भाषा के माध्यम से मानव जीवन अर्थपूर्ण हुआ है। भाषा मानव जीवन को सरल और सहज बनाने में महत्वपूर्ण है। भाषा के माध्यम से व्यक्ति अपने विचार और भाव प्रकट कर सकता है। मानव ईश्वर की बनाई हुई अन्य रचनाओं में से श्रेष्ठ इसलिए है क्योंकि उसे भाषा कौशल का ज्ञान है।भाषा बौद्धिक क्षमता को भी व्यक्त करती है। भाषा एक ऐसी कला है जिसे अन्य कलाओं की भांति सीखा जा सकता है और उसमें निपुणता हासिल की जा सकती है।
भाषा को श्रवण एवमं वाचक द्वारा ग्रहण किया जा सकता है। भाषा में दिन-प्रतिदिन नित नए विकास होते रहते है। भाषा में चार प्रकार के कौशल होते है श्रवण कौशल, वाचिक कौशल, लेखन कौशल और पठन कौशल। श्रवण कौशल और वाचक कौशल, भाषा कौशल के प्रथम चरण में आते है।
श्रवण कौशल की भूमिका:
- श्रवण कौशल का अर्थ है कानों द्वारा सुनना। इस प्रक्रिया में किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा कही गई बात को सुनते है और उसका भाव ग्रहण करते है। यह शिक्षा के आदान-प्रदान का महत्वपूर्ण भाग है। इसमें व्यक्ति कविता, कहानी, भाषण वाद-विवाद, वार्तालाप आदि का ज्ञान सुनकर ही प्राप्त करता है और उसका अर्थ भी ग्रहण करता है। यदि व्यक्ति की श्रवण इन्द्रियों में दोष है, तो वह न तो भाषा सीख सकता है और न अपने मनोभावों को व्यक्त कर सकता है। अत: उसका भाषा ज्ञान शून्य के बराबर ही रहेगा। बालक सुनकर ही अनुकरण द्वारा भाषा ज्ञान अर्जित करता है। श्रवण कौशल भाषा के विकास का आधार है इसमें महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है।
- श्रवण कौशल के माध्यम से छात्र शब्दों का सही उच्चारण सीखता है। जब ब्यक्ति किसी शब्द को सुनता है और समझता है तब ही वह उस शब्द से संबंधित सही अर्थ को समझता है। व्यक्ति शब्दों का सही उच्चारण कर रहा है या नहीं यह श्रवण कौशल के माध्यम से साफ होता है। इसके परिणामस्वरूप उसके भाषा सम्बंधी कौशल में विकास होता है।
- श्रवण कौशल में व्यक्ति रोज नए शब्दों को सुनता है और अपने भाषायी ज्ञान में विकास करता है। इस कौशल से व्यक्ति अपने शब्दकोश में वृद्धि करता है जिसके माध्यम से उसके भाषा कौशल में विकास होता है।
- सुनकर व्यक्ति अधिक से अधिक ज्ञान अर्जित कर सकता है, यह ऐसी प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति दिन-प्रति दिन बिना किसी रूकावट के ज्ञान प्राप्त कर सकता है और उस ज्ञान को अपने विवेकानुसार प्रयोग कर सकता है। छात्र रेडियो, मोबाइल, टीवी, ओडियो कैसेट जैसे उपकरणों के माध्यम से सामाजिक व्यवहारिक जानकारियां प्राप्त कर सकता है।
- सुनने की प्रक्रिया के माध्यम से व्यक्ति दूसरों के भावों, विचारों, अभिव्यक्तियों को ग्रहण कर सकता है। ध्वनि व्यक्ति के मस्तिष्क में एक छाप छोड़ती है जिससे उस विशेष शब्द से संबंधित ध्वनि व्यक्ति को स्मरण रह जाती है।
वाचिक कौशल की भूमिका:
- बोलकर व्यक्ति अपनी अभिव्यक्ति, मनोभावों को प्रकट करता है। इस प्रक्रिया में व्यक्ति बोलकर लोगों से संवाद स्थापित करता है। साथ ही संचार की प्रक्रिया पूर्ण होती है। वाचिक कौशल में निपुणता से छात्र मे आत्मविश्वास उत्पन्न होता है जो कि शिक्षण और बच्चे के सम्पूर्ण विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
- वाचिक कौशल से यह पता लगाया जा सकता है कि शिक्षण प्रक्रिया में कोई त्रुटि तो नहीं है। वाचिक कौशल से मूल्यांकन प्रक्रिया में सहायता मिलती है। इसके माध्यम से अध्यापक छात्र की भाषा से संबंधित त्रुटियों का पता लगा सकता है। और शिक्षण के दौरान उन त्रुटियों को दूर करके छात्र को निपुण बना सकता है।
- आधुनिक युग में समाज में अपनी छवि को बनाने के लिए और स्वयं को प्रस्तुत करने के लिए आत्मविश्वास का होना बहूत जरूरी है। यह आत्मविश्वास छात्र में वाचिक कौशल में निपुणता से प्राप्त होता है। इससे छात्र झिझक को खत्म कर आगे कदम बढ़ाता है। जब तक छात्र अपने विचार अभिव्यक्त करना नहीं सिखता है तब तक उसमें भाषा का विकास नहीं होता। वाचिक कौशल में कक्षा में ही सुधार किया जाता है। कक्षा में छात्र संकोच समाप्त करके बोलना आरम्भ करता है और विभिन्न विषयों पर वाद-विवाद करता है। जिससे उसका शिक्षण विकास होता है।
- बोलने के माध्यम से छात्र भाषा प्रवाह में प्रवीणता और निपुणता हासिल करता है। भाषा में उसकी दक्षता और मजबूत होती है। भाषा विकास में बोलने का काफी महत्व है। भाषण, वाद-विवाद प्रतियोगिता, प्रश्नोत्तरी के माध्यम से शिक्षण प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाता है। यह बालक को मौखिक अभिव्यक्ति के लिए प्रेरित करता है जो उसके भाषा विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भाषा का विकास प्रतिदिन होता है यदि बोलने का कौशल छात्र में विकसित नहीं होता तो इस स्थिति में सीखने की प्रक्रिया बहुत धीमी हो जाती है।
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