टॉमस ईस्टर्न इलियट (निर्वैयक्तिकता सिद्धांत) :
- इलियट का जन्म १८८८ ई में अमेरिका में हुआ। यह दि क्राइटेरियन के संपादक थे तथा द वेस्टलैंड के लिए नोबेल से पुरस्कृत।
- इनकी प्रमुख पुस्तके हैं - द सेक्रेड वुड (१९२०) , होमेज टू जॉन ड्राइडन (१९२४), एलिजाबेथन एसेज़ (१९३२), द यूज ऑफ पोएट्री एंड यूज ऑफ़ क्रिटिसिज़्म (१९३३), सिलेक्टेड एसेज (१९३४)
- इलियट के गुरु नाम आयरविंग बेबिट और जार्ज सांतायना था।
- एलियट की आलोचना का मूलाधार लेख 'ट्रेडिशन एण्ड दि इंडिविजुअल टैलेंट' (परम्परा और वैयक्तिक प्रज्ञा) 'दि सेक्रेड वुड में संकलित है।
- इलियट ने अपनी आलोचना को “निजी काव्य-कर्मशाला का उपजात (by Product) या काव्य-निर्माण के प्रसंग में अपने चिन्तन का विस्तार" कहा है। इलियट के अनुसार कारयित्री और भावयित्री प्रतिभा परस्पर पूरक है। साथ ही कहा कि आलोचक और सर्जक (कवि) प्रायः एक ही व्यक्ति को होना चाहिए।
- एजरा पाउण्ड के अनुसार, कवि वैज्ञानिक के समान ही निर्वैयक्तिक और वस्तुनिष्ठ होता है। कवि का कार्य आत्मनिरपेक्ष होता है। एजरा के मत से प्रभावित होकर इलियट ने अनेकता में एकता बांधने के लिए परम्परा को आवश्यक माना, जो कि वैयक्तिकता का विरोधी है।
- इलियट ने निर्वैयक्तिकता का अर्थ बताया कि कवि व्यक्तिगत भावों की विशिष्टता का सामान्यीकरण करता है। उनके अनुसार कवि अपनी तीव्र संवेदना और ग्रहण क्षमता से अन्य लोगों की अनुभूतियों को ग्रहण कर लेता है, परन्तु वे ग्रहण अनुभूतियाँ उसकी निजी अनुभूतियाँ बन जाती हैं।
- कविता के घटक होते हैं तत्त्व, विचार, अनुभूति, अनुभव, बिम्ब, प्रतीक आदि। ये सभी व्यक्ति के निजी या वैयक्तिक अनुभव होते हैं। कलाकार जब अपनी तीव्र संवेदना और ग्रहण शक्ति के माध्यम से अपने अनुभवों को काव्य रूप में प्रकट करता है, तो वे व्यक्तिगत होते हुए भी सबके लिए अर्थात् सामान्य बन जाते हैं। भाव ही नहीं कविता के माध्यम से कवि अपनी वैयक्तिक सीमाओं से भी मुक्त हो जाता है। उसका स्वर एक व्यक्ति का स्वर न रहकर सर्वजन का स्वर बन जाता है।
- रस सिद्धान्त के अन्तर्गत बात साधारणीकरण की प्रक्रिया के अन्तर्गत कही गई, वहीं बात निर्वैयक्तिकता के संसद्धान्त के अन्तर्गत कही गई है।
- अतः यह कहा जा सकता है कि साधारणीकरण का सिद्धान्त तथा निर्वैयक्तिकता का सिद्धान्त समान है। भारतीय आचार्यों ने साधारणीकरण या निर्वैयक्तिकता की खोज 8वी-9वीं शताब्दी में कर ली थी, जबकि उसी की खोज पाश्चात्य साहित्य जगत् में इलियट ने 20वीं शताब्दी में की।
परंपरा की अवधारणा :
- इलियट से पूर्व 19वीं शताब्दी में अंग्रेजी में जिस रोमांटिक समीक्षा का प्रचलन था, वह कवि की वैयक्तिकता और कल्पनाशीलता को विशेष महत्त्व देती थी। 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में वाल्टर पेटर और ऑस्कर वाइल्ड ने 'कलावाद' को बहुत अधिक महत्व दिया। इसका अर्थ है कि 19वीं शताब्दी की अंग्रेजी समीक्षा कृति के स्थान पर कवि और उसकी वैयक्तिकता को महत्व देती थी।
- स्वछन्दतावादी विद्वान् कवि की प्रतिभा और अन्तःप्रेरणा को ही काव्य-सृजन का मूल मानते थे और प्रतिभा को दैवी गुण स्वीकार करते थे। इसे 'वैयक्तिक काव्य सिद्धान्त' कहा गया। इस मान्यता को इलियट ने अपने निबन्ध 'परम्परा और वैयक्तिक प्रज्ञा' में स्थान दिया और लिखा “परम्परा के अभाव में कवि छाया मात्र है और उसका कोई अस्तित्व नहीं होता।” इलियट के अनुसार, "परम्परा अत्यन्त ही महत्त्वपूर्ण वस्तु है, परम्परा को छोड़ देने से हम वर्तमान को भी छोड़ बैठेगे।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि परम्परा के अन्दर ही कवि की वैयक्तिक प्रज्ञा की सार्थकता स्वीकार्य होनी चाहिए।
- परम्परा का अर्थ स्पष्ट करते हुए इलियट ने कहा कि “इसके अन्तर्गत उन सभी स्वाभाविक कार्यों, प्रवृत्तियों, रीति-रिवाजों का समावेश होता है, जो स्थान विशेष पर रहने वाले लोगों के सह-सम्बन्ध का प्रतिनिधित्व करते हैं। परम्परा के अन्दर विशिष्ट धार्मिक आचारों से लेकर आगन्तुक के स्वागत की पद्धति और उसको सम्बोधित करने का ढंग, सब कुछ समाहित है।"
- उनका मानना है कि परम्परा ज्ञान के आभाव में हम यह कैसे जान सकते हैं कि मौलिकता क्या है और कहाँ है ? संस्कृति में एक प्रकार की निरंतरता रहती है, अतः उसकी प्राप्ति के लिए प्रय्यत्नशील रहकर अतीत कप जानना आवश्यक होता है।
आई. ए. रिचर्ड्स (मूल्य, संप्रेषण सिद्धांत) :
- ईवर आर्मस्ट्रोंग रिचर्ड्स (1893-1979) को अंग्रेजी साहित्य में प्रथम व्यापक और व्यवस्थित सौन्दर्यशास्त्र के निर्माण का श्रेय दिया जाता है।
- रिचर्ड्स ने सौन्दर्य को वस्तुनिष्ठ न मानकर पाठक या दर्शक पर पड़ने वाले प्रभाव के रूप में देखने का आग्रह किया। अर्थात सौन्दर्य की स्थिति किसी वस्तु में नहीं बल्कि पाठक या दर्शक के मन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव में होती है।
- रिचर्ड्स ने निम्न पुस्तकों की सहलेखन मे की :
पुस्तक | सहलेखक |
दि फाउंडेशन ऑफ एस्थेटिक (१९२२) | सी. के. ऑग्डेन और जेम्स वुड |
दि मीनिंग ऑफ मीनिंग (१९२३) | सी. के. ऑग्डेन |
- रिचर्ड्स के अन्य ग्रन्थ निम्न हैं :
(1) दि प्रिंसिपल्स ऑफ लिटरेरी क्रिटिसिज्म (1924), (2) प्रैक्टिकल क्रिटिसिज्म (1929), (3) साइंस एण्ड पोएट्री (1926), (4) दि फिलॉसफी ऑफ रेटारिक (1936)
- रिचर्ड्स ने आलोचना के दो भेद किये हैं :
(1) आलोचनात्मक – इसमें अनुभूति के मूल्य का वर्णन होता है।
(2) प्राविधिक – इसमें अनुभूति के साधनों का वर्णन होता है।
- रिचर्ड्स आलोचना को मनोविज्ञान की एक शाखा मानते हैं। रिचर्ड्स मूल्य और अनुभूति में कोई भेद नहीं मानते अर्थात जीवनानुभूति और काव्यानुभूति दोनों पर्याय हैं।
- रिचर्ड्स की आलोचना के दो मूलाधार स्तम्भ है :
(1) मूल्य सिद्धान्त कोई भी जो इच्छा को सन्तुष्ट करे मूल्यावान है। या विभिन्न जटिल रूपों में भावना और इच्छा की सन्तुष्टि की क्षमता मूल्य है।
(2) सम्प्रेषण सिद्धान्त सम्प्रेषण का अर्थ न तो अनुभूति का यथावत अन्तरण। और न दो व्यक्तियों के बीच अनुभूति का तादात्म्य बल्कि कुछ अवस्थाओं में विभिन्न मनों की अनुभूतियों की अत्यन्त समानता ही सम्प्रेषण है। रिचर्ड्स ने लिखा है, "नैतिकता सिर्फ दुनियादारी है और आचार संहिता इष्टसिद्धि की सामान्यतम व्यवस्था की अभिव्यक्ति है।”
- रिचर्ड्स आवेगों की शान्ति द्वारा सन्तुलित विश्रांति' को काव्य का प्रयोजन मानते हैं। साथ ही आनन्द को प्रयोजन में कोई स्थान नहीं देते।
आवेग | काव्य | विशेषता |
सजातीय | अपवर्जी | जिसमे एक भाव का वर्णन हो। |
विजातीय | अंतर्वेशी | जिसमे विरोधी भावों का संश्लेषण हो। |
- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण ही आलोचना का चरम लक्ष्य है।
- रिचर्ड्स भाषा के दो रूप माने जै (1) वैज्ञानिक (Symbolic), और (2) रागात्मक (Emotive) |
- रिचर्ड्स के अनुसार अर्थ के चार प्रकार है :
(1) मुख्यार्थ (Sense), (2) भावना (Feeling) (3) वचन भंगी (Tone)और (4) उद्देश्य (Intention) |
काव्य भाषा सिद्धांत -
- रिचर्ड्स ने अर्थ और भाव के पारस्परिक सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए उसके तीन रूप स्वीकार किए
- जहाँ अर्थ भाव का बोधक हो,
- जहाँ अर्थ भाव की अनुभूति का सूचक हो तथा
- जहाँ प्रसंग विशेष के कारण अर्थ विभिन्न भावों का सूचक हो।
- काव्यास्वादन की प्रक्रिया द्वारा काव्य प्रेषण की प्रक्रिया का विश्लेषण हुए रिचर्ड्स ने उसे छ: भागों में विभक्त किया :
- नेत्रों द्वारा मुद्रित शब्दों की स्पष्टता व शुद्धता का बोध
- नेत्रों से प्राप्त संवेदनाओं के द्वारा बिम्बों का बनना
- स्वतन्त्र रूप से बिम्बों को ग्रहण करना
- विभिन्न वस्तुओं का बोध होना
- भाषा की अनुभूति तथा
- दृष्टिकोणों का प्रयोग
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, पाश्चात्य काव्यशास्त्र से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
Thank you
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