जिस प्रकार हिंदी के पूर्वी क्षेत्रों में सिद्धों ने बौद्ध धर्म के वज्रयान मत का प्रचार हिंदी कविता के माध्यम से किया, उसी प्रकार पश्चिमी क्षेत्र में जैन साधुओं में अपने मत का प्रचार हिंदी कविता के माध्यम से किया। जैन कवियों की रचनाएं आचार, रास, फागु चरित आदि विभिन्न शैलियों में मिलती है।
- रास काव्य परम्परा में प्राचीनतम ज्ञात ग्रन्थ 'रिपुदारणरास' है। डॉ० दशरथ ओझा ने इसका समय 905 ई० बताया है।
- 'रिपुदारण रास' संस्कृत भाषा में लिखा है तथा इसमें अभिनय, नृत्य और गान इन तीनों तत्वों का मिश्रण है।
- जिनदत्त सूरी द्वारा रचित 'उपदेश रसायनरास' अपभ्रंश भाषा का सर्वप्रथम रास है।
- अपभ्रंश भाषा का दूसरा रास या रासक काव्य अब्दुर्रहमान द्वारा रचित 'संदेश रासक है।
- हिन्दी का प्रथम ऐतिहासिक रास ग्रंथ 'पंचपाण्डव रचित रास' है, इसके लेखक शालिभद्र सूरी द्वितीय को माना जाता है। इसका रचनाकाल 1350 ई० था।
- मुनिजिन विजय, डॉ० दशरथ ओझा, डॉ० गणपति चन्द्रगुप्त ने श्री शालिभद्र सूरी द्वारा रचित 'भरतेश्वर बाहुबली रास' को हिन्दी-जैन-रास परम्परा का आदिकाव्य माना है।
- गणपति चन्द्र गुप्त ने शालिभद्र सूरी को हिन्दी का प्रथम कवि माना है। 'भरतेश्वर बाहुबली रास' की रचना 1184 ई० में हुई तथा इस ग्रन्थ में भरतेश्व तथा बाहुबली का चरित वर्णित है।
- यह ग्रन्थ 205 छन्दों में रचित एक सुन्दर खण्ड काव्य है।
- 'भरतेश्वर बाहुबली' का सम्पादन मुनिजिन विजय ने किया है।
- प्रसिद्ध जैन आचार्य देवसेन कृत 'श्रावकाचार' को डॉ० नगेन्द्र ने हिन्दी को प्रथम रचना माना है।
- देवसेन ने सन् 933 ई० में श्रावकाचार की रचना की। श्रावकाचार में 250 दोहों में श्रावक-धर्म का प्रतिपादन किया है।
- देवसेन के अन्य ग्रन्थ हैं- 'नयचक्र', 'दर्शन सार', 'भावसंग्रह', 'आराधनासार’ और 'तत्त्वसार' तथा 'सावय धम्म दोहा'। इन ग्रन्थों में इनका 'नयचक्र' बहुत प्रसिद्ध है।
- देवसेन के ‘नयचक्र' को 'लघुनयचक्र' का नाम भी दिया गया है।
- देवसेन अपने ग्रन्थ में जैन धर्म के अनेक संघों की उत्पत्ति लिखी है जिसे इन्होंने 'जैनाभास' का नाम दिया।
- 'बृहदनयचक्र' की रचना देवसेन के शिष्य माइल्ल धवल ने किया जो कि देवसेन के नाम से प्रसिद्ध है। 'बृहद नयचक्र' का वास्तविक नाम 'दव्व सहाव पयास' (द्रव्य स्वभाव प्रकाश) है।
- 'द्रव्य स्वभाव प्रकाश' (दव्व सहाव पयास) पहले पुरानी हिन्दी या अपभ्रंश भाषा मे लिखा था। 'दव्व सहाव पयास' अब प्राकृत भाषा में मिलती है।
- शालिभद्र सूरी के ‘बुद्धि रास’ नामक ग्रन्थ का संग्रह उनके शिष्य सिवि ने किया था।
- आसुग नामक कवि ने लगभग १२०० ई. के आसपास एक लघु खण्डकाव्य 'चन्दनबाला रास' नाम से लिखा।
- आसुग ने 'जीव-दया रास' नामक एक अन्य ग्रन्थ की भी रचना की है।
- जिन धर्म सूरी ने 1209 ई० में 'स्थूलिभद्र रास' की रचना है। 'स्थूलिभद्र रास' में रचयिता का नाम 'जिणधाम' मिलता है जो जिनधर्म का हो पर्याय समझा जाता है।
- विजय सेन सूरी ने 'रेवंतगिरि रास' की रचना 1231 ई० के आस-पास किया।
- 'रेवंत गिरि रास' में जैन तीर्थ रेवंत गिरि तथा तीर्थंकर नेमिनाथ की प्रतिमा के महत्त्व का प्रतिपादन ऐतिहासिक एवं पौराणिक इतिवृत्त तथा प्राकृतिक सौन्दर्य के आधार पर किया गया है।
- 'रेवंतगिरि रास' चार कड़वकों में विभक्त है।
- मुनि सुमतिगणि ने 'नेमिनाथ रास' में जैन तीर्थंकर नेमिनाथ के चरित का वर्णन अत्यन्त संक्षेप में किया है।
- 'नेमिनाथ रास' की रचना 1213 ई० में हुई। इसमें 58 छन्द हैं।
- चौपाई छंद में बारहमासा का वर्णन विनयचन्द्र सूरि द्वारा रचित 'नेमिनाथ चउपई'' माना जाता है ।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, जैन साहित्य से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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