प्रमुख काव्य सम्प्रदाय तथा सिद्धांत :
प्रमुख काव्य संप्रदाय एवं सिद्धांत निम्नलिखित हैं -
- रस संप्रदाय व् सिद्धांत - आचार्य भारत मुनि
- अलंकार संप्रदाय व् सिद्धांत - आचार्य भामह
- रीति संप्रदाय व् सिद्धांत - आचार्य वामन
- ध्वनि संप्रदाय व् सिद्धांत - आचार्य आनंदवर्धन
- वक्रोक्ति संप्रदाय व् सिद्धांत कुंतक - आचार्य कुंतक
- औचित्य संप्रदाय सिद्धांत - आचार्य क्षेमेन्द्र
1. रस संप्रदाय सिद्धांत :
- रस संप्रदाय तथा सिद्धांत के प्रथम आचार्य भरतमुनि है। उन्होंने रस को काव्य का प्राण तत्व माना है। उनके अनुसार , काव्य में रस तत्व के अभाव में किसी भी अर्थ का प्रवर्तन नहीं होता। अग्निपुराण में रस को काव्य की स्वीकार किया गया है।
- भरतमुनि ने अपने ग्रन्थ में रस की उद्भावना रस सूत्र से की है।
“विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद्रसनिष्पत्ति”
- अर्थात विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी(संचारी) भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
- अलंकार संप्रदाय तथा सिद्धांत - भारतीय काव्यशास्त्र में अलंकार सिद्धांत का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रारम्भ में काव्यशास्त्र के नाम के साथ अलंकार जोड़कर कई ग्रन्थ लिखे गए , जैसे - भामह का ‘काव्यालंकार’ , उद्भट का ‘काव्यलंकार सार संग्रह’, वामन का ‘काव्यालंकार सूत्र’ , रुद्रट का ‘काव्यालंकार’ तथा रुय्यक का ‘अलंकार सर्वस्व’ इत्यादि।
- इस संप्रदाय का प्रवर्तन आचार्य भामह ने किया। उनका मत था -
“न कान्तमपि निर्भूषं विभाति वनितामुखम्”
- अर्थात जिस प्रकार कामिनी का मुख सुन्दर होते हुए भी आभूषणों के बिना सुशोभित नहीं होता, उसी प्रकार अलंकारों के बिना काव्य की शोभा नहीं होती।
- भामह ने वक्रोक्ति को सम्पूर्ण अलंकारों में व्याप्त बतलाते हुए उसे अलंकारों का एकमात्र आशय माना है।
- दंडी ने काव्य के शोभाकारक धर्म को अलंकार माना है।
- वामन ने दण्डी के मत का विरोध किया और कहा की काव्य के शोभाकारक धर्म गुड़ है तथा अलंकार उस शोभाकारक धर्म का संवर्धन करने वाला हेतु है।
- इसके पश्चात् आनंदवर्धन, मम्मट, विश्वनाथ आदि ने अलंकार का महत्व और काम कर दिया। वस्तुतः अलंकार काव्य के बाह्य शोभाकारक धर्म है।
- रीति संप्रदाय व् सिद्धांत -
- रीति संप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वामन हैं। इसे गुण संप्रदाय भी कहा जाता है।
- रीति का अर्थ है गति, मार्ग, प्रस्थान, पंथ, प्रणाली, पद्धति इत्यादि।
- वामन ने अपने ग्रन्थ में लिखा है “विशिष्ट पदरचना रीतिः” अर्थात विशिष्ट पद रचना को रीति कहते हैं।
- गुण लक्षण करते हुए वामन लिखते हैं - “काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मः गुणो” अर्थात गुणों में वे सभी तत्व सन्निहित हैं , जो अनिवार्य रूप से काव्य की शोभा बढ़ाते हैं। ये गुण हैं - श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता, ओज,कांति और समाधि।
- ध्वनि संप्रदाय व् सिद्धांत -
- आनंदवर्धन ने अपने ग्रन्थ ध्वन्यालोक में ध्वनि सिद्धांत की स्थापना की। इससे पूर्व काव्यशास्त्र में अलंकार, रस, रीति आदि सिद्धांतों का प्रवर्तन हो चुका था।
- ध्वनि का सर्वप्रथम भाषाशास्त्र में हुआ था।
- वर्णों के विस्फोट को भाषा में ध्वनि कहा गया।
- इसके स्वरुप का विवेचन करते हुए आनंदवर्धन लिखते हैं “जहाँ शब्द और अर्थ अपने अभिधात्मक अर्थ को चिढ़कर किसी अन्य अर्थ को ध्वनित करते हैं, उस विशेष प्रकार के काव्य को विद्वान् ध्वनि कहते हैं।
- काव्यशास्त्र में तीन शक्तियों का उल्लेख है - अभिधा, लक्षण, व्यंजना।
- वक्रोक्ति संप्रदाय व् सिद्धांत -
- इस सिद्धांत के प्रवर्तक आचार्य कुंतक हैं। उन्होंने दसवीं शताब्दी में ‘वक्रोक्तिजीवितम्’ नामक ग्रन्थ लिखकर अपने वक्रोक्ति सिद्धांत का प्रणयन किया।
- आचार्य कुंतक वक्रोक्ति को अत्यंत व्यापक रूप में स्वीकार करते हुए इसे काव्य की आत्मा घोषित किया है।
- वह कहते हैं “शब्द और अर्थ दोनों अलंकार्य होते हैं तथा विदग्धतापूर्ण कथन रुपी वक्रोक्ति ही इस दोनों का अलंकार होती है।” यहाँ अलंकार से आशय काव्य तत्व है।
- वक्रोक्ति के भेद - वर्ण विन्यास वक्रता, पद पूर्वार्ध वक्रता, पद परार्ध वक्रता, वाक्य वक्रता, प्रकरण वक्रता, प्रबंध वक्रता।
- औचित्य संप्रदाय व् सिद्धांत -
- औचित्य संप्रदाय का प्रवर्तन आचार्य क्षेमेन्द्र ने किया था।
- औचित्य से तात्पर्य है - उचित व्यवहार, उचित कार्य अथवा उचित आचरण। किन्तु साहित्यशास्त्र में औचित्य से अभिप्राय है - काव्यांगों की उचित योजना।
- क्षेमेन्द्र ने अपने ग्रन्थ ‘औचित्य विचार चर्चा’ में औचित्य की परिभाषित करते हुए लिखा - “जो जिस स्थान के अनुरूप हो अथवा जो जहां सही हो, उसी स्थान पर उसका प्रयोग उचित कहलाता है और उचित का भाव ही औचित्य है।
- औचित्य के भेद - अलंकार औचित्य, गुण औचित्य, संगठन औचित्य, प्रबंध औचित्य, रीति औचित्य तथा रस औचित्य।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, भारतीय काव्यशास्त्र (प्रमुख काव्य संप्रदाय एवं सिद्धांत) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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