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Question 1
Question 2
Question 3
Question 4
Question 5
The Treaty of Seringapatam held between _________
Question 6
1. Igneous a. Sandstone
2. Sedimentary b. Slate
3. Metamorphic c. Basalt
Question 7
Question 8
Question 9
Question 10
हम आपदाओं के दौर में जी रहे हैं। यह सच है कि इन आपदाओं को रोक पाना न तो इंसान के बस में है, ना मशीनों के। आपदाएं मानव निर्मित हो या प्राकृतिक जिंदगी में गहरा दर्द छोड़ जाती हैं। ज्यादातर आपदाएं भौतिक नुकसान (अर्थव्यवस्था, भवन, संपत्ति, सामाजिक व सांस्कृतिक ) तो पहुंचती ही हैं, लाखों जाने ले लेती हैं । प्रचलित प्राकृतिक आपदाओं में तूफान, बाढ़, बादल का फटना, भूकंप, सुनामी, आग लगना आदि है जो मिनट में मनुष्य के जीवन और संपत्ति को तबाह कर देते हैं। यदि हमने इन आपदाओं का समुचित प्रबंध में नियंत्रण नहीं किया तो स्थिति भयावह होगी।
यदि हम प्राकृतिक आपदाओं की बात करें तो आपदाओं से ज्यादा इस के समुचित प्रबंधन पर चर्चा करनी जरूरी है। वर्ष 2001 में जब भीषण भूकंप आया था तब सरकार ने घोषणा की थी कि देश में आपदा प्रबंधन को विश्वस्तरीय बनाया जाएगा। आज 11 वर्षों बाद भी यदि यहां के आपदा प्रबंधन की तैयारियों को देखें तो कोई खास बदलाव नहीं दिखेगा। जिसे वर्ष 2005 में जब भारत के दक्षिण - पश्चिमी तटबंधीय इलाके में सुनामी लहरों ने कहर बरपाया था।
तब आपदा के बाद स्थिति को संभालने में हुए विलम्ब और लंबे समय तक आपदा - ग्रस्त लोगों की सार्वजनिक परेशानी से समझा जा सकता है कि हमारा आपदा प्रबंधन कितना मजबूत है। वर्ष 1991 में उत्तरकाशी में आए भूकम्प के बाद से ही देश में एक मुकम्मल आपदा प्रबंधन नीति की मांग होती रही है। इस दिशा में यदि सरकार और स्वयंसेवी संगठनों की ओर से संयुक्त प्रयास हो तो गति आ सकती है और जापान तथा अमेरिका की तर्ज पर भारत में भी एक मुकम्मल और प्रभावी आपदा प्रबंधन व्यवस्था बनाई जा सकती है।
बेहतर आपदा प्रबंधन के लिए हमें 2 शब्दों को बराबर ध्यान में रखना चाहिए, ये है जानकारी और बचाव। किसी भी आपदा या आकस्मिकता से बचाव में 'जानकारी' अहम भूमिका निभा सकती है। जानकारी यानी आपदाएं क्या है? कितने प्रकार की होती हैं? कैसे आती है? कब आती है? किस तरह का नुकसान करती है? एक प्रभावी आपदा प्रबंधन व्यवस्था के लिए जरूरी है कि वैश्विक एवं देश के स्तर पर आपदा सम्बन्धी स्थिति, सूचनाएं एवं भविष्यवाणियों की समीक्षा कर ली जाए।
इस कड़ी में सबसे बेहतर और जरूरी होगा यूएनडीपी (संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम) की वार्षिक रिपोर्ट वर्ष 2011 पर गौर करना। वर्ष 2011 के मानव विकास रिपोर्ट कथित तौर पर टिकाऊ एवं न्याय संगत विकास पर केंद्रित है। इस रिपोर्ट में यह बात पर ध्यान दिया गया है कि नित्य हो रही पर्यावरण के नुकसान से दुनिया के वंचित एवं निर्धन लोगों की परेशानियां और बढ़ी है।
Question 11
जिन्दगी को मुस्करा के काट दीजिए।
कष्ट लाख हों मगर, न व्यक्त कीजिए।।
तनाव के क्षणों को, लगाम दीजिए।
हँसी है दवा मधुर, का पान कीजिए।।
हँस-हँस तनाव को, उखाड़ फेंकिए।
लाख-लाख रोगों की, एक है दवा।।
मुस्करा के जीने का, और है मज़ा।
चेहरे पर गम, की न रेख लाइए।।
मुस्करा के बढ़ने, की बात कीजिए।
Question 12
Question 13
सम्प्रति शिक्षासंस्थासु प्रचलितस्य संस्कृतशिक्षणविधेः अयं परिणामः दृश्यते यत् बहूनि वर्षाणि संस्कृतम् अधीत्य अपि संस्कृतच्छात्राः संस्कृतभाषया एव स्वविचारान् प्रकटयितुम् असमर्थाः । लेखने अपि तेषां नैपुण्यं न दृश्यते । कारणं किम् ? स्पष्टमेव यत् प्रचलितविधिषु संस्कृतं संस्कृतेन न पाठ्यते । अपितु अन्यभाषया । 'संस्कृतपाठ्यपुस्तकगतपाठानाम् अनुवादः' एव संस्कृतशिक्षणस्य उद्देशः इति स्वीकृतः । छात्राः संस्कृतेन सम्भाषणस्य संस्कृतश्रवणस्य वा अवसरान् एव न प्राप्नुवन्ति । कुत्र तदा संस्कृतशिक्षणम् ? स्पष्टमेव यत् इदं संस्कृतशिक्षणम् न । महान् चिन्तायाः विषयः एषः । 'संस्कृतपाठनविधौ एषः दोषः दूरीकरणीयः एव' इति अस्माकम् एकं महत्त्वपूर्ण कर्तव्यम् ।
Question 14
पुरा कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत् | तस्साश्चैका दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत् | एकदा माता स्थाल्यां तण्डूलान्निक्षिप्य पुत्रीमादिदेश - सूर्यातपे तण्डूलान् खगेभ्यो रक्ष | किञ्चत्कालादनन्तरम् एको विचित्र: काक: समुड्डीय तामुपाजगाम |
नैतादृश: सवर्णपक्षो रजतचञ्चु: स्वर्णकाकस्तया पूर्वं दृष्ट: | तं तण्डूलान् स्वादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा | तं निवारयन्ती सा प्रार्थयत् - तण्डूलान् मा भक्षय | मदीया माका अतीव निर्धना वर्तते | स्वर्णपक्ष: काक: प्रोवाच, मा शुच: | सूर्योदयात्प्राग् ग्रामाद्वहि: पिप्पलवृक्षमनु त्वया गन्तव्यम् | अहं तुभ्यं तण्डूलमूल्यं दास्यामि | प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे |
सूर्योदयात्पूर्वमेव सा तत्रोपस्थिता | वृक्षस्योपरि विलोक्य सा चाश्चर्यचकिता सञ्जाता यत्तत्र स्वर्णमय: प्रसादो वर्तते | यदा काक: शयित्वा प्रबुद्धस्तदा तेन स्वर्णगवाक्षात्कथितं अहो बाले! त्वमागता, तिष्ठ, अहं त्वत्कृते सोपानमवतारयामि, तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयं रजतमयमुत ताम्रमयं वा? कन्या प्रावेचत् अहं निर्धनमातुर्दुहिताSस्मि | ताम्रसोपानेनैव आगमिष्यामि | परं स्वर्णसोपानेन सा स्वर्णभवनमाससाद |
चिरकालं भवने चित्रविचित्रवस्तूनि सज्जितानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता | श्रान्तां तां विलोकित काक: प्राह - पूर्वं लघुप्रातराश: क्रियताम् - वद त्वं स्वर्णस्थाल्यां भोजनं करिष्यसि किं वा रजतस्थाल्यामुत ताम्रस्थाल्याम्? बालिका व्याजहार - ताम्रस्थाल्यामेवाहं निर्धना भोजनं करिष्यामि | तदा सा कन्या चाश्चर्यचकिता सञ्जाता यदा स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं परिवेषितम् | नैतादृक् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती | काको ब्रूते - बालिके! अहमिच्छामि यत्त्वं सर्वदा चात्रैव तिष्ठ परं तव माता वर्तते चैकाकिनी | त्वं शीघ्रमेव स्वगृहं गच्छ | इत्युक्तवा काक: कक्षाभ्यन्तरात्तिस्रो मन्जूषा निस्सार्य तां प्रत्यवदत् - बालिके! यथेच्छं गृहाण मञ्जूषामेकाम् | लघुतमां मञ्जूषां प्रगृह्य बालिकया कथितमियदेव मदीयतण्डूलानां मूल्यम् |
गृहमागत्य तया मञ्जूषा समुद्घाटिता, तस्यां महर्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता तद्दनाद्धनिका च सञ्जाता
Question 15
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CTET & State TET Exams