General Hindi : व्याकरण for JE/AE Exam
कारक
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध का बोध होता है, उसे कारक कहते हैं।
उदाहरण - श्रीराम ने रावण को बाण से मारा
यहाँ 'ने' 'को' 'से' शब्दों ने वाक्य में आये अनेक शब्दों का सम्बन्ध क्रिया से जोड़ दिया है। यदि ये शब्द न हो तो शब्दों का क्रिया के साथ तथा आपस में कोई सम्बन्ध नहीं होगा। संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध स्थापित करने वाले शब्द कारक कहलाते है।
कारक के भेद - हिन्दी में कारकों की संख्या आठ है –
(A).तत्सम शब्द - जो शब्द संस्कृत से हिंदी भाषा में बिना किसी परिवर्तन के अपना लिये जाते है । उन्हें तत्सम शब्द कहते है तत् का अर्थ "उसके" और सम् का अर्थ "समान" इस प्रकार जो शब्द संस्कृत के समान होते है या जो शब्द बिना विकृत हुए संस्कृत से ज्यों के त्यों हिंदी भाषा में आ जाते है उन्हें तत्सम शब्द कहते है ।
(B).तद्भव शब्द - तद्भव शब्द वे शब्द हैं जिनमें थोड़ा सा परिवर्तन करके हिंदी में प्रयुक्त किया जाता हैं अर्थात संस्कृत शब्दों का बदला हुआ रूप तद्भव शब्द होते है ।
पर्यायवाची
'पर्याय' का अर्थ है- 'समान' तथा 'वाची' का अर्थ है- 'बोले जाने वाले' अर्थात जिन शब्दों का अर्थ एक जैसा होता है, उन्हें 'पर्यायवाची शब्द' कहते हैं।
पर्यायवाची शब्दों के कुछ उदाहरण -
अमृत | सुरभोग सुधा, सोम, पीयूष, अमिय, जीवनोदक । |
अतिथि | मेहमान, अभ्यागत, आगन्तुक, पाहूना। |
अग्नि | आग, ज्वाला, दहन, धनंजय, वैश्वानर, धूमकेतु, अनल, पावक, वह्नि , कृशानु, |
अनुपम | अपूर्व, अतुल, अनोखा, अनूठा, अद्वितीय, अदभुत, अनन्य। |
लिंग का शाब्दिक अर्थ होता है – चिह्न। संज्ञा के जिस रूप से व्यक्ति या वस्तु की नर या मादा जाति का बोध हो, उसे व्याकरण में 'लिंग' कहते है।
- मोहन पढ़ता है। (पढ़ता का रूप पुल्लिंग है, इसका स्त्रीलिंग रूप 'पढ़ती' है। )
- गीता गाती है। (यहाँ, 'गाती' का रूप स्त्रीलिंग है।)
रस का शाब्दिक अर्थ है – आनंद। काव्य को पढने व सुनने से जो आनंद प्राप्त होता है, रस कहलाता है। रस को 'काव्य की आत्मा' माना जाता है।
- परिभाषा - काव्य को पढ़ते या सुनते समय जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे रस कहा जाता है।
- रस उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय भरत मुनि को जाता है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'नाट्यशास्त्र' में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है। किन्तु अभिनव गुप्त ने 9 रसों को मान्यता दी अत: वर्तमान में 9 रस माने जाते है।
- भरतमुनि ने लिखा है- विभावानुभाव-व्यभिचारी-संयोगाद् रसनिष्पत्तिः अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
वचन - वचन का अर्थ संख्या से है । विकारी शब्द के जिस रूप से उनकी संख्या का बोध होता है उसे वचन कहते है ।
वचन के प्रकार – वचन के दो प्रकार होते है।
(1) एकवचन
जैसे :- पिता , माला , पुस्तक , स्त्री , टोपी , बन्दर , मोर , बेटी , घोडा , चूहा, नदी , कमरा , घड़ी , घर , पर्वत , मैं , वह , यह , रुपया , बकरी , गाड़ी , माली , लड़का , लडकी , गाय , सिपाही , बच्चा , कपड़ा , माता , अध्यापक , केला , चिड़िया , संतरा , गमला , तोता आदि।
(2) बहुवचन
जैसे :- रोटियां , पेंसिलें , स्त्रियाँ , बेटे , बेटियाँ , केले , गमले , चूहे , तोते , घोड़े , घरों , पर्वतों , नदियों ,लडके , गायें , कपड़े , टोपियाँ , मालाएँ , माताएँ , पुस्तकें , वधुएँ , गुरुजन , हम , वे , ये , लताएँ , लडकियाँ , गाड़ियाँ , बकरियां , रुपए।
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