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बाबरनामा मूल रूप से किस भाषा में थी?

By Balaji

Updated on: February 17th, 2023

बाबरनामा मूल रूप से चगताई भाषा में थी। बाबरनामा को तुजुक-ए-बाबरी के नाम से भी जाना जाता है और ये प्रथम मुगल सम्राट बाबर की आत्मकथा है। चगताई भाषा, बाबर की मातृभाषा थी।बाबरनामा मुगल काल में सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथों में से एक थी क्योकि इसमें, मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर (1483-1530) की साहित्यिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक दुनिया का वर्णन किया गया है। केवल दो मुगल नेताओं, बाबर और जहांगीर ने अपनी आत्मकथाएँ लिखीं।

Table of content

(more)
  • 1. बाबरनामा के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (more)
  • 2. बाबरनामा मूल रूप से किस भाषा में थी? (more)

बाबरनामा के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य

बाबरनामा शाही आत्मकथाओं या आधिकारिक अदालती आत्मकथाओं की वैश्विक परंपरा का हिस्सा है। दक्षिण एशिया में, इनका पता प्राचीन भारतीय अशोकवदना और हर्षचरित, मध्यकालीन पृथ्वीराज रासो में लगाया जा सकता है, और मुगलों द्वारा अकबरनामा (जीवनी), तुज़्क-ए-जहाँगीरी या जहाँगीर-नाम (संस्मरण), और शाहजहाँनामा के साथ जारी रखा गया था।

बाबर का असली नाम जहीर-उद-दीन मुहम्मद था और बाबर शब्द फारसी से लिया गया था, जिसका अर्थ बाघ होता है। इनका जन्म 14 फरवरी, 1483 और मृत्यु 26 दिसंबर, 1530 को हुई थी। बाबर ने भारत में मुगल साम्राज्य की स्थपना की थी, मुगल साम्राज्य काफी लम्बे समय तक चलने वला साम्राज्य था। इस साम्राज्य ने भारत और उसके उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्से को कवर किया था और भारतीय संस्कृति को आकर भी दिया था। बाबर के बारे में अधिक जानकारी यहाँ देखें:

  • बाबर ने 1526 में पानीपत की लड़ाई में इब्राहिम लोदी को हराया।
  • उसने 1527 में खानवा की लड़ाई में राणा सांगा को हराया।
  • काबुल की विजय के बाद उसने पदशाह की उपाधि धारण की।
  • वह अपनी सफलता और निराशा या अपनी कमियों के बारे में सच्चाई के साथ व्याख्या करता है, जो पढ़ने वाले को बहुत आकर्षित करता है।
  • उनकी रचना करने का तरीका कई फ़ारसी लेखकों की तरह भव्य या विस्तृत नहीं है। बल्कि, यह सीधा और स्पष्ट है, जिसमें कोई दिखावटी बात नहीं है।

Summary:

बाबरनामा मूल रूप से किस भाषा में थी?

बाबरनामा चगताई भाषा में लिखी गयी थी और ये भाषा बाबर की मातृभाषा थी। बाबरनामा, बाबर की आत्मकथा है, जिसमे उनके साहित्यिक, बौद्धिक और सांस्कृतिक जीवन का वर्णन था। बाबरनामा को इस्लामी साहित्य की पहली सच्ची आत्मकथा के रूप में भी जाना जाता है। अकबर के शासन काल में पांडा खान ने बाबरनामा का फारसी भाषा में अनुवाद किया। और एनेट सुसन्नाह बेवरिज ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया है।

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