एक राष्ट्र, एक चुनाव: लाभ, समिति, संविधान विधानों में परिवर्तन One Nation, One Election Study Notes
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 13th, 2023
![](https://bep-wordpress.byjusexamprep.com/wp-content/uploads/2023/08/24120954/external-image-3698.jpg)
स्वतंत्रता के बाद भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की स्थापना के बाद से “एक राष्ट्र, एक चुनाव” या “एक साथ चुनाव” नीति निर्माताओं के बीच चर्चा का विषय रहा है, यह विचार वर्ष 1983 से अस्तित्व में है, जब चुनाव आयोग ने पहली बार इसे प्रस्तावित किया था, हालाँकि वर्ष 1967 तक एक साथ चुनाव भारत में प्रतिमान थे, भारत में एक साथ चुनाव को विकास कार्यों पर आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) के प्रभाव को रोकने के लिए एक आवश्यक उपकरण के रूप में देखा गया है साथ ही विभिन्न स्तरों पर चुनाव व्यय में कटौती करने के लिए एक उपकरण के रूप में भी इसकी परिकल्पना की गयी।
Table of content
एक राष्ट्र, एक चुनाव / One Nation, One Election
यह लोकसभा, राज्य विधानसभाओं, पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ पांच साल में एक बार कराने को संदर्भित करता है, इसका मतलब यह नहीं है कि पूरे देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए मतदान एक ही दिन में होता है, यह चरणबद्ध तरीके से आयोजित किया जा सकता है और एक विशेष निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता उसी दिन राज्य विधानसभा और लोकसभा दोनों के लिए मतदान करते हैं। भारत के विधि आयोग ने 2018 में अपनी मसौदा रिपोर्ट में भारत में एक साथ चुनाव की संभावनाओं और चुनौतियों पर चर्चा की है।
भारत में एक साथ चुनावों का इतिहास:
आजादी के दो दशक बाद तक, देश में राज्य विधानसभाओं और संसद के निचले सदन (लोकसभा) के लिए एक साथ चुनाव आयोजित किये गए हैं, 1951-52, 1957, 1962 और 1967 के दौरान संसद के निचले सदन के साथ-साथ राज्य विधानमंडल के निर्वाचित प्रतिनिधियों के लिए चुनाव हुए लेकिन उसके बाद, 1967 के चुनाव में सत्ता में आयी कुछ क्षेत्रीय पार्टियों की सरकार 1968 तथा 1969 में गिर गई जिसके फलस्वरूप उन राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले ही भंग हो गई और 1971 में समय से पहले ही चुनाव कराने पड़े, तब यह क्रम टूट गया।
बार-बार आयोजित होने वाले चुनावों से समस्या:
- भारी खर्च।
- चुनाव के समय आदर्श आचार संहिता लागू होने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाला नीतिगत पक्षाघात।
- आवश्यक सेवाओं के वितरण पर प्रभाव।
- महत्वपूर्ण जनशक्ति पर बोझ जो चुनाव के समय तैनात किये जाते है।
- बार-बार आयोजित होने वाले चुनाव राजनीतिक दलों पर दबाव डालते हैं, विशेषतौर पर छोटे दलों पर।
एक साथ चुनाव के लाभ:
- सत्ताधारी दल हमेशा के लिए चुनाव अभियान मोड में रहने के बजाय कानून और शासन पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम होंगे।
- एक साथ चुनाव के साथ नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता आएगी।
- एक साथ चुनाव होने से विभिन्न राजनीतिक दलों और सरकार द्वारा दिए जाने वाले लोकलुभावन उपायों में कमी आएगी।
- सभी चुनाव एक साथ होने से मतदाताओं पर काले धन का प्रभाव कम होगा।
- बार बार चुनाव होने से प्रशासन और कानून व्यवस्था पर काफी धन खर्च किया जाता है एक साथ चुनाव होने से इस पर खर्च होने वाले धन में कमी आएगी।
चुनाव आयोग से संबंधित समिति:
स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव ही सही मायने में लोकतांत्रिक राष्ट्र को वैधता प्रदान करता है, भारत इस बात को भली भांति जानता है इसलिए समय–समय पर समितियों का गठन करके चुनाव प्रणाली में व्याप्त कमियों को दूर करने का प्रयास किया जाता रहा है। चुनाव आयोग से संबंधित कुछ मुख्य समितियां निम्नलिखित हैं-
- के. संथानम समिति (1962-1964)
- तारकुंडे समिति (1974- 1975 )
- दिनेश गोस्वामी समिति (1990)
- इंद्रजीत गुप्त समिति (1998)
एक साथ चुनावों को लागू करने के लिए, संविधान और विधानों में किए जाने वाले परिवर्तन:
- अनुच्छेद 83 जो संसद के सदनों की अवधि से संबंधित है, में संशोधन की आवश्यकता है।
- अनुच्छेद 85 (राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा का विघटन) में संशोधन की आवश्यकता है।
- अनुच्छेद 172 (राज्य विधानसभाओं की अवधि से संबंधित) में संशोधन की आवश्यकता है।
- लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 14 और 15 में संशोधन करना होगा।
- लोकसभा की प्रक्रिया के नियम में संशोधन की आवश्यकता है।
- राज्य विधानसभाओं की प्रक्रिया के नियम में संशोधन की आवश्यकता है।
- सदन के सदस्यों की अयोग्यता के बारे में 10वीं अनुसूची में संशोधन।
Download Free PDF of One Nation – One Election Notes
UPPCS के लिए Complete Free Study Notes, अभी Download करें
Download Free PDFs of Daily, Weekly & Monthly करेंट अफेयर्स in Hindi & English
NCERT Books तथा उनकी Summary की PDFs अब Free में Download करें