- प्राचीन काल में (आदिकाल एवं मध्यकाल) काव्यशास्त्र को ही ‘साहित्यशास्त्र’ तथा ‘अलंकारशास्त्र’ कहा जाता था। साहित्यशास्त्र में प्रथमतः अलंकार का ही सर्वस्व था।
- आधुनिक साहित्य में ‘साहित्य’ शब्द का प्रयोग अंग्रेजी के ‘लिटरेचर’ का पर्याय है। साहित्य शब्द की व्युत्पत्ति ‘सहित’ शब्द से हुई है। संस्कृत में इसकी व्याख्या इस प्रकार से की गयी है - “साहितेन भावः स साहित्यम” अर्थात जी हिट के भावों से परिपूर्ण हो वही साहित्य है।
संस्कृत आचार्यों के अनुसार काव्य लक्षण :
1. आचार्य भामह -
भामह छठी शताब्दी के प्रमुख संस्कृत आचार्य थे। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘काव्यालंकार’ में काव्य की परिभाषा इस प्रकार दी : “शब्दार्थो सहितो काव्यम्” अर्थात् शब्द और अर्थ के सहित भाव को काव्य कहते हैं।
2. आचार्य दण्डी -
आचार्य दण्डी ७वीं शताब्दी के संस्कृत आचार्य थे। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘काव्यादर्श’ में साहित्य की परिभाषा इस प्रकार दी : “शरीरंतावदिष्टार्थ व्यवछिन्ना पदावली” अर्थात ईष्ट और अर्थ से युक्त पदावली तो काव्य का शरीर मात्रा है। यह स्पष्ट है कि आचार्य दण्डी शब्द और अर्थ को शरीर मात्र मानते थे, काव्य की आत्मा नहीं। वे अलंकार काव्य के प्रणेता थे।
3. आचार्य वामन -
आचार्य वामन ८वीं शताब्दी के संस्कृत विद्वान थे। उन्होंने रीति संप्रदाय का प्रवर्तन किया था। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘काव्यालंकार सूत्रवृत्ति’ में काव्य की परिभाषा इस प्रकार दी है : “काव्य शब्दोऽयंगुणालंकार संस्कृतयो: शब्दार्थयो: वर्तते” अर्थात गुण व् अलंकार युक्त शब्दार्थ ही काव्य के रूप में जाना जाता है।
4. आचार्य रुद्रट -
रुद्रट ९वीं शताब्दी के संस्कृत आचार्य थे। उन्होंने आचार्य भामह का अनुकरण करते हुए शब्द और अर्थ को ही काव्य माना।
5. आचार्य मम्मट -
आचार्य मम्मट जो कि १२वीं सदी के संस्कृत विद्वान थे , उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘काव्यप्रकाश’ में काव्य की परिभाषा इस प्रकार दी: “तददौषौ शब्दार्थौ सगुणावलंकृति पुनः क्वापि” अर्थात काव्य वह शब्द तथा अर्थ है, जो दोषरहित, गुण से अलंकृत तथा कभी कभी अलंकारहीन होता है।
6. आचार्य विश्वनाथ -
आचार्य विश्वनाथ १४वीं शताब्दी के प्रसिद्ध संस्कृत आचार्य थे। उन्होंने ‘साहित्य दर्पण’ की रचना की। आचार्य मम्मट के काव्य लक्षणों का खंडन करते हुए उन्होंने काव्य की परिभाषा इस प्रकार दी : “वाक्यं रसात्मकं काव्यम्” अर्थात रस से पूर्ण वाक्य ही काव्य है।
7. पंडित जगन्नाथ -
पंडित जगन्नाथ १७वीं शताब्दी के आचार्य थे। उन्होंने अपने ग्रन्थ ‘रस गंगाधर’ में काव्य के निम्न लक्षण बताए हैं : “रमणीयार्थ प्रतिपादक: शब्दः काव्यम्” अर्थात रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाला शब्द ही काव्य है।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, भारतीय काव्यशास्त्र से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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