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Question 1
शासन की पहुँच प्रवृत्ति और निवृत्ति की बाहरी व्यवस्था तक ही होती है। उनके मूल या मर्म तक उनकी गति नहीं होती। भीतरी या सच्ची प्रवृत्ति - निवृत्ति को जागरित रखने वाली शक्ति कविता है जो धर्म-क्षेत्र में शक्तिभावना को जगाती रहती है। भक्ति धर्म की रसात्मक अनुभूति है। अपने मंगल और लोक के मंगल का संगम उसीके भीतर दिखाई पड़ता है। इस संगम के लिए प्रकृति के क्षेत्र के बीच मनुष्य को अपने हृदय के प्रसार का अभ्यास करना चाहिए। जिस प्रकार ज्ञान नरसत्ता के प्रसार के लिए है उसी प्रकार हृदय भी। रागात्मिका वृत्ति के प्रसार के बिना विश्व के साथ जीवन का प्रकृत सामंजस्य घटित नहीं हो सकता। जब मनुष्य के सुख और आनन्द का मेल शेष प्रकृति के सुख-सौन्दर्य के साथ हो जायेगा, जब उसकी रक्षा का भाव तृणगुल्म, वृक्ष-लता, पशु-पक्षी, कीट-पतंग, सबकी रक्षा के भाव के साथ समन्वित हो जायेगा, तब उसके अवतार का उद्देश्य पूर्ण हो जायेगा और वह जगत् का सच्चा प्रतिनिधि हो जायेगा। काव्य योग की साधना इसी भूमि पर पहुँचाने के लिए हैं।
Question 2
स्थापना (Assertion) (A) : रीतिकाल में जन-साधारण का जीवन सामन्ती विलासपूर्ण आकांक्षाओं और भोगपूर्ण शृंगार से ओतप्रोत था।
तर्क (Reason) (R) : इसीलिए नैतिकता की दृष्टि से जन-साधारण का आचरण और चरित्र दरबारी संस्कृति से अलग नहीं हो पाया था।
कोड :
Question 3
कोड :
Question 4
तर्क (Reason)-R: क्योंकि इस युग में मुक्ति का प्रश्न नैतिक आदर्शपरक चरित्र निष्ठा से संबद्ध हो गया।
Question 5
गगन था कुछ लोहित हो चला
तरु शिखा पर थी अब राजती
कमलिनी-कुल-वल्लभ की प्रभा” - किसकी पंक्तियाँ हैं
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UGC NET & SETHindi