प्रमुख काव्य सम्प्रदाय तथा सिद्धांत :
प्रमुख काव्य संप्रदाय एवं सिद्धांत निम्नलिखित हैं -
- रस संप्रदाय व् सिद्धांत - आचार्य भारत मुनि
- अलंकार संप्रदाय व् सिद्धांत - आचार्य भामह
- रीति संप्रदाय व् सिद्धांत - आचार्य वामन
- ध्वनि संप्रदाय व् सिद्धांत - आचार्य आनंदवर्धन
- वक्रोक्ति संप्रदाय व् सिद्धांत कुंतक - आचार्य कुंतक
- औचित्य संप्रदाय सिद्धांत - आचार्य क्षेमेन्द्र
रस संप्रदाय सिद्धांत :
रस संप्रदाय तथा सिद्धांत के प्रथम आचार्य भरतमुनि है। इन्होने रस को काव्य का प्राण तत्व माना है। उनके अनुसार , काव्य में रस तत्व के अभाव में किसी भी अर्थ का प्रवर्तन नहीं होता। अग्निपुराण में रस को काव्य की स्वीकार किया गया है।
भरतमुनि ने अपने ग्रन्थ में रस की उद्भावना रस सूत्र से की है।
“विभावानुभाव व्यभिचारी संयोगाद्रसनिष्पत्ति”
अर्थात विभाव, अनुभाव और व्यभिचारी(संचारी) भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
रस के अवयव-
जिनके कारण रस की निष्पत्ति या अनुभूति होती है उन्हें रस के अवयव या अंग कहा जाता है।
- स्थायी भाव : सहृदय व्यक्तियों के ह्रदय में वासना रुपी स्थित भाव स्थायी भाव कहलाते हैं। आचार्य विश्वनाथ ने अपने ग्रन्थ ‘साहित्य दर्पण’ में कहा है , “स्थायी भाव ह्रदय में सुप्तावस्था में रहते हैं। उचित अवसराकूल होकर रस में परिणत हो जाते हैं।
- विभाव : विभाव का अर्थ ‘कारण’ है। अतः जो कारण किसी व्यक्ति या आश्रय के ह्रदय में स्थायी भावों को उद्दीप्त करे , उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव के दो भेद होते हैं: आलंबन व् उद्दीपन।
- अनुभाव : विभाव के पश्चात अनुभाव उत्पन्न होते हैं। अतः आश्रय की चेष्टाओं को पुष्ट करने वाले भाव अनुभाव कहलाते हैं। अनुभाव के चार भेद होते हैं : कायिक(शरीर कृत्रिम चेष्टाएँ), वाचिक या मानसिक (हर्ष -विषाद का अनुभव), आहार्य (मनोनुरूप वस्त्राभूषण धारण करना) तथा सात्विक (सत्व या प्राण के उद्रेक से उत्पन्न स्थायी भाव)
- संचारी भाव :स्थायी भाव को पुष्ट करने वाले भाव संचारी भाव कहलाते हैं। स्थायी भावों के अतिरिक्त अन्य सभी भाव संचारी भाव हैं। इनकी संख्या ३३ मानी गयी है।
रस सूत्र की व्याख्या :
भरतमुनि के सूत्र में आए ‘संयोग’ और ‘निष्पत्ति’ शब्द की व्याख्या जिन चार चारों ने की उन्हें रस सूत्र के व्याख्याता आचार्यों के रूप में जाना जाता है।
- भट्ट्लोलट का उत्त्पत्तिवाद : भरतमुनि के रस सूत्र की व्याख्या सर्वप्रथम इन्होने की। भरतमुनि द्वारा अपने रस सूत्र में प्रयुक्त संयोग एवं निष्पत्ति शब्दों की व्याख्या करते हुए संयोग का अर्थ सम्बन्ध और व्युत्पत्ति आ अर्थ उत्पत्ति से माना है।
- शंकुक का अनुमितिवाद : शंकुक ने रस सूत्र की व्याख्या करते हुए संयोग का अर्थ अनुमान व् निष्पत्ति का आशय अनुमिति से माना है।
- भट्टनायक का भोगवाद या भुक्तिवाद : भट्टनायक पूर्ववर्ती आचार्यों के मतों का खंडन करते हुए रस सूत्र में निष्पत्ति का भुक्ति या भोगवाद तथा संयोग का अर्थ भोज्य-भोजक स्वीकार किया।
- अभिनवगुप्त का अभिव्यक्तिवाद : इन्होने अपने ग्रन्थ अभिनव भारती व् ध्वन्यालोकलोचन में अपने रस सम्बन्धी मत प्रस्तुत किये। अभिनवगुप्त ने संयोग का अर्थ व्यग्य-व्यंजकत्व सम्बन्ध और निष्पत्ति को अभिव्यक्ति माना।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, भारतीय काव्यशास्त्र (प्रमुख काव्य संप्रदाय एवं सिद्धांत) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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