आदिकालीन साहित्य के अंतर्गत सिद्ध साहित्य, जैन साहित्य, नाथ साहित्य और रासो साहित्य आदि की रचना हुई। इनमे से सिद्ध साहित्य का परिचय निम्नलिखित है :
- सरहपा को हिन्दी का प्रथम कवि माना जाता है। इन्हें सरोजवज्र, राहुल भद्र आदि नामों से भी जाना जाता है। सिद्धों में सबसे पुराने सरहपाद हैं।
- राहुल सांकृत्यायन ने सरहपाद का समय 769 ई० स्थिर किया है।
- इनके लिखे 32 ग्रन्थ बताये जाते हैं जिनमें 'दोहा कोश' प्रसिद्ध है। दोहा कोश' का सम्पादन डॉ० प्रबोध चन्द्र बागची ने किया।
- सिद्धों ने बौद्ध धर्म के वज्रयान तत्त्व का प्रचार करने के लिए जो साहित्य जन-भाष में लिखा, वह हिन्दी के सिद्ध साहित्य की सीमा में आता है। वज्रयान का केन्द्र श्रीपर्वत पर रहा।
- सहजयानियों की भाषा का नाम संध्या भाषा है।
- कुछ विद्वानों ने संध्या भाषा का अर्थ यह बताया है कि यह ऐसी भाषा है, जिसमें संध्या के समान प्रकाश तथा अन्धकार का मिश्रण है, ज्ञान के आलोक से उसको सारी बातें स्पष्ट हो जाती है ।
- कुछ विद्वानों ने संध्या भाषा का अर्थ अभिसंधि या अभिप्राययुक्त वाणी बताया है।
- पण्डित विधुशेखर शास्त्री ने बताया कि मूल शब्द संध्या भाषा नहीं, बल्कि संधा भाषा रहा होगा।
- ज्योतिरीश्वर ठाकुर रचित वर्ण रत्नाकर नामक 14वीं शताब्दी के मैथिली ग्रन्थ में सिद्धों के नाम दिये गये हैं। 84 सिद्धों के नाम दिए गए हैं।
- सहजयानियों की संध्या भाषा का प्रभाव संत कवियों पर भी पड़ा और वे उलटवासियाँ लिखने लगें।
- महामहोपाध्याय हरप्रसाद शास्त्री द्वारा सम्पादित 'बौद्ध गान ओ दोहा' में सरहपा और कृष्णाचार्य का दोहा संगृहीत है।
- 'दोहा कोश' में तिल्लोपा, सरहपा, कण्हपा के दोहे संगृहीत हैं।
- सरहपा को जीवन दृष्टि संक्षेप में इस प्रकार है :
सहज संयम
↓
पाखण्ड और आडम्बर विनाश
↓
गुरु सेवा
↓
सहज मार्ग
↓
महासुख की प्राप्ति
- बच्चन सिंह ने लिखा है- "आक्रोश की भाषा का पहला प्रयोग सरहपा में ही दिखाई देता है।"
- सिद्धों की भाषा को 'संध्या भाषा' का नाम मुनिदत्त तथा अवयवज्र ने दिया।
- शबरपा सरहपा के शिष्य तथा लुइपाद के गुरु थे।
- शबरों की भेषभूषा में रहने के कारण इनका नाम शबरपाद पड़ा। इनका जन्म क्षत्रिय कुल में सन् 780 ई० में हुआ।
- ‘चर्यापद’ शबरपा की प्रसिद्ध पुस्तक है।
- चर्यापद एक प्रकार का गीत है जो सामान्यतः अनुष्ठानों के समय गाया जाता वर्यापद संघा भाषा के दृष्ट-कूट में लिखी गई हैं जिनके दुहरे अर्थ होते हैं।
- सिद्ध साहित्य में दोहा कोश की रचना परिनिष्ठित अपभ्रंश में हुई है तथा चर्यापदों की अवहट्ट में। सिद्धों का दोहा और चर्यापद संत साहित्य में क्रमश: 'साखी' और 'सबदी' में किंचित रूपांतरित हो गया।
- लुइपा का जन्म राजा धर्मपाल के शासन काल में सन् 773 ई० में एक कायस्थ परिवार में हुआ था।
- लुइपा शबरपा के शिष्य थे। 84 सिद्धों में लुइपा का स्थान प्रथम तथा सबसे ऊँचा माना जाता है।
- डोम्भिपा का जन्म मगध के क्षत्रिय वंश में सन् 840 ई० के आसपास हुआ।
- इनके द्वारा रचित 21 ग्रन्थ बताये जाते हैं, जिनमें 'डोम्बि-गीतिका', 'योगचर्यां', 'अक्षरद्विकोपदेश' आदि प्रसिद्ध हैं। डोम्भिपा विरूपा के शिष्य थे
- कण्हपा सिद्धों में सर्वश्रेष्ठ विद्वान तथा सबसे बड़े कवि थे। ७ कण्हपा का जन्म कर्नाटक के ब्राह्मण वंश में सन् 820 ई० में हुआ था।
- राहुल सांकृत्यायन के अनुसार “कण्हपा पाण्डित्य और कवित्व में बेजोड़ थे।"
- कण्हपा बिहार के सोमपुरी स्थान पर रहते थे तथा जलन्धरपा को अपना गुरु बनाया था।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, सिद्ध साहित्य से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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