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हिंदी गद्यांश पर क्विज: 02.06.2018
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Question 1
निर्देश: नीचे दिए गघांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
उम्र में पाच साल का और पढ़ाई में दो कक्षाओं का अंतर बताता है कि-
Question 2
निर्देश: नीचे दिए गघांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
कॉपी पर लिखे शब्दों व चित्रों से किस मन: स्थिति का पता चलता है?
Question 3
निर्देश: नीचे दिए गघांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
"तालीम” शब्द है।
Question 4
निर्देश: नीचे दिए गघांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
"छोटा मुँह बड़ी बात” मुहावरे का अर्थ है।
Question 5
निर्देश: नीचे दिए गघांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
"सामंजस्य” शब्द का समानार्थी है।
Question 6
निर्देश: नीचे दिए गघांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
"मेरे भाई साहब मुझसे पांच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे।" इस वाक्य का प्रकार है।
Question 7
निर्देश: नीचे दिए गघांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
बड़ा भाई किस अधिकार से लेखक पर निगरानी रखता है?
Question 8
निर्देश: नीचे दिए गघांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्न का सही/सबसे उपयुक्त उत्तर वाले विकल्प को चुनिए।
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
मेरे बड़े भाई साहब मुझसे पाँच साल बड़े थे, लेकिन केवल तीन दरजे आगे। उन्होंने भी उसी उम्र में पढना शुरू किया था जब मैंने शुरू किया, लेकिन तालीम जैसे महत्व के मामले में वह जल्दबाजी से काम लेना पसंद न करते थे; इस भवन की बुनियाद खुब मजबूत डालना चाहते थे, जिस पर आलीशान महल बन सके। एक साल का काम दो साल में करते थे कभी-कभी तीन साल भी लग जाते थे। बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।
मैं छोटा था, वे बड़े थे। मेरी उम्र नौ साल की थी, वे चौदह साल के थे। उन्हें मेरी निगरानी का पूरा जन्मसिद्ध अधिकार था मेरी शालीनता इसी बात में थी कि उनके हुक्म को कानून समझूँ। वह स्वभाव के बड़े अध्ययनशील थे। हरदम किताब खोले बैठे रहते और शायद दिमाग को आराम देने के लिए कभी कॉपी पर, कभी किताब के हाशियों पर, चिड़ियों, कुत्तों, बिल्लियों की तस्वीरें बनाया करते थे। कभी-कभी एक ही नाम या शब्द या वाक्य दस-बीस बार लिख डालते। कभी एक शेर को बार-बार सुंदर अक्षरों में नकल करते। कभी ऐसी शब्द-रचना करते जिसमें न कोई अर्थ होता, न कोई सामंजस्य। जैसे एक बार उनकी कॉपी पर मैंने इबारत देखी – स्पेशल, अमीना, भाइयो-भाइयो, भाई-भाई, श्रीयुत् राधेश्याम – इनके बाद आदमी का चेहरा बना हुआ था। मैंने बहुत चेष्टा की कि इस पहेली का कोई हल निकालूँ, लेकिन असफल रहा और उनसे पूछने का साहस न हुआ। वे नवीं कक्षा में थे, मैं पाँचवी में उनकी रचनाओं को समझना मेरे लिए छोटा मुँह और बड़ी बात थी।
- मुंशी प्रेमचन्द
"बुनियाद ही पुख्ता न हो तो मकान कैसे पायदार बने।" छोटे भाई के उक्त कथन में निहित है।
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