भाषा शिक्षण पर नोट्स

By Abhishek Jain |Updated : August 13th, 2022

भाषा एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा कोई अपने विचारों, अपनी सोच, अपने अनुभवाें व अपने संदेशों को व्यक्त कर सकता है। भाषा मानव संचार का माध्यम है। भाषा में विस्तार एवं सुधार हो सकता है। भाषा का अध्ययन कराना एक कठिन कार्य है क्योंकि असल में यह विषय की प्रकृति से जुड़ा है।

भाषा का प्रारंभिक कार्य संचार, स्व-अभिव्यक्ति एवं सोच है। भाषा एक सामाजिक एवं अन्य लोगों पर नियंत्रण करने के लिये सामंजस्य का एक माध्यम है।

भाषा का कार्य :

सभी प्रकार की भाषाएँ एक सहमति कोड का उपयोग करती हैं जिनका विकास उन संस्कृतियों के अनुसार हुआ है जिनमें उनका उत्थान हुआ। जब भाषा का विकास होता है तो भाषा के सुर, ताल और राग बहुत महत्वपूर्ण होते हैं । चेहरे के हाव-भाव एवं हाथ  की गति भी अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं एवं उस विशेष संस्कृति के परम्परागत प्रतीकों का हिस्सा है। भाषा का विकास संकेतात्मक व्यवहार का एक हिस्सा है तथा इसे अक्सर संकेतात्मक विकास की अवधि कहा जाता है। भाषा का विकास निरूपण की प्रक्रिया एवं संचार से गहराई से जुड़ा है जिसका अर्थ है कि यह इसे निरूपण एवं संवाद करने में आसान बना देता है।

हैलिडे ने बच्चों के आरम्भिक वर्षों में भाषा के सात कार्याें की पहचान की। प्रथम चार कार्य बच्चों के शारीरिक, भावनात्मक एवं सामाजिक आवश्यकताओं को संतुष्ट करता है। हैलिडे ने उन्हें साधक, विनियामक, अंतर्वैयक्तिक एवं वैयक्तिक कार्य कहा।

साधक: - यह इसलिए कि बच्चे अपनी आवश्यकताओं को व्यक्त करने के लिए भाषा का उपयोग करते हैं।

विनियामक: - यह वहॉँ पर जहाँ अन्य को बताने के लिये भाषा का इस्तेमाल किया जाता है कि उसे क्या करना है ।

अंतर्वैयक्तिक: - यहाँ भाषा का उपयोग अन्य से संपर्क बनाने तथा संबंध बनाने के लिये किया जाता है।

वैयक्तिक: - यह अनुभव, राय तथा व्यक्ति की पहचान व्यक्त करने की भाषा का उपयोग है। अगले तीन कार्य अनुमानी, कल्पनाशीलता और प्रतिनिधित्ववादी है जो बच्चों को उन्हें उनकी पर्यावरण की समय-सीमा में लाने में मदद करते हैं।

अनुमानी:- यह जब भाषा का उपयोग पर्यावरण के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए करते हैं।

कल्पनाशीलता - भाषा का इस्तेमाल कहानियाँ तथा चुटकुले कहने तथा काल्पनिक माहौल बनाने के लिये किया जाता है।

प्रतिनिधित्ववादी- भाषा का उपयोग तथ्यों तथा जानकारी देने के लिये होता है।

हैलिडे के अनुसार, जब बच्चा अपनी मातृभाषा में बोलने की चेष्टा करता है तो ये कार्य पूर्ण रूप से तीन स्तरीय भाषा के तीन मेटा कार्यों को पूरा करता है। ये मेटा कार्य विचारात्मक, पारस्परिक एवं शाब्दिक हैं।

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