भारत आने वाले प्रथम यूरोपीय कौन थे?
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: November 9th, 2023
भारत आने वाले प्रथम यूरोपीय वास्को डि गामा थे। भारत देश के सामुद्रिक रास्तों की खोज 15वीं सदी के अंत में हुई। वर्ष 1948 में वह पहली बार भारत के गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद की सहायता से ही भारतीय तट पर पहुंचे। वह काल भारत का स्वर्णिम काल माना जाता है। उस समय भारत सोने की चिड़ियाँ कहा जाता था। भारत का समुद्री मार्ग 15वीं सदी में खोजा गया जिसके बाद यूरोपीय लोग भारत आने लगे।
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भारत आने वाले प्रथम यूरोपीय
वास्को डि गामा (Vasco Da Gama) पुर्तगाल का एक नागरिक था। कहा जाता है कि जब वह भारत पहुंचा तो उसका विरोध वहां के व्यापारियों ने उसका बड़ा विरोध किया। जिसका कारण था कि उसे अगले साल ही अपने देश वापस जाना पड़ा। उसके पुर्तगाल जाने के बाद ही भारत के समुद्र मार्गों का ज्ञान सबको हुआ।
वर्ष 1500 में पुर्तगाल से आये व्यापारियों ने कोचीन(केरल) के पास अपनी कोठी बनवाई जिसकी सुरक्षा उस समय के राजा सामुरी ने दिया था। धीरे-धीरे उन्होंने अपना अधिकार गोवा राज्य में जमाना शुरू किया। उन्होंने कई एशियाई जगहों पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। भारत की समृद्धि के कारण वे भारत के साथ व्यापार करना चाहते हैं।
- वास्को-द-गामा 17 मई 1498 को भारत पहुंचा। अब्दुल मजीद नाम के एक गुजराती व्यापारी ने उसे भारत पहुंचने में मदद की।
- उसने कालीकट के राजा से व्यापार करने का अधिकार प्राप्त किया, जिसका शीर्षक ‘जमोरिन’ था, लेकिन अरब व्यापारियों ने वहां स्थापित किया वर्षों तक उसका विरोध किया। 1499 में जब वे स्वदेश लौटे, तभी लोगों को भारत जाने वाले समुद्री मार्ग के बारे में पता चला।
- वास्को डी गामा को यूरोप से भारत पहुंचने के लिए अफ्रीका में केप ऑफ गुड होप के आसपास नौकायन करने वाले पहले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है।
- 20 मई, 1498 को भारत आने से पहले, वास्को डी गामा ने दो यात्राएँ कीं, जो 1497 और 1502 में शुरू हुईं, जिसके दौरान उन्होंने दक्षिणी अफ्रीकी तट के साथ व्यापार किया और स्थानों पर उतरे।
Summary:
भारत आने वाले प्रथम यूरोपीय कौन थे?
वास्को डि गामा भारत आने वाले प्रथम यूरोपीय थे। उनके भारत आने कारण ही पुर्तगालियों, अग्रेजों आदि विदेशी मेहमानों का भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया। जिससे भारत 1947 में आजाद हुआ। वह अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप के चारों ओर चला गया और अरब और वेनिस के मसाला व्यापारियों के एकाधिकार को तोड़ने में सफल रहा।
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