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Question 1
Question 2
Question 3
27 + 36 ÷ 9 × 15 – 24 = 57
Question 4
Question 5
Question 6
Question 7
Question 8
This statement belongs to which sociologist -
Question 9
Question 10
Question 11
पीबहि में पागी मनों जुबति जलेबी खात’’
इन पंक्तियों में कौन सा रस है ?
Question 12
Question 13
Question 14
साहित्योन्नति के साधनों में पुस्तकालयों का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इनके द्वारा साहित्य के जीवन की रक्षा, पुष्टि और अभिवृद्धि होती है। पुस्तकालय सभ्यता के इतिहास का जीता-जागता गवाह है । इसी के बल पर वर्तमान भारत को अपने अतीत गौरव पर गर्व है। पुस्तकालय भारत के लिए कोई नयी वस्तु नहीं है । लिपि के आविष्कार से आज तक लोग निरन्तर पुस्तकों का संग्रह करते रहे हैं। पहले देवालय, विद्यालय और नृपालय इन संग्रहों के प्रमुख स्थान होते थे । इनके अतिरिक्त, विद्वज्जनों के अपने निजी पुस्तकालय भी होते थे । मुद्रणकला के आविष्कार से पूर्व पुस्तकों का संग्रह करना आजकल की तरह सरल बात न थी। आजकल साधारण स्थिति के पुस्तकालय में जितनी सम्पत्ति लगती है, उतनी उन दिनों कभी-कभी एक-एक पुस्तक की तैयारी में लग जाया करती थी। भारत के पुस्तकालय संसार भर में अपना सानी नहीं रखते थे। प्राचीन काल से लेकर मुगल सम्राटों के समय तक यही स्थिति रही । चीन, फारस प्रभृति सुदूर स्थित देशों के झुण्ड विद्यानुरागी लम्बी यात्राएँ करके भारत आया करते थे।
पुस्तकालयों के द्वारा किसके जीवन की रक्षा, पुष्टि और अभिवृद्धि होती है ?
Question 15
साहित्योन्नति के साधनों में पुस्तकालयों का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इनके द्वारा साहित्य के जीवन की रक्षा, पुष्टि और अभिवृद्धि होती है। पुस्तकालय सभ्यता के इतिहास का जीता-जागता गवाह है । इसी के बल पर वर्तमान भारत को अपने अतीत गौरव पर गर्व है। पुस्तकालय भारत के लिए कोई नयी वस्तु नहीं है । लिपि के आविष्कार से आज तक लोग निरन्तर पुस्तकों का संग्रह करते रहे हैं। पहले देवालय, विद्यालय और नृपालय इन संग्रहों के प्रमुख स्थान होते थे । इनके अतिरिक्त, विद्वज्जनों के अपने निजी पुस्तकालय भी होते थे । मुद्रणकला के आविष्कार से पूर्व पुस्तकों का संग्रह करना आजकल की तरह सरल बात न थी। आजकल साधारण स्थिति के पुस्तकालय में जितनी सम्पत्ति लगती है, उतनी उन दिनों कभी-कभी एक-एक पुस्तक की तैयारी में लग जाया करती थी। भारत के पुस्तकालय संसार भर में अपना सानी नहीं रखते थे। प्राचीन काल से लेकर मुगल सम्राटों के समय तक यही स्थिति रही । चीन, फारस प्रभृति सुदूर स्थित देशों के झुण्ड विद्यानुरागी लम्बी यात्राएँ करके भारत आया करते थे।
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