Study Notes प्रेमचंदोत्तर उपन्यास

By Mohit Choudhary|Updated : February 27th, 2023

यूजीसी नेट परीक्षा के पेपर -2 हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण विषयों में से एक है हिंदी उपन्यास। इसे 3 युगों प्रेमचंद पूर्व हिन्दी उपन्यास, प्रेमचंद युगीन उपन्यास, प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी उपन्यास में बांटा गया है।  इस विषय की की प्रभावी तैयारी के लिए, यहां यूजीसी नेट पेपर- 2 के लिए हिंदी उपन्यास के आवश्यक नोट्स कई भागों में उपलब्ध कराए जाएंगे। इसमें से प्रेमचंदोत्तर उपन्यास से सम्बंधित नोट्स इस लेख मे साझा किये जा रहे हैं। जो छात्र UGC NET 2022-23 की परीक्षा देने की योजना बना रहे हैं, उनके लिए ये नोट्स प्रभावकारी साबित होंगे।   

 

 

Also, Register for our Free Workshop - Click Here

प्रेमचन्दोत्तर हिन्दी उपन्यास

प्रेमचंद जी के बाद के उपन्यासों को विषय की दृष्टि से हम निम्न पांच भागों में वर्गीकृत कर सकते हैं- 

  1. मनोविश्लेषणवादी उपन्यास
  2. प्रगतिवादी/मार्क्सवादी उपन्यास 
  3. आंचलिक  उपन्यास 
  4. ऐतिहासिक उपन्यास 
  5. प्रयोगवादी उपन्यास

मनोविश्लेषणवादी उपन्यास

  • हिन्दी के अनेक उपन्यासकारों ने अपनी कृतियों में आधुनिक मनोविज्ञान एवं मनोविश्लेषण के सिद्धांत के आधार पर अपने पात्रों की मानसिक प्रवृत्तियों विशेषतः यौन वृत्तियों, दमित वासनाओं, कुण्ठाओं, ग्रन्थियों आदि का विश्लेषण प्रस्तुत किया है, जिन्हें इस परम्परा में स्थान दिया जा सकता है। 
  • इनमें जैनेन्द्र कुमार ने 'परख', 'सुनीता', 'त्याग-पत्र', 'कल्याणी', 'सुखदा', 'विवर्त' 'व्यतीत', 'जयवर्द्धन' आदि उपन्यासों की रचना की है, इनके उपन्यासों में विभिन्न पात्रों की मानसिक प्रवृत्तियों एवं अन्तर्द्वन्द्व का विश्लेषण अत्यन्त सूक्ष्म रूप में हुआ है।
  • सामान्यतः इनके उपन्यासों में नारी और पुरुष के पारस्परिक आकर्षण का चित्रण हुआ है, किन्तु इनकी नारियाँ पुरुष पात्रों की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली एवं सशक्त दृष्टिगोचर होती है। इसलिए इनके उपन्यासों को नायिका प्रधान भी कहा जाता है।
  • इलाचन्द्र जोशी ने 'लज्जा', 'संन्यासी', 'पर्दे की रानी', 'प्रेत और 'छाया', 'निर्वासित', 'मुक्ति पथ', 'जिप्सी', 'सुबह के भूले', 'जहाज का पंछी' आदि उपन्यासों की रचना की है, जिनमें फ्रॉयड, एडलर, युंग आदि मनोविश्लेषणकर्ताओं के सिद्धान्तों के आधार पर काम, अह, दम्भ (अक्खड़पन), आत्महीनता की ग्रन्थि आदि के विभिन्न रूपों का चित्रण अत्यन्त सूक्ष्म, यथार्थ एवं सजीव रूप में हुआ
  • उपन्यास 'लज्जा' में आधुनिक शिक्षा प्राप्त युवती की काम-चेष्टाओं का मनोविश्लेषण किया गया है। संन्यासी आत्मकथात्मक शैली में लिखा गया उपन्यास है। 'पर्दे की रानी' उपन्यास में नायिका 'निरंजना' खूनी पिता और वेश्या (माँ) की पुत्री है, इससे उसमें हीन भावना उत्पन्न हो जाती है। 'जहाज का पंछी' उपन्यास का नायक एक शिक्षित नवयुवक है। वह कलकत्ता में काम की तलाश में भटकता है।
  • सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' ने भी अपने उपन्यासों में 'शेखर: एक जीवनी', 'नदी के द्वीप', 'अपने-अपने अजनबी' में यौन प्रवृत्तियों का चित्रण किया है, जो कहीं-कहीं अत्यधिक अस्वाभाविक एवं असामाजिक भी हो सकता है। इसलिए उनकी कृतियों की प्रारम्भ में पर्याप्त निन्दा हुई। 
  • 'शेखर: एक जीवनी' वैयक्तिक मनोविज्ञान के अध्ययन के क्षेत्र में एक महती उपलब्धि मानी जा सकती है। यह फ्लैश बैक शैली में लिखा गया है। 'नदी के द्वीप' में अज्ञेय का व्यक्तिवादी जीवन दर्शन व्यक्त हुआ है। उपन्यास अपने-अपने अजनबी में अज्ञेय ने 'मृत्यु से साक्षात्कार' को उपन्यास का विषय बनाकर मानव जीवन और उसकी नियति का मार्मिक विवेचन प्रस्तुत किया है।

प्रगतिवादी / मार्क्सवादी उपन्यास

  • प्रगतिवादी परम्परा के उपन्यासकारों में यशपाल, भैरवप्रसाद गुप्त, अमृतलाल नागर आदि सम्मिलित हैं। इन्होंने मार्क्सवादी दृष्टिकोण से वर्तमान पूँजीवादी सभ्यता के दोषों, शोषक वर्ग के अत्याचारों, आर्थिक विषमता के दुष्परिणामों शोषित वर्ग की दयनीय स्थितियों तथा समाज की यथार्थ परिस्थितियों के अंकन के उद्देश्य से उपन्यासों की रचना की है।
  • यशपाल जी का 'झूठा-सच' (1960) सर्वोत्कृष्ट उपन्यास माना जाता है। इस उपन्यास में वर्ष 1947 के भारत विभाजन की घटना को आधार बनाकर साम्प्रदायिक दंगे, अत्याचार, बलात्कार की घटनाएँ तथा शरणार्थियों के जीवन की कठिनाइयों तथा कांग्रेसी सरकार की नीतियों का यथावत् चित्रण किया गया है।
  • यशपाल जी ने 'दादा कामरेड' में विभिन्न राजनीतिक आन्दोलनों तथा नेताओं के चरित्र का अंकन करते हुए अप्रत्यक्ष रूप में अपने युग की तीन राजनीतिक विचारधाराओं-गांधीवाद, आतंकवाद और साम्यवाद की आलोचना प्रस्तुत की है। 
  • भैरवप्रसाद गुप्त जी ने 'मशाल' (1951), 'गंगा मैया' (1953), 'सती मैया का चौरा, उपन्यासों में प्रगतिवादी दृष्टिकोण से किसानों और मजदूरों के जीवन का चित्रण करते हुए शोषित वर्ग की अनुभूतियों एवं भावनाओं की अभिव्यक्ति की है।
  • अमृतलाल नागर के उपन्यास सेठ बॉकेमल, अमृत और विष, बूँद और समुद्र, महाकाल, शतरंज के मोहरे, सुहाग के नूपुर, मानस का हंस, खंजन नयन आदि हैं। 'अमृत और विष' उपन्यास में कथानक को एक सम्पादक के जीवन से सम्बद्ध करके तत्कालीन जीवन की जटिलताओं को चित्रित किया गया है। 'बूँद और समुद्र' उनका श्रेष्ठतम उपन्यास है, जिसमें भारतीय समाज की रीति-नीति, आचार-विचार, जीवन दृष्टि आदि का चित्रण कथानक के द्वारा किया गया है।
  • 'मानस का हंस' अमृतलाल नागर का जीवनीपरक उपन्यास है, जिसमें गोस्वामी तुलसीदास का जीवन वृत्तान्त प्रस्तुत किया गया है। 'खंजन नयन' में सूर के जीवन को कथानक के रूप में बाँधकर सूर की जीवनी देने का प्रयास किया गया है।

ऐतिहासिक उपन्यास

  • ऐतिहासिक उपन्यासकारों में बाबू वृन्दावनलाल वर्मा, हजारीप्रसाद द्विवेदी, राहुल सांकृत्यायन, रांगेय राघव आदि प्रमुख हैं।
  • वृन्दावन लाल वर्मा ने सामाजिक उपन्यास भी लिखे हैं, पर उनकी ख्याति "विराटा की पद्मिनी', 'झाँसी की रानी', 'कचनार', 'मृगनयनी', 'अहिल्याबाई', 'माधोजी सिन्धिया' आदि ऐतिहासिक उपन्यासों से अधिक हुई है।
  • आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी के उपन्यास 'बाणभट्ट की आत्मकथा' (1946) तथा 'चारुचन्द्र लेख' (1962) दोनों उपन्यासों में छठी-सातवीं शती में पतनोन्मुखी भारत की सभ्यता एवं संस्कृति का चित्रण अत्यन्त सूक्ष्म एवं सजीव रूप से हुआ है।
  • रांगेय राघव के उपन्यास मुर्दों का टीला (1948), अँधेरे के जुगनू (1953). यशोधरा जीत गई (1954) आदि हैं। 
  • राघव जी ने 'मुर्दों का टीला' में मोहनजोदड़ो के समय की सामाजिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक परिस्थितियों एवं वातावरण का चित्रण किया है। 'अँधेरे के जुगनू' में महाभारत काल का एवं 'यशोधरा जीत गई' में बौद्ध युग का चित्रण किया गया है।

आँचलिक उपन्यास

  • आँचलिक उपन्यासों की परम्परा का विकास वर्ष 1950 के बाद हुआ। 'आँचलिक' संज्ञा का आविष्कार फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा उनके उपन्यास 'मैला आँचल' (1954) की भूमिका में हुआ, परन्तु इस परम्परा का सूत्रपात नागार्जुन के उपन्यासों से हो चुका था।
  • नागार्जुन के उपन्यास रतिनाथ की चाची (1948), बलचनमा (1992), 'पाँध (1953), बाबा बटेंसरनाथ (1954), वरुण के बेटे (1957) आदि है। नागार्जुन का 'मार्क्सवादी दृष्टिकोण' गाँव की थीम पर आरोपित प्रतीत होता है। उनके उपन्यासों में कथानक स्वयं विकसित न होकर पूर्व निर्धारित योज के अनुसार चलते हैं, जिसके फलस्वरूप उपन्यासों की सृजनात्मकता शिथिल और अवरुद्ध हो गई है। 
  • फणीश्वरनाथ रेणु के उपन्यास मैला आँचल (1954), परती परिकथा (1957) आदि हैं। 'मैला आँचल' में रेणु जी ने किसान-जमीदार संघर्ष तथा राजनीतिक आन्दोलनों का चित्रण किया है। 'परती परिकथा' में भी जमींदारी प्रथा के अन्त, नए बन्दोबस्त, भूमिदान, ग्रामीण नेताओं के अभ्युदय, नेताओं की स्वार्थ परायणता, राजनीतिक पार्टियों की धाँधली आदि का चित्रण हुआ है।

प्रयोगवादी उपन्यास

  • सागर लहरें और मनुष्य आधा गाँव अलग-अलग वैतरणी पानी के प्राचीर बबूल जंगल के फूल रथ के पहिए प्रयोगवादी परम्परा के लेखकों में मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, नरेश मेहता, शिवप्रसाद मिश्र, गिरिधर गोपाल, निर्मल वर्मा, मन्नू भण्डारी, उषा प्रियंवदा आदि सम्मिलित है।
  • आधुनिक हिन्दी उपन्यासों की नवीनतम धारा को प्रयोगवादी उपन्यास कहा जा सकता है। मानव औद्योगीकरण, बदलते परिवेश, भ्रष्टाचार, कुण्ठा, तनाव, महानगरीय जीवन, अकेलापन, असुरक्षा की भावना से त्रस्त है। उपन्यासकारों की दृष्टि इस ओर पड़ी तो उन्होंने अपने उपन्यासों में इसे अभिव्यक्ति दी।
  • मोहन राकेश के उपन्यास 'अँधेरे बन्द कमरे' (1961) तथा 'न आने वाला कल' (1968) ऐसे ही उपन्यास हैं।
  • राजेन्द्र यादव व मन्नू भण्डारी के संयुक्त प्रयासों से 'एक इंच मुस्कान' उपन्यास लिखा गया। इसमें खण्डित व्यक्तित्व वाले आधुनिक व्यक्तियों की प्रेम ट्रेजेडी को चित्रित किया गया है। 
  • मन्नू भण्डारी के 'आपका बंटी' उपन्यास में साथ-साथ रह रहे युवक-युवती से उत्पन्न सन्तान, बाद में उनका तलाक होने पर बच्चे पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव का चित्रण हुआ है। 
  • 'तमस' में भीष्म साहनी ने विभाजन में कुत्सित मानसिकता वाले लोगों (जिन्होंने विभाजन के दौरान लाभ उठाया) को चित्रित किया है। जोशी जी ने 'कुरु कुरु स्वाहा' में युवा पीढ़ी की दिशाहीनता को प्रदर्शित किया है।
  • प्रयोगवादी उपन्यासों में नए-नए कथानकों व शिल्पों का प्रयोग हुआ है। गिरिधर गोपाल के उपन्यास 'चाँदनी के खण्डहर' में नवीन शिल्प दृष्टि का प्रयोग हुआ है। 
  • आधुनिक उपन्यासों में शैली के साथ-साथ नए विषय लिए गए हैं। मानवीय सम्बन्धों के बदलते रूप को इन उपन्यासों में अभिव्यक्ति दी गई है। हिन्दी उपन्यास ने कम समय में आशातीत उपलब्धि प्राप्त की है। हिन्दी उपन्यास का भविष्य अभी सुनहरा है।

Click Here to know the UGC NET Hall of Fame

हमें आशा है कि आप सभी UGC NET परीक्षा 2023 के लिए पेपर -2 हिंदी, 'प्रेमचंदोत्तर उपन्यास' से संबंधित महत्वपूर्ण बिंदु समझ गए होंगे। 

Thank you

Team BYJU'S Exam Prep.

Sahi Prep Hai To Life Set Hai!!

 

Comments

write a comment

Follow us for latest updates