स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी एवं प्रमुख कहानी आन्दोलन
- स्वतन्त्रता के पश्चात लिखी गई कहानियों को स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी कहानी कहा जाता है। ये कहानियाँ स्वातंत्र्योत्तर काल की हिन्दी कहानी के विभिन्न रचनात्मक पक्षों और बदलावों की साक्षी रही हैं।
- वर्ष 1947 में देश को आजादी प्राप्त हुई। इसी के साथ हिन्दी कहानी में नई अभिव्यक्तियाँ उभरीं। आजादी के बाद कहानी साहित्य नई कहानी, सचेतन कहानी, समान्तर कहानी, समकालीन कहानी, अकहानी आदि विभिन्न रूपों से वैविध्यशाली बना है, जिनका विवरण निम्नलिखित हैं।
नई कहानी
- वर्ष 1950 के पश्चात् हिन्दी कहानी के क्षेत्र में एक नए आन्दोलन का प्रवर्तन हुआ, जिसे 'नई कहानी' आन्दोलन की संज्ञा दी गई। इस आन्दोलन के उन्नायकों राजेन्द्र यादव, निर्मल वर्मा, कमलेश्वर, मोहन राकेश, प्रभृति ने घोषित किया कि नई कहानी का लक्ष्य नए भाव-बोध या आधुनिकता बोध पर आधारित जीवन के यथार्थ अनुभव का चित्रण करना है।
- नया कहानीकार न अतीत के आदर्शों से जुड़ा है और न ही भविष्य के स्वप्नों से। वह वर्तमान में और वर्तमान में भी केवल अपने भोगे हुए यथार्थ को अपनी दृष्टि का केन्द्र बनाता है।
- इस प्रकार नई कहानी में व्यक्तिवाद, यथार्थवाद, अनुभूतिवाद एवं आधुनिकतावाद की प्रतिष्ठा हुई, जिसके फलस्वरूप वह जीवन, समाज और राष्ट्र के व्यापक परिवेश से अलग होकर कहानीकारों के वैयक्तिक जीवन की निजी सीमाओं से आबद्ध हो गई है।
- इसलिए नई कहानी में व्यक्तिनिष्ठ अह, काम चेतना, यौनाचार, नारी-पुरुष सम्बन्धों का चित्रण प्रमुख रूप से हुआ है। नई कहानी में दाम्पत्य जीवन की प्रायः सभी स्थितियों एवं पारिवारिक जीवन की विसंगतियों का चित्रण अनुभूतिपूर्ण शैली में हुआ है।
- नई कहानी के प्रमुख लेखकों में मोहन राकेश, निर्मल वर्मा, राजेन्द्र यादव, भीष्म साहनी, कृष्ण बलदेव वेद, रमेश बक्षी, मन्नू भण्डारी, उषा प्रियंवदा आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
- मोहन राकेश के 'इन्सान के खण्डहर', 'नए बादल', 'जानवर और जानवर, 'एक और जिन्दगी' आदि कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिनमें शहरी जीवन की कृत्रिमता, बाह्य आडम्बर, नारी-पुरुष सम्बन्धी दाम्पत्य एवं पारिवारिक जीवन के विघटन आदि का चित्रण यथार्थ रूप में हुआ है।
- निर्मल वर्मा के कहानी संग्रहों में 'परिन्दे', 'एक दिन का मेहमान', 'जलती झाड़ी', 'पिछली गर्मियों में', 'कव्वे और काला पानी' आदि उल्लेखनीय हैं, जिनमें प्रायः पाश्चात्य संस्कृति एवं विदेशी जीवन का चित्रण करते हुए यौन प्रवृत्तियों को प्रमुखता दी गई है।
- राजेन्द्र यादव के कहानी-संग्रहों में 'देवताओं की मूर्तियाँ', 'अभिमन्यु की आत्महत्या', 'जहाँ लक्ष्मी कैद है', 'किनारे से किनारे तक', 'प्रतीक्षा', 'अपने पार', 'टूटना और अन्य कहानियाँ', 'छोटे-छोटे ताजमहल' आदि उल्लेखनीय हैं। इन्होंने भी मुख्यतः शहरी जीवन की असंगतियों एवं आर्थिक विषमताओं का चित्रण यथार्थ रूप में किया है।
सचेतन कहानी
- नई कहानी आन्दोलन की ही प्रतिक्रिया एवं प्रतिद्वंद्विता में 'सचेतन कहानी' आंदोलन का प्रवर्तन हुआ। इसके प्रवर्तक डॉ. महीप सिंह है, जिन्होंने अपनी पत्रिका 'सचेतना' के माध्यम से इस आन्दोलन को आगे बढ़ाया। सचेतन कहानी नई कहानी की अपेक्षा अधिक संतुलित एवं व्यापक दृष्टिकोण की परिचायक कही जा सकती है।
- 'सचेतन कहानी' आंदोलन के साथ जुड़े हुए कहानीकारों में महीप सिंह, मनहर चौहान, रामकुमार भ्रमर, सुखबीर, बलराज पंडित, कुलभूषण, वेद राही, मेहरुन्निसा परवेज आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
- डॉ. महीप सिंह के कई कहानी संग्रह प्रकाशित हुए हैं, जिनमें 'उजाले के उल्लू', 'कुछ और कितना', 'घिराव', 'इक्यावन कहानियाँ', 'कितने सम्बन्ध' आदि उल्लेखनीय हैं।
समान्तर कहानी
- समान्तर कहानी आन्दोलन के प्रवर्तक कमलेश्वर हैं, जिन्होंने वर्ष 1971 के आस पास समान्तर कहानी का प्रवर्तन किया।
- समान्तर से उनका तात्पर्य कहानी को आम आदमी के जीवन की परिस्थितियों एवं समस्याओं के समान्तर प्रतिष्ठित करने से है, इसलिए उन्होंने कहानी के क्षेत्र में समाज और जीवन को व्यापक रूप में ग्रहण करते हुए उसकी विभिन्न स्थितियों, विषमताओं एवं विद्रूपताओं को अंकित करने का लक्ष्य घोषित किया।
- समान्तर कहानी में इसी व्यापक लक्ष्य के फलस्वरूप मध्यवर्गीय एवं निम्नवर्गीय समाज की विभिन्न स्थितियों, विषमताओं एवं समस्याओं का अंकन सूक्ष्मतापूर्वक हुआ है। समान्तर कहानी का प्रचार-प्रसार मुख्यतः 'सारिका' पत्रिका के माध्यम से हुआ।
- वर्ष 1974-75 में सारिका के दस अंकों में क्रमशः विभिन्न समान्तर कहानीकारों की रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं, जिनमें कमलेश्वर के अतिरिक्त कामतानाथ, रमेश उपाध्याय, मधुकर सिंह, धर्मेन्द्र गुप्त, इब्राहिम शरीफ के रा. यात्री सुधीर, सतीश जमाली, नरेन्द्र कोहली, हिमांशु जोशी, मणि मधुकर, सनत कुमार, निरूपमा सेवती, मृदुला गर्ग आदि के नाम उल्लेखनीय है।
समकालीन कहानी
- इस कहानी आन्दोलन के प्रवर्तक डॉ. गंगा प्रसाद 'विमल' हैं। इस कहानी में समकालीनता और आधुनिकता बोध पर अत्यधिक बल दिया गया है। समकालीन कहानीकार किसी विशेष आंदोलन से नहीं जुड़े हैं।
अकहानी
- इस अकहानी आन्दोलन में कुछ ऐसे कथाकार जुड़े जिन्होंने कहानी के स्वीकृत मूल्यों को स्वीकार न करके अपने स्वतन्त्र अस्तित्व की घोषणा की। डॉ. नामवर सिंह व निर्मल वर्मा इस कहानी आन्दोलन के प्रवर्तक है।
- अन्ततः कहा जा सकता है कि हिन्दी कहानी हिन्दी साहित्य की प्रमुख कथात्मक विधा है। हिन्दी कहानी ने आदर्शवाद, यथार्थवाद, प्रगतिवाद, मनोविश्लेषणवाद आदि उपलब्धियाँ प्राप्त की हैं। आज हिन्दी कहानी की लोकप्रियता अपने चरम शिखर पर है।
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हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2022 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'UGC NET के कहानियों' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे।
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