महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनका युग
- द्विवेदी युग के प्रवर्तक कवि महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म 1864 ई. में रायबरेली के दौलतपुर नामक ग्राम में हुआ। वर्ष 1909 में ये 'सरस्वती' पत्रिका के सम्पादक बने तथा वर्ष 1920 तक इस पत्रिका के सम्पादक बने रहे। गद्य लेखन के क्षेत्र में भी इन्होंने विशेष सफलता प्राप्त की।
- इनके लिखे हुए व अनूदित गद्य-पद्मपन्थों की संख्या लगभग 60 हैं। यह आधुनिक काल में हिन्दी गद्य व पद्य भाषा के परिमार्जक थे। काव्य भाषा के रूप में इन्होंने खड़ी बोली को अपनाया।
- द्विवेदी जी की रचनाएँ- अबला विलाप, कुमारसम्भव सार (अनूदित), सुमन, गंगालहरी काव्य मंजूषा कान्यकुब्ज ऋतु तरंगिणी।
- द्विवेदी युग में गद्य और पद्य दोनों प्रकार की रचनाएँ रची गई, दोनों की भाषा के रूप में खड़ी बोली का विकास हुआ। महावीरप्रसाद द्विवेदी ने भाषा के प्रति समन्वयकारी दृष्टि अपनाई, जिससे खड़ी बोली समृद्ध हो पाई। आचार्य द्विवेदी ने साहित्य के प्रति साहित्यकारों की नैतिक जवाबदेही को स्वीकार किया।
- उनका नैतिकतावादी उपयोगितावादी दृष्टिकोण इस युग के कवियों का स्वर बन गया। एक और महावीर प्रसाद द्विवेदी ने साहित्य के उद्देश्य एवं व्यापकता को निर्धारित किया।
- द्विवेदी जी की मान्यता साहित्यिक सोद्देश्यता को प्रभावित करते हुए मैथिलीशरण गुप्त ने साहित्य को मनोरंजन ही नहीं, बल्कि मानव जीवन के उद्देश्यों से जोड़ने संस्कार की कोशिश की।
“केवल मनोरंजन ही नहीं कवि का कर्म होना चाहिए। बल्कि उसमें उचित उपदेश का भी मर्म होना चाहिए"
द्विवेदी युग की प्रवृत्तियाँ:
- देशप्रेम की भावना
- सामाजिक समस्याओं का चित्रण
- नैतिकता एवं आदर्शवाद
- इतिवृत्तात्मकता
- सभी काव्य रूपों का प्रयोग
- भाषा परिवर्तन
- छंद विविधता
द्विवेदी युग के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ
अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (1865-1947 ई.)
- 'हरिऔध' जी द्विवेदी युग के प्रख्यात कवि होने के साथ-साथ उपन्यासकार, आलोचक व इतिहासकार भी थे। पण्डित श्रीधर पाठक के बाद 'हरिऔध' जी हैं जिन्होंने खड़ी बोली में सरस व मधुर रचनाएँ की।
- इनका जन्म निजामाबाद, जिला आजमगढ़ में सन् 1865 में हुआ। 'हरिऔध' जी ने ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में ही रचनाएँ कीं। इनके काव्य में एक और सरल और प्रांजल हिन्दी का निरलंकार सौन्दर्य है, तो दूसरी और संस्कृत की आलंकारिक समस्त पदावली की छटा विराजमान है।
- हिन्दी में उन्हें कवि सम्राट के रूप में याद किया जाता है। दो बार 'हरिऔध' जी ने हिन्दी साहित्य सम्मेलन के सभापति बनकर सम्मान प्राप्त किए।
- 'हरिऔध' जी की रचनाएं- प्रद्युम्न विजय (1893 ई.) रुक्मिणी परिणय (1894 ई.) 'हरिऔध' जी के उपन्यास ठेठ हिन्दी का ठाठ (1899 ई.) अधखिला फूल (1907 ई.), प्रियप्रवास (1914 ई.), चुभते चौपदे (1932 ई.) वैदेही वनवास (1940 ई.), चोखे चौपदे (1932 ई.) इत्यादि।
मैथिलीशरण गुप्त (1886-1964 ई.)
- मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। इनका जन्म चिरगाँव, झांसी में सन् 1886 में हुआ था। इनकी अनेक रचनाएँ कलकत्ता से निकलने वाले पत्र 'वैश्योपकारक में छपती थीं।
- द्विवेदी जी के आदेश व उपदेश से इनकी रचनाएँ निखरी द्विवेदी जी, गुप्त जी के गुरु व प्रेरक सिद्ध हुए।
- गुप्त जी की प्रथम पुस्तक 'रंग में भंग' का प्रकाशन वर्ष 1909 में हुआ, परन्तु उन्हें प्रसिद्धि 'भारत-भारती' वर्ष 1912 में मिली। 'भारत-भारती' ने हिन्दी भाषियों में जाति, देश के प्रति गर्व और गौरवपूर्ण भावनाएँ प्रबुद्ध की तभी ये राष्ट्रकवि के रूप में प्रसिद्ध हुए। इन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि गांधी जी ने प्रदान की गुप्त जी को सन् 1952 में राज्यसभा का सदस्य भी नियुक्त किया गया। गुप्त जी रामभक्त कवि थे। 'मानस' के पश्चात् रामकाव्य का दूसरा ग्रन्थ 'साकेत' है, जिसकी रचना गुप्त जी ने की।
- गुप्त जी की रचनाएँ- तिलोत्तमा, रंग में भंग-1909, जयद्रथ वध-1910, जयभारत-1952, भारत भारती- 1912, पंचवटी 1925, साकेत-1932 इत्यादि।
द्विवेदी युग के अन्य कवि तथा उनकी रचनाएँ
द्विवेदी युग के अन्य कवि तथा उनकी रचनाओं का परिचय निम्नलिखित है।
नाथूराम शर्मा शंकर (1859-1932 ई.)
- नाथूराम शर्मा शंकर का जन्म अलीगढ़ जिले के हरदुआगंज नामक स्थान सन् 1859 ई. में हुआ। ये हिन्दी, उर्दू तथा अंग्रेज़ी भाषाओं के अच्छे जाता तथा बचपन से ही कविता लिखा करते थे।
- आरम्भ में इनकी रचनाएँ भारतेन्द युग की 'ब्राह्मण पत्रिका' में छपती थीं, फिर 'सरस्वती पत्रिका' में छपने लग प्रारम्भ में ये ब्रजभाषा के कवि थे, लेकिन बाद में खड़ी बोली में लिखने लग उन्होंने देशप्रेम, स्वदेशी प्रयोग, समाज सुधार, हिन्दी अनुराग, विधवाओं तथा अछूतों को अपने काव्य का विषय बनाया।
- इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- 'अनुरागरत्न', 'शंकर-सरोज' 'गर्भरण्डा रहस्य' तथा 'शंकर सर्वस्व'। उन्हें 'भारतेन्दु प्रज्ञेन्दु', 'साहित्य सुधाकर' आदि उपाधियों से विभूषित किया गया।
राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' (1868-1915 ई.)
- राय देवीप्रसाद 'पूर्ण' का जन्म जबलपुर में सन् 1868 में हुआ। उन्होंने बी. ए. तक की शिक्षा जबलपुर से प्राप्त की। कुछ समय वकालत की, इसके अतिरिक्त वे सार्वजनिक कार्यों में उत्साह से भाग लेते थे। वे संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे तथा वेदान्त में उनकी विशेष रुचि थी।
- उन्होंने प्रकृति सौन्दर्य का वर्णन भी किया है। उनके प्रकृति चित्रण सरल और स्वाभाविक है। कालिदास के 'मेघदूत' का अनुवाद उन्होंने 'धाराधरधावन’ (1902 ई.) शीर्षक से किया है।
- उनकी अन्य उल्लेखनीय काव्य कृतियाँ है। 'स्वदेशी कुण्डल' (1910 ई.), 'मृत्युंजय' (1904 ई.), 'रामरावण विरोध' (1906 ई.) तथा 'वसन्त-वियोग (1912 ई.) आदि।
रामचरित उपाध्याय (1872-1938 ई.)
- उपाध्याय गाजीपुर के रहने वाले थे। उनको प्रारम्भिक शिक्षा संस्कृत में हुई. में उन्होंने राजभाषा और खड़ी बोली पर भी अधिकार प्राप्त कर लिया उन्होंने पहले प्राचीन विषयों पर ही कविताएं लिखी, लेकिन आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी के सम्पर्क में पर खड़ी बोलत नवीन विषयों पर विधाएं लिखी क उसकी प्रमुख कृतियों में 'राष्ट्रभारती', 'देवदूत', 'देवसभा' तथा 'विचित्र आदि है। इसके अतिरिक्त उपाध्याय जी ने ‘रामचरित चिंतामणि' नामक प्रबंध काव्य की भी रचना की।
गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' (1883-1972 ई.)
- गयाप्रसाद शुक्ल वाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' का जन्म उन्नाव जिले के हड़हा ग्राम में सन् 1883 में हुआ। वे हिन्दी में उन्होंने प्राचीन और नवीन शैलियों की कविता लिखी है। शृंगार आदि विषयों पर वे 'सनेही' उपनाम से तथा राष्ट्रीय भावनाओं की कविता को 'त्रिशूल' उपनाम से लिखते थे।
- उनकी मुख्य काव्य कृतियाँ हैं- 'कृषक क्रंदन', 'प्रेम-पचीसी', 'राष्ट्रीय वीणा', 'त्रिशूला रंग', 'करुणा-कादम्बिनी' आदि।
- इस युग के अन्य कवियों में बालमुकुन्द गुप्त, भगवानदीन, सैयद अमीर अली 'मोर" कामताप्रसाद गुरु, गिरिधर शर्मा 'नवरत्न', रूपनारायण पाण्डेय, लोचनप्रसाद पाण्डेय गोपालशरण सिंह तथा मुकुटधर पाण्डेय सम्मिलित हैं।
हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, आधुनिक काल (द्विवेदी युग) से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
Thank you
Team BYJU'S Exam Prep.
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