सूरदास को किस रस का सम्राट कहा गया है?
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: November 9th, 2023
सूरदास को वात्सल्य रस का सम्राट कहा गया है। सूरदास के जन्म की सही तारीख अज्ञात है, लेकिन आम तौर पर विद्वानों का मानना है कि यह 1478 में हुआ था। उन्होंने वात्सल्य रस के साथ श्रृंगार और शान्त रसों के बारे में भी बताया है। “साहित्य लहरी’ सूरदास की चर्चित लिखी रचना मानी जाती है। इसमें साहित्य लहरी के रचना-काल के सम्बन्ध में निम्न पद मिलता है – मुनि पुनि के रस लेख। दसन गौरीनन्द को लिखि सुवल संवत् पेख।
सूरदास: वात्सल्य रस के सम्राट
सूरदास 16वीं शताब्दी के एक अंधे हिंदू भक्ति कवि और गायक थे, जो सर्वोच्च भगवान कृष्ण की प्रशंसा में लिखे गए अपने कार्यों के लिए जाने जाते थे। वह भगवान कृष्ण के वैष्णव भक्त थे, और वे एक श्रद्धेय कवि और गायक भी थे। उनकी रचनाओं ने भगवान कृष्ण के प्रति उनकी भक्ति को महिमामंडित किया और उस पर कब्जा कर लिया।
रस मनुष्य के अंदर के भाव (Emotions) को कहते है। रस यानी हमारे अंदर छुपे हुए ऐसे भाव होते है जिन्हे हम हर दिन अलग अलग तरीके से व्यक्त करते रहते है। इन्ही रस के वजह से हर इंसान अपने अंदर के भाव को दुसरो के सामने रखता है जिससे सामनेवालों को पता चलता है असल में वह क्या कहना चाहता है या उसका उद्देश्य क्या है।
- सूरदास कई सिद्धांतों का विषय हैं, जिनमें से सबसे लोकप्रिय यह है कि वे अंधे पैदा हुए थे।
- उनके जीवनकाल में वल्लभाचार्य नाम के एक और संत रहते थे।
- वल्लभाचार्य ने पुष्टि मार्ग संप्रदाय की स्थापना की, और उनके उत्तराधिकारी विठ्ठलनाथ ने संगीत रचना के माध्यम से भगवान कृष्ण की महिमा को फैलाने में उनकी सहायता के लिए आठ कवियों को चुना।
- सूरदास को उनकी असाधारण भक्ति और काव्य प्रतिभा के कारण “अष्टछाप” के रूप में जाने जाने वाले आठ कवियों में सबसे प्रमुख माना जाता है।
Summary:
सूरदास को किस रस का सम्राट कहा गया है?
रस हमारे अंदर के भाव को बताता है। सूरदास को ‘वात्सल्य रस’ का सम्राट कहा जाता है। वात्सल्य रस का स्थायी भाव वात्सल्यता (अनुराग) होता है माता का पुत्र के प्रति प्रेम, बड़ों का बच्चों के प्रति प्रेम, गुरुओं का शिष्य के प्रति प्रेम, बड़े भाई का छोटे भाई के प्रति प्रेम आदि का भाव स्नेह कहलाता है यही स्नेह का भाव परिपुष्ट होकर वात्सल्य रस कहलाता है।
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