विलियम वर्ड्सवर्थ का काव्यभाषा सिद्धांत :
- विलियम वर्ड्सवर्थ का समय काल 1770 -1850 था। इनका जन्म इंग्लैंड में हुआ। वर्ड्सवर्थ को पोइटलारियट की उपाधि दी गयी थी।
- वर्ड्सवर्थ का प्रथम काव्य संग्रह ‘एन इवनिंग वाक एंड डिस्क्रिप्टिव स्केचेज़’ सन १७९३ में प्रकाशित हुआ।
- वर्ड्सवर्थ १७९५ ई. में कॉलरिज के मित्र बने तथा उनके ही सहलेखन में ‘लिरिकल बैलेड्ज’ नामक कविताओं का प्रथम संस्करण १७९८ ई. में प्रकाशित करवाया।
- ‘लिरिकल बैलेड्ज’ को स्वच्छान्दतावादी काव्यान्दोलन का घोषणा पत्र माना जाता है।
- इस पुस्तक के ४ संस्करण प्रकाशित हुए :
संस्करण | भूमिका के शीर्षक |
प्रथम , १७९८ | एडवर्टिस्मेंट |
द्वितीय , १८०० | प्रीफेस |
तृतीय , १८०२ | प्रीफेस |
चतुर्थ , १८१५ | प्रीफेस |
- वर्ड्सवर्थ ने कविता को परिभाषित करते हुए लिखा “ कविता प्रबल भावों का सहज उच्छलन है।”
- उन्होंने काव्य-भाषा सम्बंधित तीन मान्यताएं प्रस्तुत की :
- काव्य में ग्रामीणों की दैनिक बोलचाल की भाषा का प्रयोग होना चाहिए।
- काव्य और गद्य की भाषा में कोई तात्विक भेद नहीं है।
- प्राचीन कवियों का भवोद्द्वेग जितना सहज था , उनकी भाषा उतनी ही सरल थी। भाषा में कृत्रिमता और आडम्बर बाद के कवियों की देन है।
- उनका यह भी मानना है की काव्य और गद्य में अंतर केवल छंद के कारण होता है।
सैमुएल टेलर कॉलरिज (कल्पना और फैंटसी) :
- कॉलरिज का जन्म १७७२ ई में इंग्लैंड में हुआ तथा इनकी मृत्यु १८८३४ ई में हुई।
- कॉलरिज की प्रमुख गद्य रचनाएँ निम्न हैं : १) डी फ्रेंड, १८१७ २) एड्स टू रिफ्लेक्शन १८२५ ३) चर्च एंड स्टेट, १८३० ४) कंफेशंस ऑफ एन एन्क्वाइरिंग स्पिरिट, १८४०
- कॉलरिज प्रत्ययवादी थे और उनकी काव्य संबंधी धारणा जैव वादी सिद्धांत पर आधारित है।
- कोलरिज के अनुसार, "कविता रचना का वह प्रकार है जो वैज्ञानिक कवियों के इस अर्थ में भिन्न है कि उसका तात्कालिक प्रयोजन आनन्द है, सत्य नहीं, और ना अन्य सभी प्रकारों से उसका अन्तर यह है कि सम्पूर्ण से वही आनन्द प्राप्त होना चाहिए। उसके प्रत्येक अवयव से प्राप्त होने वाली स्पष्ट सन्तुष्टि के अनुरूप हो।"
- कोलरिज ने प्रतिभा और प्रज्ञा में निम्न अन्तर बताया है :
प्रतिभा | प्रज्ञा |
सहज | अर्जित |
कल्पना | रम्यकला |
सृजनशीलता | संयोजनशीलता |
मौलिक | पराश्रित |
- कोलरिज का भाषा सम्बन्धी विचार निम्नलिखित है "भाषा मानव मन का शवागार है. जिसमें उसके अतीत के विजय स्मारक और भावी विजय के शास एक साथ रहते हैं।"
- कोलरिज के अनुसार काव्य सर्जन का मूलाधार कहानी है। इसके दो भेद है-
मुख्य कल्पना | गौण कल्पना |
यह समस्त जागतिक प्रपंच को व्यवस्थित रूप में ग्रहण कराने वाली शक्ति है। | यह मुख्य कल्पना की प्रतिध्वनि होती है। इसे काव्यात्मक कल्पना भी कहते हैं। |
यह अचेतन एवं अनैच्छिक है। | यह चेतन एवं ऐच्छिक है। |
यह निर्माण या संघटन करती है। | यह विघटन और संघटन, विनाश और निर्माण दोनों करती है। |
- कोलरिज ने कल्पना के सम्बन्ध में लिखा है, "इसमें संश्लेषात्मक तथा जादुई न होती है जो विरोधी या विसंवादी धर्मों में सन्तुलन स्थापित करती है।"
- 'इमैजिनेशन शब्द की उत्पत्ति लैटिन के 'इमाजिनातियों' (Imaginatio) से हुई जसका हिन्दी रूपान्तर 'कल्पना है।
- फैन्सी' शब्द की उत्पत्ति ग्रीक के 'फांतासिया' (Phantasia) से हुई है, जिसका रूपान्तर रम्यकल्पना' या 'ललित कल्पना' है।
- 'रम्यकल्पना' की निम्नांकित विशेषताएँ हैं-
- यह देश-काल के बन्धन से मुक्त एक प्रकार की स्मृति मात्र है।
- यह इच्छा शक्ति से संचालित एवं रूपान्तरित होती है।
- यह अपने उपयोग की सामग्री सहचर्य-नियम से ग्रहण करती है।
- इसकी उपयोज्य सामग्री स्थिर तथा सुनिश्चित होती है।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, पाश्चात्य काव्यशास्त्र से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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