वैदिक साहित्य (Vedic literature in Hindi)
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 13th, 2023

आर्यों ने जिस धार्मिक साहित्य की रचना की थी, उन्हें वैदिक साहित्य (Vedic literature) नाम से जाना जाता है। वेद, प्राचीन भारत के पवित्र साहित्य हैं जो हिन्दुओं के प्राचीनतम और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं । भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। ‘वेद’ शब्द संस्कृत भाषा के वेद् ज्ञान धातु से बना है। जिसका शाब्दिक अर्थ ‘ज्ञान’ है। वैदिक साहित्य के अंतर्गत चार वेद, ब्राह्मण ग्रन्थ, अरण्यक, उपनिषद्, वेदांग और सूत्र-साहित्य आते हैं।
यहां, हम वैदिक साहित्य (Vedic literature) की पूरी अध्ययन सामग्री प्रदान कर रहे हैं, उम्मीदवार नीचे दी गई लिंक पर क्लिक करके वैदिक साहित्य (Vedic literature) से सम्बंधित सम्पूर्ण जानकारी का पीडीएफ़ हिंदी में डाउनलोड कर सकते हैं।
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वैदिक साहित्य (Vedic literature)
- वैदिक साहित्य का तात्पर्य उस विपुल ग्रन्थ राशि से है, जिसमें वैदिक संहिताएँ, ब्राह्मण ग्रन्थ, अरण्यक, उपनिषद् और वेदांग आते हैं। इनमें वैदिक संहिता को सबसे प्राचीन माना जाता हैं।
- वैदिक संहिताओं में चारों वेद ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद आते है। ऋग्वेद सबसे प्राचीनतम वैदिक साहित्य है तथा शेष तीन वेद- यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद का संकलन बाद में हुआ है।
- वैदिक साहित्य को ‘श्रुति’ भी कहा जाता है, क्योंकि ब्रह्मा ने विराटपुरुष भगवान् की वेदध्वनि को सुनकर ही प्राप्त किया है। अन्य ऋषियों ने भी इस साहित्य को श्रवण परम्परा से ही ग्रहण किया था तथा आगे की पीढ़ियों में भी ये श्रवण द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी स्थान्तरित होते गए। श्रुति परम्परा पर आधारित होने के कारण ही इन्हे श्रुति साहित्य कहा जाता है।
- वेदों की रचना कब हुई और उनमें किस काल की सभ्यता का वर्णन मिलता है, इसको लेकर मतभेद है। भारतीय वेदों को अपौरुषेय (किसी पुरुष द्वारा न बनाया हुआ) मानकर ईश्वर की रचना मानते हैं। किन्तु पश्चिमी विद्वान इन्हें ऋषियों की रचना मानते हैं और इनके लेखन काल के सम्बन्ध में उन्होंने अनेक कल्पनाएँ की हैं।
- मैक्समूलर के अनुसार वैदिक साहित्य का काल 1200 ई. पू. से 600 ई. पू. माना है। अर्थात आर्यों के भारत आगमन के समय ही वेदों की रचना हुई इसलिए आर्यों द्वारा विकसित सभ्यता को वैदिक सभ्यता कहा जाता है।
- वैदिक साहित्य के अंतर्गत चार वेद,(ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद) ब्राह्मण ग्रन्थ, अरण्यक, उपनिषद्, वेदांग और सूत्र-साहित्य आते हैं।
वैदिक साहित्य (Vedic literature) : वर्गीकरण
वैदिक संहिताएँ- संहिता का अर्थ है संग्रह। संहिताओं में विभिन्न देवताओं के स्तुतिपरक मंत्रों का संकलन है। संहिता विश्व का प्राचीनतम ग्रंथ है। संहिताओं में चार वेद – ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद आते हैं। इनमें ऋग्वेद सबसे प्राचीन तथा अथर्ववेद नवीनतम है।
1. ऋग्वेद-
- ऋग्वेद सबसे प्राचीनतम वेद है। इसकी रचना ई०पू० 1500 से ई०पू० 1000 माना जाता है। महाभाष्य में ऋग्वेद की 21 शाखाओं का उल्लेख है, जिनमें पाँच शाखाएँ शाकल, वाष्कल, शांखायन, आश्वलायन और माण्डूकेय प्रमुख हैं।
- ऋग्वेद का विभाजन मण्डलों में, मण्डल का विभाजन अनुवाकों में, अनुवाक का विभाजन सूक्तों में एवं सूक्त का विभाजन मंत्रों (ऋचाओं) में किया गया है। ऋग्वेद में 10 मण्डल, 85 अनुवाक, 1028 सूक्त (बाल खिल्य के 11 सूक्त को जोड़ने पर) एवं 10,627 (निश्चित ज्ञात नहीं) मंत्र (ऋचाएँ) हैं।
- ऋग्वेद में कुल वर्गों की संख्या 2024 हैं और मन्त्रों की संख्या 10,627 हैं। ऋग्वेद के वैदिक मंत्रों का आख्यान करने वाले और कर्मकांड करवाने वाले पुरोहित को ‘होतृ’ कहा जाता था।
- ऋग्वेद के अधिकांश मंत्रों की रचना ऋषियों ने की है लेकिन कुछ मंत्रों की रचना ऋषिकाओं (स्त्रियों) ने की है जिनके नाम लोपामुद्रा, अपाला, रोमशा, घोषा आदि हैं।
- ऋग्वेद के 10 मंडलो में से 2 से लेकर 8 तक प्राचीनतम मण्डल हैं वहीं प्रथम और 10वां मण्डल सबसे नवीनतम माना जाता है। ऋग्वेद के 1से एवं 10वें मण्डल को क्षेपक माना जाता है ।
- ऋग्वेद में कुल 25 नदियों का उल्लेख किया गया है। ऋग्वेद के दसवें मंडल के नदी सूक्त में 21 नदियों का उल्लेख है। इनमें सबसे पहले स्थान पर गंगा नदी का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के अनुसार, सिंधु आर्यों की सबसे प्रमुख नदी मानी गई है, जबकि सरस्वती को सबसे पवित्र और दूसरी सबसे महत्वपूर्ण नदी माना गया है। सरस्वती नदी ऋग्वेद में ‘नदीतमा/मातेतमा/देवीतमा ’ अर्थात ‘नदियों की माता कहा गया है।
- ऋग्वेद के दसवें मंडल के पुरुष सूक्त में एक विराट पुरुष द्वारा चार वर्णों की उत्पत्ति का उल्लेख मिलता है। इसके अनुसार, विराट पुरुष के मुख से ब्राह्मण की, भुजाओं से क्षत्रिय की, जांघों से वैश्य की और पैरों से शूद्र की उत्पत्ति हुई है।
- गायत्री मंत्र का उल्लेख ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है। यह सूर्य देवता सावित्री को समर्पित है।
- ऋग्वेद में अनेक वर्तमान नदियों के वैदिक नामों का उल्लेख हैं। ऋग्वेद में नदियों को उनके प्राचीन नामो में वर्णित किया गया है ये नदियाँ व उनके आधुनिक नाम निम्न हैं-
प्राचीन नाम | आधुनिक नाम |
---|---|
1. वितस्ता | झेलम |
2. विपाशा | व्यास |
3. परुष्णी | रावी |
4. दृषद्वती | घग्घर(चौतांग नदी) |
5. क्रुमु | कुर्रम |
6. कुभा | काबुल |
7. सदानीरा | गंडक |
8. अस्किनी | चिनाब |
9. शतुद्री | सतलज |
10. मरूद्वृधा | कमरुवर्मन |
11. गोमल | गोमती |
12. सिन्धु | सिंध |
13. सरस्वती | घग्घर |
14. सुषोमा | सोहन |
15. सुवास्तु | स्वात |
- ऋग्वेद में कुछ शब्दों का वर्णन कई बार हुआ है। जो कि निम्न हैं-
शब्द | उल्लेख | शब्द | उल्लेख |
---|---|---|---|
पिता | 335 बार | वर्ण | 23 बार |
जन | 275 बार | सेना | 20 बार |
इन्द्र | 250 बार | ब्राम्हण | 15 बार |
माता | 234 बार | ग्राम | 13 बार |
अश्व | 215 बार | बृहस्पति | 11 बार |
अग्नि | 200 बार | राष्ट्र | 10 बार |
गौ(गाय) | 176 बार | क्षत्रिय | 9 बार |
विश | 170 बार | समिति | 9 बार |
सोम देवता | 144 बार | सभा | 8 बार |
विद्थ | 122 बार | यमुना | 3 बार |
विष्णु | 100 बार | रुद्र | 3 बार |
गण | 46 बार | वैश्य | 1 बार |
ब्रज गोशाला | 45 बार | शूद्र | 1 बार |
नदी | 33 बार | गंगा | 1 बार |
वरुण | 30 बार | राजा | 1 बार |
कृषि | 24 बार | पृथ्वी | 1 बार |
- ऋग्वैदिक कालीन समाज पितृसत्तात्मक हुआ करता था। इस दौरान पिता की संपत्ति का उत्तराधिकारी सदैव पुत्र ही होता था। इस काल में नारी को माता के रूप में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। ऋग्वैदिक काल में सती प्रथा, बाल विवाह, पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियां मौजूद नहीं थी।
- वैदिक काल में इंद्र को सबसे प्रमुख देवता माना गया है। ऋग्वेद के दूसरे मंडल में इंद्र का सबसे अधिक 250 बार उल्लेख किया गया है। इंद्र के बाद अग्नि को दूसरा प्रमुख देवता माना गया है और अग्नि का उल्लेख ऋग्वेद में 200 बार किया गया है। इसके अलावा, ऋग्वेद में वरुण, सोम, मरूत, पर्जन्य, सूर्य पूषन इत्यादि देवताओं का उल्लेख भी मिलता है।
- ऋग्वैदिक कालीन आर्यों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन होता था। इस दौरान कृषि का पूर्ण विकास नहीं हो पाया था और ये लोग घुमक्कड़ जीवन जीते थे।
2. सामवेद-
- साम का अर्थ है गायन। इसमें यज्ञ के अवसर पर देवताओं को स्तुति के रूप में गाये जाने वाले मन्त्रों का संग्रह है। इस गायन को ‘साम’ कहते थे। प्रायः ऋचाएँ ही गाई जाती थीं। अतः समस्त सामवेद में गायन ऋचाएँ ही हैं। इनकी संख्या 1,875 है। इनमें से केवल 75 ही नई हैं, बाकी सब ऋग्वेद से ली गईं हैं।
- भारतीय संगीत का आदिग्रन्थ सामवेद को कहा जाता है। सामवेद का उच्चारण करने वाले पुरोहित को ‘उदगातृ’ या उदगाता कहा जाता था।
- सामवेद की तीन शाखाएँ कौथम, राणायनीय और जैमिनीय शाखाएँ मिलती है। पतंजलि के महाभाष्य और पुराणों में सामवेद की एक हजार शाखाओं का उल्लेख मिलता है।
- बौद्ध ग्रन्थ दिव्यावदान में सामवेद की एक हजार अस्सी (1080) शाखाओं का उल्लेख प्राप्त हैं, किन्तु इन भाषाओं में अधिकांश के नाम तक नहीं प्राप्त होते हैं।
- सामवेद के गान चार प्रकार के हैं-
1. ग्राम गान (ग्राम या सार्वजनिक स्थलों पर गाये जाने वाले गान),
2. आरण्य गान (अरण्य या वनों में गाये जाने वाले गाना),
3. उह गान (ग्राम गान का परिवर्तित एवं परिवर्द्धित रूप) एवं
4. उह्य गान (आरण्य गान का परिवर्तित एवं परिवर्द्धित रूप)।
इस प्रकार सामवेद का संगीत की दृष्टि से बहुत अधिक महत्व है। साम गायन संगीत शास्त्र की आधारशिला मानी जाती है। सामवेद को भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
3. यजुर्वेद-
- यजुर्वेद में यज्ञ-विषयक मन्त्रों का संग्रह है। इनका प्रयोग यज्ञ के समय अध्वर्यु नामक पुरोहित किया करता था। यजुर्वेद में 40 अध्याय हैं। तथा 1975 मन्त्र निहित है। पाश्चात्य विद्वान इसे ऋग्वेद से काफी समय बाद का मानते हैं।
- जटिल कर्मकाण्ड में उपयोगी होने के कारण यजुर्वेद अन्य सभी वेदों की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय है। यजुष का अर्थ होता है ‘यज्ञ’। यज्ञ के अवसर पर जिन मन्त्रों के द्वारा देवताओं का यजन किया जाता था उसे यजुर्वेद के अन्तर्गत संकलित किया गया है।
- यजुर्वेद के दो प्रमुख रूप/शाखा मिलते हैं। शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। शुक्ल यजुर्वेद पद्यात्मक है जबकि कृष्ण यजुर्वेद में गद्य और पद्य दोनों का मिश्रण है। कृष्ण यजुर्वेद में मंत्रों के साथ साथ उनकी व्याख्या भी मिलती है।
4. अथर्ववेद-
- अथर्ववेद अन्य तीनों वेदों से भिन्न है। इसमें आयुर्वेद सम्बन्धी सामग्री अधिक है। इसका प्रतिपाद्य विषय विभिन्न प्रकार की ओषधियाँ, ज्वर, पीलिया, सर्पदंश, विष-प्रभाव को दूर करने के मन्त्र सूर्य की स्वास्थ्य-शक्ति, रोगोत्पादक कीटाणुओ के शमन अदि का वर्णन है।
- इस वेद में यज्ञ करने के लाभ को तथा यज्ञ से पर्यावरण की रक्षा का भी वर्णन है। इसमें 20 काण्ड, 34 प्रपाठक, 111 अनुवाक, 731 सूक्त तथा 5,977 मन्त्र हैं, इनमें 1200 के लगभग मन्त्र ऋग्वेद से लिए गए हैं। अथर्ववेद का उच्चारण करने वाले पुरोहित को ‘ब्रह्म’ कहा जाता था
- पतञ्जलि ने महाभाष्य में अथर्ववेद की नौ शाखाओं का उल्लेख किया है, जिनमें पिप्पलाट, शौनक मौद जाजल, देवदर्श, चारण विद्या. स्त्रीद, जलद और ब्रह्मवद संहिताएँ है। इन संहिताओं में शौनक और पिप्पलाद संहिता ही उपलब्ध हैं। अथर्ववेद की शौनक संहिता अधिक प्रामाणिक मानी जाती है, इसमें 20 काण्ड, 731 सूक्त और 5987 मंत्र संग्रहीत हैं।
- इन मन्त्रों में कुछ मन्त्र ऋग्वेद से ग्रहण किये गये हैं। इनमें से 1200 मंत्र (लगभग 20%) ऋग्वेद (के 1ले, 8वें एवं 10वें मण्डल) से लिये गये हैं। अथर्ववेद को उसके रचयिताओं के नाम पर अथर्वांगीरस वेद कहा जाता है।
ब्राह्मण ग्रन्थ-
चारों वेदों के संस्कृत भाषा में प्राचीन समय में जो अनुवाद थे ‘मन्त्रब्राह्मणयोः वेदनामधेयम्’ के अनुसार वे ब्राह्मण ग्रंथ कहे जाते हैं। चार मुख्य ब्राह्मण ग्रंथ ऐतरेय, शतपथ, साम और गोपथ हैं | वेद संहिताओं के बाद ब्राह्मण-ग्रन्थों का निर्माण हुआ है। इनमें यज्ञों के कर्मकाण्ड का विस्तृत वर्णन है, साथ ही शब्दों की व्युत्पत्तियाँ तथा प्राचीन राजाओं और ऋषियों की कथाएँ तथा सृष्टि-सम्बन्धी विचार हैं। प्रत्येक वेद के अपने ब्राह्मण हैं।
वेद | ब्राह्मण | आरण्यक | उपनिषद् |
---|---|---|---|
ऋग्वेद | ऐतरेय, कोषीतिकी | ऐतरेय, कोषीतिकी | ऐतरेय, कोषीतिकी |
यजुर्वेद | शतपथ, तैतिरिय | वृहदारण्यक, तैतिरिय | वृहदा, ईश, कठोपनिषद, मैत्रायणी, तैतिरिय, कपिष्ठल |
सामवेद | पँचविश, षडविश, जैमिनी | छान्दोग्य, जैमिनी | छान्दोग्य, जैमिनी, कैन |
अथर्ववेद | गोपत | – | मुण्डक, माण्डुक्य, प्रश्न |
आरण्यक-
ब्राह्मणों के अन्त में कुछ ऐसे अध्याय मिलते हैं जो गाँवों या नगरों में नहीं पढ़े जाते थे। इनका अध्ययन-अध्यापन गाँवों से दूर (अरण्यों/वनों) में होता था, अतः इन्हें आरण्यक कहते हैं। गृहस्थाश्रम में यज्ञविधि का निर्देश करने के लिए ब्राह्मण-ग्रन्थ उपयोगी थे और उसके बाद वानप्रस्थ आश्रम में संन्यासी आर्य यज्ञ के रहस्यों और दार्शनिक तत्त्वों का विवेचन करने वाले आरण्यकों का अध्ययन करते थे। उपनिषदों का इन्हीं आरण्यकों से विकास हुआ। आरण्यको का मुख्य विषय आध्यात्मिक तथा दार्शनिक चिंतन है।
उपनिषद्-
- उपनिषदों में मानव-जीवन और विश्व के गूढ़तम प्रश्नों को सुलझाने का प्रयत्न किया गया है। ये भारतीय अध्यात्म-शास्त्र के देदीप्यमान रत्न हैं। इनका मुख्य विषय ब्रह्म-विद्या का प्रतिपादन है। वैदिक साहित्य में इनका स्थान सबसे अन्त में होने से ये ‘वेदान्त’ भी कहलाते हैं।
- इनमें जीव और ब्रह्म की एकता के प्रतिपादन द्वारा ऊँची-से-ऊँची दार्शनिक उड़ाने ली गई है। भारतीय ऋषियों ने गम्भीरतम चिन्तन से जिन आध्यात्मिक तत्त्वों का साक्षात्कार किया, उपनिषद उनका अमूल्य कोष हैं। इनमें अनेक शतकों की तत्त्व-चिन्ता का परिणाम है।
- चारों वेदों से सम्बद्ध 108 उपनिषद् गिनाये गए हैं, किन्तु 11 उपनिषद् ही अधिक प्रसिद्ध हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर इनमें छान्दोग्य और बृहदारण्यक अधिक प्राचीन और महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
- भारत का आदर्श वाक्य ‘सत्यमेव जयते’ मुंडकोपनिषद से लिया गया है।
वेदांग-
- काफी समय बीतने के बाद वैदिक साहित्य जटिल एवं कठिन प्रतीत होने लगा था। उस समय वेद के अर्थ तथा विषयों का स्पष्टीकरण करने के लिए अनेक सूत्र-ग्रन्थ लिखे जाने लगे। इसलिए इन्हें वेदांग कहा गया। वेदांग छः हैं- शिक्षा, छन्द, व्याकरण, निरुक्त, कल्प और ज्योतिष।
- पहले चार वेदांग, मन्त्रों के शुद्ध उच्चारण और अर्थ समझने के लिए तथा अन्तिम दो वेदांग धार्मिक कर्मकाण्ड और यज्ञों का समय जानने के लिए आवश्यक हैं।
- व्याकरण को वेद का मुख कहा जाता है, ज्योतिष को नेत्र, निरुक्त को श्रोत्र, कल्प को हाथ, शिक्षा को नासिका तथा छन्द को दोनों पैर कहा जाता है।
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सूत्र-साहित्य-
- वैदिक साहित्य के विशाल एवं जटिल होने पर कर्मकाण्ड से सम्बद्ध सिद्धान्तों को एक नवीन रूप दिया गया। कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक अर्थ-प्रतिपादन करने वाले छोटे-छोटे वाक्यों में सब महत्त्वपूर्ण विधि-विधान प्रकट किये जाने लगे। इन सारगर्भित वाक्यों को सूत्र कहा जाता था। कर्मकाण्ड-सम्बन्धी सूत्र-साहित्य को चार भागों में बाँटा गया है-
1. श्रौत सूत्र
2. गृह्य सूत्र
3. धर्म सूत्र
4. शुल्ब सूत्र
पहले में वैदिक यज्ञ सम्बन्धी कर्मकाण्ड का वर्णन, दूसरे में गृहस्थ के दैनिक यज्ञों का, तीसरे में सामाजिक नियमों का और चौथे में यज्ञ-वेदियों के निर्माण का वर्णन है।