Day 7: Study Notes आधुनिक काल: सामान्य परिचय

By Mohit Choudhary|Updated : June 7th, 2022

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी साहित्य का आधुनिक काल। इस विषय की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए  हिंदी साहित्य का आधुनिक काल के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे।आधुनिक काल का परिचय से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।      

भारतीय इतिहास का आधुनिक काल 19वीं शताब्दी से प्रारम्भ होता है। साहित्य में आधुनिक कार का प्रारम्भ भारतेन्दु युग से होता है। आचार्य शुक्ल ने आधुनिक काल की समय-सीमा 1843 ई. से 1923 ई. तक मानी है। आधुनिक काल को विद्वानों ने विभिन्न नाम दिए हैं- आचार्य रामचंद्र शुक्ल आधुनिक काल को का रामकुमार वर्मा 'आधुनिक काल' मिश्रबन्धु 'वर्तमान काल' तथा गणपतिचन्द्रगुप्त आधुनिक काल' नाम देते हैं। आधुनिक काल में साहित्य रीतिकालीन दरबारी परिवेश से निकलकर जन-जीवन के निकट आया एवं इसी कार में अनेक गद्य विधाओं का विकास हुआ। इस काल में खड़ी बोली में कविताएँ लिखी जानी आरम्भ हुई। यह 'राष्ट्रीय चेतना' का काल कहलाया।

हिन्दी गद्य का उद्भव और विकास (भारतेन्दु पूर्वं हिन्दी गद्य)

  • हिन्दी गद्य का उद्भव और विकास ब्रजभाषा तथा खड़ी बोली दोनों भाषाओं में हुआ। इसके विकास में कलकत्ता में 1800 ई. में स्थापित फोर्ट विलियम कॉलेज की प्रमुख भूमिका रही। लल्लू लाल जी ते 'प्रेमसागर', सूदल मिश्र ने 'नासिकेतोपाख्यान' सदासुख लाल ने 'सुखसागर' और ईशा अल्लाह खाँ ने 'रानी केतकी की कहानी' की रचना की। इन सभी रचनाकारों ने साहित्य में खड़ी बोली और ब्रजमाया से सम्बन्धित अनेक रचनाएं की।

ब्रजभाषा गद्य की प्रारम्भिक रचनाएँ

  • रामचन्द्र शुक्ल जी के अनुसार वल्लभाचार्य जी के पुत्र विट्ठलनाथ ने 'श्रृंगार रस मंडन' की रचना ब्रजभाषा गद्य में की, उसके बाद दो वार्ता ग्रन्थ लिखे गये- चौरासी वैष्णव की वार्ता और दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता।
  • दोनों रचनाओं के रचनाकार गोकुलनाथ जी हैं। 'चौरासी वैष्णव की वार्ता 17वीं सदी में लिखी गई, इसमें बल्लभाचार्य के शिष्यों का जीवनवृत्त है। जबकि 'दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता' औरंगजेब के काल में लिखी गई। इसमें गोसाई के शिष्यों का जीवनवृत्त है।
  •  'अष्टयाम' की रचना नाभादास ने की है, उसमें भगवान राम की दिनचर्या का वर्णन है। यह ब्रजभाषा में लिखा गया गद्य है। गद्य लखन का सम्यक् प्रचार-प्रसार न होने के कारण ब्रजभाषा गद्य का पूरा विकास नहीं हो सका।
  • ब्रजभाषा गद्य की प्रारम्भिक रचनाएँ व उनके रचनाकार-

रचनाएँ

रचनाकार

शृंगार रसमण्डन

गोसाईं विट्ठलनाथ

अष्टयाम

नाभादास

चौरासी वैष्णव की वार्ता

गोकुलनाथ

दो सौ बावन वैष्णव की वार्ता

गोकुलनाथ

अगहन माहात्म्य

बैकुण्ठमणि शुक्ल

वैशाख माहात्म्य

बैकुण्ठमणि शुक्ल

बैताल पचीसी

सुरति मिश्र

खड़ी बोली गद्य की प्रारंभिक रचनाएँ 

  • खड़ी बोली गद्य की महत्त्वपूर्ण पुस्तक चन्द छन्द बरनन की महिमा है। यह कवि गंग द्वारा लिखी गई है। इसकी रचना सम्राट अकबर के समय में हुई थी। 
  • 1741 ई. में रामप्रसाद निरंजनी ने 'भाषायोग वाशिष्ठ' नामक ग्रन्थ की रचना में खड़ी बोली में की। निरंजनी जी के गद्य से स्पष्ट है कि मुंशी सदासुख लाल एवं लल्लू लाल से पहले भी खड़ी बोली गद्य का परिमार्जित रूप था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल निरंजनी जी को प्रथम प्रौढ़ गद्य लेखक मानते हैं।
  • लल्लू लाल ने उर्दू, खड़ी बोली हिन्दी और ब्रजभाषा तीनों में गद्य की पुस्तकें लिखीं। 'माधव विलास' और 'सभा विलास' नाम से ब्रजभाषा पद्म के संग्रह ग्रन्थ भी इन्होंने प्रकाशित किए। इन्होंने 'प्रेमसागर' में विष्णु पुराण के दशम स्कन्ध का हिन्दी अनुवाद किया।
  • सदल मिश्र बिहार के निवासी थे। ये फोर्ट विलियम कॉलेज में काम करते थे। कॉलेज अधिकारियों की प्रेरणा से इन्होंने खड़ी बोली गद्य की पुस्तक नासिकेतोपाख्यान लिखी।
  • मुंशी सदासुखलाल दिल्ली के निवासी थे। उन्होंने विष्णु पुराण से प्रसंग लेकर एक पुस्तक लिखी, जो पूरी नहीं है। इन्होंने 'सुख सागर' में श्रीमद् भागवत् का हिन्दी अनुवाद किया है। 
  • राजा लक्ष्मण सिंह आगरा के रहने वाले थे, उन्होंने 1861 ई. में आगरा से प्रजा हितैषी नामक पत्र प्रकाशित किया और 1862 ई. में 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' का अनुवाद सरस एवं विशुद्ध हिन्दी में प्रकाशित किया।
  • हिन्दी के रक्षकों में बाबू शिवप्रसाद सितारे हिन्द के साथ-साथ पंजाब के बाबू नवीनचन्द्र राय भी शामिल थे। उर्दू के पक्षपातियों से उन्होंने बराबर संघर्ष किया।
  • इंशा अल्ला खाँ उर्दू के प्रसिद्ध शायर थे, जो दिल्ली उजड़ने के बाद लखनऊ चले गए। उन्होंने 'रानी केतकी की कहानी' की रचना संवत् 1855 से 1860 ई. के बीच की। 
  • हिन्दी गद्य के चार प्रारंभिक लेखकों का रचनाकाल लगभग 1800 ई. के आस-पास है, इसलिए हिन्दी गद्य का सूत्रपात 1800 ई. के आस-पास ही समझना चाहिए।

खड़ी बोली गद्य की प्रारम्भिक रचनाएँ व उनके रचनाकार

रचनाएँ

रचनाकार

भाषा योग वशिष्ठ

रामप्रसाद निरंजनी

पद्मपुराण का भाषानुवाद

पं. दौलतराम

मण्डोवर का वर्णन

पं. दौलतराम

सुखसागर

सदासुखलाल

नासिकेतोपाख्यान

सदल मिश्र

रानी केतकी की कहानी

मुंशी इंशा अल्ला खाँ

सामाजिक कुप्रथाएँ एवं सुधारक संस्थाएँ

 भारत में असंख्य कुप्रथाएँ एवं अन्धविश्वासों ने भारतीयों को कूप-मण्डूक बना रखा था। ऐसे में सांस्कृतिक पुनर्जागरण की आवश्यकता महसूस की गई। राजा राममोहन राय, देवेन्द्रनाथ ठाकुर, केशवचन्द्र सेन, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, दयानन्द सरस्वती विवेकानन्द आदि महापुरुषों ने भारतीय जनता जागृत करने किया। ब्रह्म समाज, प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन आर्य समाज थियोसोफिकल सोसायटी आदि की स्थापना की गई।

ब्रह्म समाज

  • आधुनिक भारत की नींव पर पहला पत्थर राजा राममोहन राय ने रखा। राजा राममोहन राय ने 1828 ई. में ब्रह्म समाज की स्थापना की। कर्मकाण्ड और अन्धविश्वास का विरोध करने के लिए इन्होंने उपनिषदों का प्रयोग किया और मूर्तिपूजा को धर्म का बाह्य आडम्बर माना जाति प्रथा को राष्ट्र विरोधी और अमानवीय बताया, उन्होंने विधवा विवाह और स्त्री-पुरुष के समान अधिकार का समर्थन किया।

प्रार्थना समाज

  • 1867 ई. में केशवचन्द्र सेन के प्रयासों से बम्बई में प्रार्थना समाज की स्थापना हुई, जिसके उन्नायक महादेव गोविन्द रानाडे थे। वे धार्मिक व सामाजिक समस्याओं का तर्कपूर्ण उत्तर देते थे। उन्होंने स्त्री शिक्षा व विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया।

रामकृष्ण मिशन

  • स्वामी विवेकानन्द ने 1897 ई. में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। रामकृष्ण की शिक्षाओं, उपनिषद् एवं गीता के दर्शन तथा बुद्ध व यीशु के उपदेशों को आधार बनाकर विवेकानन्द ने मानव मूल्यों की शिक्षा दी। उन्होंने सर्वधर्म समभाव की घोषणा की और धार्मिक मामलों में संकीर्णता की निन्दा की। 

आर्य समाज

  • आर्य समाज की स्थापना (बम्बई) स्वामी दयानन्द सरस्वती ने 1875 हिन्दू धर्म और संस्कृति के उन्नयन हेतु की। पूरे देश में राष्ट्रीय भावना संचार करने एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार करने का श्रेय भी इन्हें दिया जाना चाहिए। इन्होंने 'सत्यार्थ प्रकाश' नामक ग्रन्थ का प्रकाशन हिन्दी में किया।  साथ ही हिन्दी गद्य को समृद्ध कर उसे नवीन दिशा प्रदान की।

सांस्कृतिक जागरण सम्बन्धी संस्थाएँ

संस्था

संस्थापक

वर्ष

ब्रह्म समाज

राजा राममोहन राय

1828

प्रार्थना समाज

केशवचन्द्र सेन

1867

रामकृष्ण मिशन

स्वामी विवेकानंद

1897

आर्य समाज

दयानन्द सरस्वती

1875

थियोसोफिकल सोसायटी

मैडम ब्लावत्सकी

1875

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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, आधुनिक काल का परिचय से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

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