साथ 'सेवर्स की संधि' करके तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य का विभाजन कर खलीफा को पद से हटा दिया था। मुसलमानों ने सेवर्स संधि (1920) की कठोर शर्तों को स्वयं के अपमान के तौर पर लिया। संपूर्ण आंदोलन मुस्लिम विश्वास पर आधारित था कि खलीफा (तुर्की का सुल्तान) पूरे विश्व के मुसलमानों का धार्मिक प्रधान था।
अंग्रेजों के इस कदम से विश्व भर के मुसलमानों (सुन्नी) में तीव्र आक्रोश व्याप्त हो गया, जिसके विरोध में वर्ष 1919 में अली बंधुओं मौहम्मद अली और सौकत अली, मौलाना आजाद, हकीम अजमल खान तथा हसरत मोहानी के नेतृत्व में 'खिलाफत कमेटी' का गठन किया गया। इसके साथ ही साथ ही वर्ष 1919 में दिल्ली में अखिल भारतीय सम्मेलन आयोजित किया गया इसमें अंग्रेजी वस्तुओं के बहिष्कार की मांग की गयी। महात्मा गांधी का विशेष सरोकार देश की आजाद को हासिल करने के लिए हिंदुओं और मुसलमानों को एक करना था खिलाफत आंदोलन को सन् 1920 में महात्मा गांधी द्वारा आरंभ किए गए असहयोग आंदोलन के साथ विलय कर दिया गया।
यह भी पढ़े | |
खिलाफत आन्दोलन के परिणाम - Result of Khilafat Andolan in Hindi
इस आन्दालेन के फलस्वरूप देश के मुस्लिम और हिन्दू संप्रदाय के लोग राष्ट्रीय आन्दालेन में शामिल हुए तथा राष्ट्र की मुख्य धारा से जुड़कर इस आन्दोलन में अपना योगदान दिया था। इस आन्दोलन ने हिन्दू-मुस्लिम एकता की भावना पर जोर दिया था। राष्ट्रीय आन्दोलन द्वारा केवल मुसलमानों की एक मांग उठाने से धार्मिक चेतना का राजनीति में समावेश हुआ, जिससे सांप्रदायिक शक्तियाँ मजबूत हुई थी।
असहयोग आंदोलन (1920-1922) - Non Cooperation Movement in Hindi
रोलेट सत्याग्रह की सफलता के पश्चात् गांधी जी ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ 'असहयोग आंदोलन' की मांग कर दी थी। खिलाफत आंदोलन के समर्थन को लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेताओं के मध्य विचारों में मतभेद था। बाल गंगाधर तिलक ने धार्मिक मुद्दे पर मुस्लिम समुदाय से संधि करने का विरोध किया था। इसके साथ ही कई राज्यों में भी खिलाफत का विरोध किया गया था। परन्तु 1 अगस्त 1920 को बाल गंगाधर तिलक जी की मृत्यु के पश्चात भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में विरोध के स्वर समाप्त हो गया, जिसके पश्चात् 31 अगस्त 1920 खिलाफत समिति ने औपचारिक तौर पर असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
खिलाफत आंदोलन PDF
असहयोग आंदोलन के अंतर्गत निम्नलिखित कदम उठाए गए थे:
- असहयोग आंदोलन, रौलैट अधिनियम, जलियांवाला बाग हत्याकांड और खिलाफत आंदोलन की अगली कड़ी थी।
- इसे दिसंबर, 1920 में नागपुर सत्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा अनुमोदित किया गया।
- असहयोग आंद्लन के कार्यक्रम निम्न थेः
- शीर्षकों और मानद पदों का अभ्यार्पण
- स्थानीय निकायों की सदस्यता से इस्तीफा
- 1919 अधिनियम के प्रावधानों के तहत आयोजित चुनावों का बहिष्कार
- सरकारी कार्यक्रमों का बहिष्कार
- कोर्ट, सरकारी विद्यालयों और विश्वविद्यालयों का बहिष्कार।
- विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
- राष्ट्रीय विद्यालयों, विश्वविद्यालयों और निजी पंचायत न्यायालयों की स्थापना।
- स्वदेशी वस्तुओं और खादी को लोकप्रिय बनाना।
- राष्ट्रीय विद्यालयों जैसे काशी विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ और जामिया मिलिया इस्लामिया की स्थापना की गई।
- विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस का कोई भी नेता आगे नहीं आया।
- सन् 1921 में वेल्स के राजकुमार के खिलाफ उनके भारत दौरे के दौरान बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन का आयोजन किया गया।
- ज्यादातर घरों में चरखों की सहायता से कपड़ा की बुनाई की जाने लगी।
- लेकिन चौरी चौरा घटना के बाद गांधी द्वारा 11 फरवरी, 1922 को सभी आंदोलनों को अकस्मात बुलाया गया।
- यू.पी. के गोरखपुर जिले में इससे पहले 5 फरवरी को क्रोधित भीड़ ने चौरी चौरा में स्थित पुलिस थाने को आग के हवाले कर दिया जिसमें 22 पुलिसकर्मी जलकर मारे गए।
असहयोग आंदोलन का महत्व
- यह भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों की भागीदारी के साथ वास्तविक जन-आंदोलन था।
- जैसे कि किसान, श्रमिक, छात्र, शिक्षक और महिलाएं इसमें शामिल थे।
- यह भारत के दूरदराज के क्षेत्रों में राष्ट्रवाद के प्रसार का साक्षी बना।
- इसने खिलाफत आंदोलन के विलय के परिणामस्वरूप हिंदू-मुस्लिम एकता की मजबूती को भी चिन्हित किया।
- इसने विपत्तियों का सामना करने और त्याग करने की जन समूह की स्वेच्छा और सामर्थ्य का प्रदर्शन किया।
Related Links:
Comments
write a comment