ज्ञान देने की यही क्रियाएँ शिक्षण सूत्र या विधियाँ कहलाती हैं। आमतौर पर एक ही विषय या चीज़ को पढ़ाने के बहुत से तरीके हो सकते हैं, जिनके द्वारा एक शिक्षक छात्रों के मानसिक स्तर, उनकी आवश्यकताओं और शिक्षण की आवशयक्ताओं को ध्यान में रखते हुए ज्ञान देता है। इसलिए ही शिक्षण को एक कौशलात्मक क्रिया कहते हैं, क्यूंकि यह शिक्षक का कौशल ही है जिसके द्वारा वह सही समय पर सही विधि या सूत्र द्वारा छात्रों को सही शिक्षा देता है।
सही और सार्थक शिक्षण के लिए कुछ शिक्षण सूत्र और विधियाँ इस प्रकार से हैं –
- ज्ञात से अज्ञात की ओर - प्राथमिक स्तर यह विधि सबसे अधिक लोकप्रिय होती है। छोटे बच्चों को शिक्षण के प्रति उत्साहित और सक्रीय बनाने के लिए शिक्षक सदैव वहीं से प्रारम्भ करता है, जो बच्चों के अनुभव क्षेत्र में आती हैं और उन्हें पता होती हैं। जैसे - लिखना या पढ़ना सिखाने के लिए चित्रों का सहारा लिया जाता है। बच्चे आसपास देख कर चित्र पहचान जाते हैं कि यह पंखा है और उसका उच्चारण भी जानते हैं। उसी से उन्हें 'प' और 'ख' वर्णों के स्वरुप और लिखाई से परचित कराया जाता है।
- मूर्त से अमूर्त की ओर - इस सूत्र को ‘‘स्थूल से सूक्ष्म की ओर’ या 'प्रत्यक्ष से प्रत्यक्ष की ओर' भी कहा जाता है। स्पष्ट रूप से जो चीज़ आप सामने देख सकते हैं, उसी से छिपी हुईं चीज़ या ज्ञान के बारे में सीखना अधिक सरल हो जाता है। माॅडल, चार्ट आदि के सहारे किसी वस्तु का वर्णन करना सरल होता है, क्यूंकि कोई भी घटना, वस्तु, चित्र या लिखित वस्तु सामने देखकर वो मस्तिष्क पर अधिक प्रभाव डालता है, समझने में सरल लगता है और लम्बे समय तक स्मरण भी रहता है।
- सरल से जटिल की ओर - वैसे तो यह सूत्र/विधि हर स्तर पर उपयोगी सिद्ध होती है, परन्तु प्राथमिक स्तर पर और कोई नयी चीज़ सिखाने हेतु काफी लाभदायक होती है। इसमें शिक्षक विषय के सरल भाग से प्रारम्भ कर कठिन भाग तक जाता है। जैसे - लेखन शिक्षण सदैव आदि-तिरछी रेखाओं से शुरू होता है, वर्णों से शब्दों तक होते हुए वाक्यों तक पहुँचता है। रेखाएं बनाना सरल होता है, फिर वर्ण सिखाये जाते हैं, उन्हें जोड़कर सार्थक अर्थ वाले शब्द सिखाये जाते हैं।
- विशिष्ट से सामान्य की ओर - यह सूत्र माध्यमिक स्तर से आगे के स्तरों पर अधिक प्रभावपूर्ण रहता है। किसी विशेष वस्तु के बारे में जानकार उससे जुड़ी अन्य सामान्य बातों का ज्ञान लेना अधिक सरल और रुचिकर हो जाता है। जैसे - पंखे के बारे में सभी जानते हैं और यह एक विशेष प्रकार की मशीन है। पंखे से प्रारम्भ कर शिक्षक विद्युत् के महत्त्व के बारे में और विद्युत् से चलने वाली कई और मशीनों के बारे में भी जानकारी दे सकता है। छात्र भी इस प्रकार बहुत रूचि लेकर समझने का प्रयास करते हैं।
- पूर्ण से अंश की ओर - इस सूत्र के अनुसार बच्चों को जो कुछ भी सिखाया जाए, उसे पहले पूर्ण रूप में सामने रखा जाए और बाद में उसके हर अंश को स्पष्ट रूप से स्पष्ट किया जाए। इससे बच्चों में आगे पढ़ाये जाने वाले विषय के प्रति उत्साह और रूचि जागृत होती है। जैसे - पाठ के मूल भाव के बारे में बातकर ही पाठ आरम्भ किया जाता है। इससे बच्चे मूल भाव से जोड़कर पाठ के हर अंश को सही से समझ भी पाते हैं। उसी प्रकार विज्ञान में हमारे शरीर के बारे में थोड़ी जानकारी देकर एक-एक करके शरीर के हर अंग कि जानकारी दी जाती है।
- आगमन से निगमन की ओर - इस सूत्र के अनुसार अनेक उदाहरण देकर नियम निर्धारित किये जाते हैं। शिक्षक इस विधि का प्रयोग अनेक विषयों में करते हैं, जैसे व्याकरण आदि। उदाहरण के लिए - विभिन्न वाक्य लेकर उनमें किसी विशेष नाम बताने वाले शब्दों का चयन करने के लिए कहा जाए। फिर पुछा जाए कि इन से व्यक्तियों के नाम, वस्तुओं के नाम और स्थानों के नाम अलग किये जायें। अब बताया जाए कि नाम वाले शब्द संज्ञा कहलाते हैं और उसके अनेक प्रकार भी बताये जायें।
- अनिश्चित से निश्चित की ओर - देखी हुई वस्तु के विषय में बालक अपनी सुविधा और आवश्यकता के अनुसार कुछ अनिश्चित विचार रखता है। इन्हीं अनिश्चित विचारों के आधार पर निश्चित एवं स्पष्ट विचार बनाये जाने चाहिये। अस्पष्ट शब्दार्थों से स्पष्ट, निश्चित तथा सूक्ष्म शब्दार्थों की ओर बढ़ा जाए। उदाहरण के लिए घटना वर्णन के आधार पर सभी छात्रों की राय जानी जाती है और फिर शिक्षक उसपर अपने स्पष्ट विचार रखता है की यह इस प्रकार हुआ, और इसका यही परिणाम होता है।
- अनुभूति से तर्कयुक्त की ओर - इस सूत्र के अनुसार बच्चों को उनके अनुभवों के आधार पर सिखाने का प्रयास होता है, जिससे उन्हें सही व्यावहारिक ज्ञान रुचिपूर्ण तरीके से मिल सके। कक्षा में बच्चों से विभिन्न स्थितियों में हुईं अनुभूतियों पर चर्चा की जाती है ओर उस आधार पर शिक्षक उन्हें उससे सम्बंधित तर्क से अवगत कराता है।
- विश्लेषण से संश्लेषण की ओर – उच्च स्तर पर प्रयोग होने वाला यह सूत्र कहता है कि एक बार शब्द, वाक्य भाव या अर्थ का विश्लेषण करके उसे छोड़ न दिया जाए, वरन् बाद में उनका संश्लेषण करके एक स्पष्ट सामान्य विचार बनाने की ओर छात्रों को उन्मुख या प्रोत्साहित किया जाए। विश्लेषण का अर्थ होता है हर पहलू कि जांच पड़ताल करना ओर निष्कर्ष पर पहुचंने का प्रयास करना। संश्लेषण का अर्थ होता है एक सही निष्कर्ष पर पहुंच कर उसे उस ओर सार्थक बनाने के लिए सही तर्क उसमें मिलाना या जोड़ना।
- मनोवैज्ञानिक से तार्किक की ओर - यह सूत्र इस बात पर ध्यान देता है कि पहले वह पढाया जाए जो छात्रों की योग्यता एवं रूचि के अनुकूल हो, तत्पश्चात विषय सामग्री के तार्किक क्रम पर ध्यान दिया जाए। इससे बच्चों में उत्साह, रूचि और सक्रियता आती है और वे सीखने में अधिक ध्यान केंद्रित कर पाते हैं। जैसे - बच्चों से उनका अनुभव पुछा जाए कि किस प्रकार उनके आसपास एक छोटा सा पौधा बड़ा होकर पेड़ बन जाता है और बाद में उससे सम्बंधित वैज्ञानिक तर्क दिए जायें। यह बच्चों के व्यावहारिक ज्ञान को बहुत प्रभावित करता है।
शिक्षण विधियों की सूची यहीं समाप्त नहीं होती। अपने शिक्षण और स्थितियों के अनुभव के आधार पर शिक्षण और कई अन्य प्रकार की विधियों का निर्माण और पालन भी कर सकते हैं, जिससे शिक्षण सही प्रकार से किया जा सके। सबसे महत्वपूर्ण यह है कि शिक्षक परिस्थितयों को सही प्रकार से समझे, आवश्यकताओं को समझे और उस आधार पर सही तकनीक और विधि का चयन कर शिक्षण प्रक्रिया के उद्देश्य को पूर्ण करने का हर संभव प्रयास करे।
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write a commentReal IndiaMay 1, 2020
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Nandlal KushwahaAug 9, 2020
Shabnam SiddiquiDec 3, 2020
Girish RathodDec 10, 2020
BhawanaDec 31, 2020
Jyoti GuptaJan 1, 2021
LovelyFeb 18, 2021
KajalMar 9, 2022