Attempt now to get your rank among 2363 students!
Question 1
Question 2
Question 3
Question 4
Question 5
The above statement is a demerit of which method?
Question 6
Question 7
Question 8
Question 9
Question 10
Read the passage given below and answer the questions that follow by choosing the correct/ most appropriate options.
Studies serve for delight, for ornament, and for ability. Their chief use for delight is in privateness and retiring; for ornament, is in discourse; and for ability, is in judgment, and disposition of business. For expert men can execute, and perhaps judge of particulars, one by one; but the general counsels, and the plots and marshalling of affairs, come best, from those that are learned. To spend too much time in studies is sloth; to use them too much for ornament, is affectation; to make judgment wholly by their rules, is the humor of a scholar. They prefer nature and are perfected by experience; for natural abilities are like natural plants, that need pruning, by study; and studies themselves, do give forth directions too much at large, except they be bounded in by experience. Crafty men condemn studies, simple men admire them, and wise men use them, won by observation. Read not to contradict and consider. Some books are to be tasted, others to be swallowed, and some few to be chewed and digested; that is some books are to be read only in parts others to be read, but not curiously; and some few to be read wholly, and with diligence and attention. Some books also may be read by deputy, and extracts made of them by others; but that would be only in the less important arguments, and the meaner sort of books, else distilled books are like common distilled waters, flashy things.
Question 11
Remnants Left Behind
A leaf detaching
herself from a tree
strong winds howling
catching in a gale
just won’t let her be.
A ship sailing on an ocean
being bashed by heavy winds
forcing her to dry land
seeking asylum once again.
Footprints in the sand
leaving behind positive thoughts
until the tide rushes in
and everything is lost.
Remnants of two lovers
Once so young, and bold
Signatures etched on a heart
A love story never told.
Heather Burns
Question 12
Question 13
शिक्षा साध्य नहीं है, उन किसी लक्ष्य को पाने का साधन है। हम बच्चों को शिक्षा देने के लिए ही शिक्षा नहीं देते। हमारा प्रयोजन होता है, उन्हें जीवन के लिए योग्य और सक्षम बनाना । जैसे ही हम इस सत्य को अच्छी तरह ग्रहण कर लेंगे, वैसे ही यह बात हमारी समझ में आ जाएगी कि महत्वपूर्ण यह है कि हम ऐसी शिक्षा पद्धति को चनें, जो बच्चों को वास्तव में जिन्दगी के लिए तैयार करे। यह काफी नहीं है कि उसी पद्धति को चुन लें, जो हमें सबसे पहले प्राप्त हो या अपनी पुरानी पद्धति को ही, बिना यह जाँचे हुए कि वह सचमुच उपयुक्त है या नहीं, आगे चलाते चलें। बहुत से आधुनिक देशों में कुछ समय से यह सोचना एक फैशन बन गया है कि शिक्षा को सबके लिए चाहे वह गरीब हो या अमीर, बुद्धिमान हो या बुद्ध-मुफ्त कर देने में समाज की समस्याएँ हल की जा सकती हैं और एक परिपूर्ण त्रुटिहीन राष्ट्र का निर्माण हो सकता है; पर यह तो हमें आज भी दिखाई पड़ता है कि सबके लिए मुफ्त शिक्षा का प्रबंध कर देना ही काफी नहीं है। पता चलता है कि ऐसे देशों में विश्वविद्यालयों के उपाधि धारियों की संख्या उपलब्ध नौकरियों से कहीं अधिक है, जिसे वे नीचा समझते हैं। वास्तव में इन लोगों द्वारा हाथ से किए जाने वाले श्रम के कार्य गंदे और शर्मनाक समझे जाते हैं। जब हम कहते हैं कि हमें इस प्रकार शिक्षित किया जाना चाहिए कि हम जीवन के योग्य बन सकें तो आशय यह होता है कि एक तो हममें से प्रत्येक उन सभी कार्यों के योग्य हो सकें, जो उसकी बुद्धि और क्षमता के अनुरूप हों, दूसरे हम इस बात को मन से स्वीकार कर सके कि समाज के लिए सभी काम आवश्यक हैं और अपना काम करने में शर्माना या दूसरे काम को नीचा समझना बहुत खराब बात है।
Question 14
माइकलएंजेलो इटली के बहुत प्रसिद्ध शिल्पकार थे। वे बड़ी सुंदर मूर्तियाँ बनाते थे। लोगों ने पूछा कि आप इतनी सुंदर मूर्ति कैसे गढ़ लेते हैं। उन्होने कहा कि मैं मूर्ति कहाँ गढ़ता हूँ। वह मूर्ति तो पहले से ही पत्थर में थी, मैंने तो सिर्फ पत्थर का फालतू हिस्सा हटा दिया तो मूर्ति प्रकट हो गयी ! तो विधार्थी को अपना परिचय पाने में, स्व-भान होने में मदद करना ही शिक्षक का काम है। अब यह स्व-भान कैसे हो? कहते हैं, सेल्फ़ इज़ लाइक अ रे – जो साइंस में माना जाता है कि प्रकाश की किरण अदृश्य होती है, वह आपको दिखाई देती है, वैसा हमारा जो ‘स्व’ है वह शून्य में, अभाव में समझ में नहीं आता। वह तब प्रकट होता है, जब मैं, स्व-धर्म कर्तव्य-कर्म करता हूँ। कर्म करते-करते मुश्किल का जब मैं सामना करता हूँ तब मेरा रूप, मेरी शक्ति, मेरे स्व का मुझे पता चलता है। स्व-धर्म रूप कर्म करते हुए जो स्व मेरे सामने व्यक्त होता है, वही मेरी शिक्षा है। इसलिए शिक्षा दी नहीं जा सकती, बल्कि अंदर से अंकुरित होती है और उस प्रक्रिया में शिक्षक केवल बाहर से मदद करता है। जैसे पौधे के अंकुरित होने में, इसके प्रफुल्लित होने में सीधा हम कुछ नहीं कर सकते। परंतु बाहर से खाद-पानी देना, निराई करना, प्रकाश की व्यवस्था आदि कर सकते हैं।
Question 15
- 2363 attempts
- 2 upvotes
- 22 comments
Tags :
CTET & State TET Exams