उच्चारण दोष:- कई क्षेत्रो व भाषाओ मे, स–श, व–ब, न–ण आदि वर्णो मे अर्थभेद नही किया जाता तथा इनके स्थान पर एक ही वर्ण स, ब या न बोला जाता है जबकि हिन्दी मे इन वर्णो की अलग–अलग अर्थ–भेदक ध्वनिया है। अतः उच्चारण दोष के कारण इनके लेखन मेँ अशुद्धि हो जाती है। जैसे–
जहाँ ‘श’ एवं ‘स’ एक साथ प्रयुक्त होते हैँ वहाँ ‘श’ पहले आयेगा एवं ‘स’ उसके बाद।
जैसे: शासन, प्रशंसा, नृशंस, शासक ।
स्’ के स्थान पर पूरा ‘स’ लिखने पर या ‘स’ के पहले किसी अक्षर का मेल करने पर अशुद्धि हो जाती है,
जैसे: इस्त्री (शुद्ध– स्त्री), अस्नान (शुद्ध– स्नान), इस्कूल(शुद्ध- स्कूल) परसपर अशुद्ध है जबकि शुद्ध है परस्पर। स्कूल
कोई, भाई, मिठाई, कई, ताई आदि शब्दो को कोयी, भायी, मिठायी, तायी आदि लिखना अशुद्ध है। इसी प्रकार अनुयायी, स्थायी, वाजपेयी शब्दोँ को अनयाई, स्थाई, वाजपेई आदि रूप मेँ लिखना भी अशुद्ध होता है।
सम् उपसर्ग के बाद य, र, ल, व, श, स, ह आदि ध्वनि हो तो ‘म्’ को हमेशा अनुस्वार के रूप मेँ लिखते हैँ,
जैसे: संयम, संवाद, संलग्न, संसर्ग, संहार, संरचना, संरक्षण आदि। इन्हेँ सम्शय, सम्हार, सम्वाद, सम्रचना, सम्लग्न, सम्रक्षण आदि रूप मेँ लिखना सदैव अशुद्ध होता है।विराम चिह्नोँ का प्रयोग न होने पर भी अशुद्धि हो जाती है और अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
जैसे:
रोको, मत जाने दो
रोको मत, जाने दो।
इन दोनोँ वाक्योँ मेँ अल्प विराम के स्थान परिवर्तन से अर्थ बिल्कुल उल्टा हो गया है। ‘क्श’ का प्रयोग सामान्यतः नक्शा, रिक्शा, नक्श आदि शब्दोँ मेँ ही किया जाता है, शेष सभी शब्दोँ मेँ ‘क्ष’ का प्रयोग किया जाता है। जैसे– रक्षा, कक्षा, क्षमता, सक्षम, शिक्षा, दक्ष आदि।
शब्दों की वर्तनी में अशुद्धि दो प्रकार की होती है-
- वर्ण संबंधी
- शब्द रचना संबंधी
वर्ण संबंधी अशुद्धियां भी दो प्रकार की होती हैं-
- स्वर संबंधी
- व्यंजन संबंधी
अशुद्धियां और उनके शुद्ध रूप (महत्वपूर्ण उदहारण):
अशुद्धियां और उनके शुद्ध रूप- (परीक्षाओं में निरंतर पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण उदहारण):
अभ्यास का समय
वर्तनी की त्रुटि पर हिंदी भाषा का क्विज
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