1. उच्चारण के आधार पर वर्णों की संख्या = 45 वर्ण ( 10 स्वर + 35 व्यंजन )
2. लेखन के आधार पर वर्णों की संख्या = 52 वर्ण ( 13 स्वर + 35 व्यंजन + 4 सयुक्त व्यंजन )
वर्णों के दो भेद होते है:
- स्वर (अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ए,ऐ,ओ,औ,अं,अः)
- व्यंजन (‘क’ वर्ग, ’च’ वर्ग, ’ट’ वर्ग, ’त’ वर्ग, ’प’ वर्ग)
A. स्वर:
स्वर वे वर्ण है जिनका उच्चारण करते समय किसी अन्य वर्ण की सहायता नहीं ली जाती है, वे स्वर कहलाते है। स्वरों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है तथा उच्चारण के समय हवा मुँह से बिना अवरोध के बाहर निकलती है। स्वरों की संख्या 11 है अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ
1. मूल स्वर:
- अ, इ, उ, ऋ
2. दीर्घ स्वर:
मूल स्वर अपने सामान स्वर से मिलकर दीर्घ हो जाते है।
- अ + अ = आ
- इ + इ = ई
- उ + उ = ऊ
3. सयुक्त स्वर:
दो भिन्न स्वरों के योग से बने स्वर को सयुक्त स्वर कहते है।
- अ + इ = ए
- अ + ए = ऐ
- अ + उ = ओ
- अ + ऊ = औ
4. अयोगावाह्:
इसमें अनुस्वर और विसर्ग होते है।
- अनुस्वर – अं
- विसर्ग - अः
5. अनुनासिकता:
इस स्वर के उच्चारण में हवा मुँह और नाक दोनों से निकलती है यह स्वर और व्यंजन दोनों के गुण रखता है, इसे चंद्रबिंदु कहते है।
उदाहरण:-
- मुँह शब्द में चंद्रबिंदु का प्रयोग है।
स्वरों का उच्चारण स्थल:
स्वर | उच्चारण स्थान |
अ, आ | कण्ठ |
इ, ई | तालु |
उ,ऊ | ओष्ठ |
ए, ऐ | कण्ठ तालु |
ओ, औ | कण्ठ ओष्ठ |
उच्चारण में लगाने वाले समय के आधार:
A. ह्रस्व:
जिन स्वरों के उच्चारण में कम समय लगता है,ऐसे स्वरों को ह्रस्व स्वर कहते है।
- अ, इ, उ, ऋ
B. दीर्घ:
जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वर से दुगना समय लगता है,ऐसे स्वरों को दीर्घ स्वर कहते है।
- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ
C. प्लुत स्वर:
ऐसे स्वर जिनमें तीन मात्राओं का समय लगे, ऐसे स्वर संस्कृत में होते है। प्लुत स्वर कहलाते है।
उदाहरण:
- “ओऽम” शब्द में 3 मात्रा होगी
जिह्वा के आधार पर:
कुछ स्वरों के उच्चारण में जीभ का अग्रभाग काम करता है, कुछ में मध्यभाग तथा कुछ में पश्चभाग।
A. अग्र स्वर:
- इ, ई, ए, ऐ
B. मध्य स्वर:
- अ
C. पश्च स्वर:
- आ, उ, ऊ, ओ, औ
B. व्यंजन:
वे ध्वनियाँ जिनका उच्चारण करने के लिए स्वर की सहायता लेनी पड़ती है, व्यंजन कहलाते है। ध्वनि के उच्चारण में श्वास वायु मुँह के किसी ना किसी भाग से टकराकर बाहर आती है ऐसे वर्ण व्यंजन कहलाते है।
व्यंजन के भाग:
1. स्पर्श व्यंजन:
ऐसे वर्ण जिनका उच्चारण करने के लिए जिव्हा को मुख के सभी स्थानों को स्पर्श करना पड़ता है, वे वर्ण स्पर्श व्यंजन कहलाते है। स्पर्श व्यंजनों की संख्या 25 होती है।
वर्ग | वर्ण |
क वर्ग | क्, ख्, ग्, घ्, ङ् |
च वर्ग | च्, छ्, ज्, झ्, ञ् |
ट वर्ग | ट्, ठ्, ड्, ढ्, ण् |
त वर्ग | त्, थ्, द्, ध्, न् |
प वर्ग | प्, फ्, ब्, भ्, म् |
2. अन्तःस्थ व्यंजन:
उच्चारण करते समय श्वास वायु में नाममात्र का अवरोध हो।
- य् (अर्ध स्वर), व्, र् , ल्
3. उष्म व्यंजन:
जिन वर्णों के बोलने से मुख से गर्म श्वास निकलती है,उष्म वर्ण कहलाते है।
- श्, ष्, स्, ह्
4. सयुक्त व्यंजन:
दो अथवा दो से अधिक व्यंजनों के मेल से सयुक्त व्यंजन बनता है।
- क् + ष = क्ष
- त् + र = त्र
- ज् + ञ = ज्ञ
- श् + र = श्र
उच्चारण स्थान | व्यंजक वर्ण |
कण्ठ | क,ख,ग,घ,ड., |
तालु | च,छ,ज,झ, ञ, य,श |
मूर्धा | ट,ठ,ड,ढ,ण,र,ष |
दंत | त,थ,द,ध,न,ल,स |
ओष्ठ | प,फ,ब,भ,म |
नासिका | ड., ञ ,ण,न,म |
दंत ओष्ठ | व |
अघोष और घोष वर्ण :-
A. घोष:
जिन वर्णों के उच्चारण में, स्वर तंत्रियों में ध्वनि का कम्पन हो, इनकी संख्या 31 होती है।
उदाहरण:
इसमें सभी स्वर "अ से ओ" तक और
- ग, घ, ङ
- ज, झ, ञ
- ड, ढ, ण
- द, ध, न
- ब, भ, म
- य, र, ल, व, ह
B. अघोष वर्ण:
स्वर तंत्रियो में ध्वनि का कम्पन न हो, इनकी संख्या 13 होती है।
उदाहरण:
- क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ, श, ष, स
वर्ग | अघोष | अघोष | घोष | घोष | घोष |
क | क | ख | ग | घ | ङ |
च | च | छ | ज | झ | ञ |
ट | ट | ठ | ड | ढ | ण |
त | त | थ | द | ध | न |
प | प | फ | ब | भ | म |
महाप्राण और अल्पप्राण:
A. महाप्राण:
जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से हवा ज्यादा निकलती है।
प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं।
उदाहरण:
- ख, घ; छ, झ; ठ, ढ; थ, ध; फ, भ और श, ष, स, ह
B. अल्पप्राण:
जिन वर्णों के उच्चारण में मुख से हवा कम निकलती है।
प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण व्यंजन हैं।
उदहारण:
- क, ग, ङ; ज, ञ; ट, ड, ण; त, द, न; प, ब, म
- अन्तःस्थ (य, र, ल, व ) भी अल्पप्राण ही हैं।
वर्ग | अल्पप्राण | महाप्राण | अल्पप्राण | महाप्राण | अल्पप्राण |
क | क | ख | ग | घ | ङ |
च | च | छ | ज | झ | ञ |
ट | ट | ठ | ड | ढ | ण |
त | त | थ | द | ध | न |
प | प | फ | ब | भ | म |
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