गद्यांश पर हिंदी भाषा का क्विज :27.10.2020
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Question 1
हमारा जीवन जिन मानवीय सिद्धांतों, अनुभवों और सांस्कृतिक संस्कारों के संबल से समस्त सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण बना है, परोपकार की भावना उन्ही में एक है। मानव को दूसरे मानव के प्रति वैसा ही संवेदनात्मक उत्तरदायित्व निभाना चाहिए, जैसे वह स्वयं के प्रति निभाता है। जीवन को केवल परोपकार, पर सेवा और नि:स्वार्थ प्रेम के लिए ही वास्तविक समझना चाहिए क्योंकि नश्वर शरीर जब नष्ट हो जाएगा तो उसके बाद हमारा कुछ भी इस दुनिया के जीवों की स्मृति में नहीं रहेगा। हम जग जीवों की स्मृति में सदा-सदा के लिए तभी बने रह सकते हैं, जब हम अपने नश्वर शरीर को वैचारिक, बौद्धिक और आत्मिक चेतना से पूर्ण कार नि:स्वार्थ भाव से स्वयं को जीव सेवा में समर्पित करेंगे।
हमें स्थिरता से और शांतिपूर्वक यह विचार करते रहना चाहिए कि हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य और एकमात्र लक्ष्य हमारे द्वारा किया जाने वाला त्याग है। त्याग योग्य व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए गहन ताप की आवश्यकता है। त्याग का भाव किसी मनुष्य में साधारण होते हुए नहीं जन्म लेता। इसके लिए मनुष्य को जीवन-जगत और इसके जीवों के संबंध में असाधारण वैचारिक रचनात्मकता अपनाकर निरंतर योग, ध्यान, तप व साधना करनी होगी। उसे इस स्थिति से विचरते हुए विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभवों से लैस होना होगा। आवश्यकता होने पर उसे जीवों की वास्तविक सेवा करनी होगी। जब ऐसी विशेष मानवीय परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी, तब ही मानव में त्याग भाव आकार ग्रहण करेगा।
त्याग के योग्य व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।
Question 2
हमारा जीवन जिन मानवीय सिद्धांतों, अनुभवों और सांस्कृतिक संस्कारों के संबल से समस्त सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण बना है, परोपकार की भावना उन्ही में एक है। मानव को दूसरे मानव के प्रति वैसा ही संवेदनात्मक उत्तरदायित्व निभाना चाहिए, जैसे वह स्वयं के प्रति निभाता है। जीवन को केवल परोपकार, पर सेवा और नि:स्वार्थ प्रेम के लिए ही वास्तविक समझना चाहिए क्योंकि नश्वर शरीर जब नष्ट हो जाएगा तो उसके बाद हमारा कुछ भी इस दुनिया के जीवों की स्मृति में नहीं रहेगा। हम जग जीवों की स्मृति में सदा-सदा के लिए तभी बने रह सकते हैं, जब हम अपने नश्वर शरीर को वैचारिक, बौद्धिक और आत्मिक चेतना से पूर्ण कार नि:स्वार्थ भाव से स्वयं को जीव सेवा में समर्पित करेंगे।
हमें स्थिरता से और शांतिपूर्वक यह विचार करते रहना चाहिए कि हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य और एकमात्र लक्ष्य हमारे द्वारा किया जाने वाला त्याग है। त्याग योग्य व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए गहन ताप की आवश्यकता है। त्याग का भाव किसी मनुष्य में साधारण होते हुए नहीं जन्म लेता। इसके लिए मनुष्य को जीवन-जगत और इसके जीवों के संबंध में असाधारण वैचारिक रचनात्मकता अपनाकर निरंतर योग, ध्यान, तप व साधना करनी होगी। उसे इस स्थिति से विचरते हुए विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभवों से लैस होना होगा। आवश्यकता होने पर उसे जीवों की वास्तविक सेवा करनी होगी। जब ऐसी विशेष मानवीय परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी, तब ही मानव में त्याग भाव आकार ग्रहण करेगा।
Question 3
हमारा जीवन जिन मानवीय सिद्धांतों, अनुभवों और सांस्कृतिक संस्कारों के संबल से समस्त सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण बना है, परोपकार की भावना उन्ही में एक है। मानव को दूसरे मानव के प्रति वैसा ही संवेदनात्मक उत्तरदायित्व निभाना चाहिए, जैसे वह स्वयं के प्रति निभाता है। जीवन को केवल परोपकार, पर सेवा और नि:स्वार्थ प्रेम के लिए ही वास्तविक समझना चाहिए क्योंकि नश्वर शरीर जब नष्ट हो जाएगा तो उसके बाद हमारा कुछ भी इस दुनिया के जीवों की स्मृति में नहीं रहेगा। हम जग जीवों की स्मृति में सदा-सदा के लिए तभी बने रह सकते हैं, जब हम अपने नश्वर शरीर को वैचारिक, बौद्धिक और आत्मिक चेतना से पूर्ण कार नि:स्वार्थ भाव से स्वयं को जीव सेवा में समर्पित करेंगे।
हमें स्थिरता से और शांतिपूर्वक यह विचार करते रहना चाहिए कि हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य और एकमात्र लक्ष्य हमारे द्वारा किया जाने वाला त्याग है। त्याग योग्य व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए गहन ताप की आवश्यकता है। त्याग का भाव किसी मनुष्य में साधारण होते हुए नहीं जन्म लेता। इसके लिए मनुष्य को जीवन-जगत और इसके जीवों के संबंध में असाधारण वैचारिक रचनात्मकता अपनाकर निरंतर योग, ध्यान, तप व साधना करनी होगी। उसे इस स्थिति से विचरते हुए विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभवों से लैस होना होगा। आवश्यकता होने पर उसे जीवों की वास्तविक सेवा करनी होगी। जब ऐसी विशेष मानवीय परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी, तब ही मानव में त्याग भाव आकार ग्रहण करेगा।
Question 4
हमारा जीवन जिन मानवीय सिद्धांतों, अनुभवों और सांस्कृतिक संस्कारों के संबल से समस्त सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण बना है, परोपकार की भावना उन्ही में एक है। मानव को दूसरे मानव के प्रति वैसा ही संवेदनात्मक उत्तरदायित्व निभाना चाहिए, जैसे वह स्वयं के प्रति निभाता है। जीवन को केवल परोपकार, पर सेवा और नि:स्वार्थ प्रेम के लिए ही वास्तविक समझना चाहिए क्योंकि नश्वर शरीर जब नष्ट हो जाएगा तो उसके बाद हमारा कुछ भी इस दुनिया के जीवों की स्मृति में नहीं रहेगा। हम जग जीवों की स्मृति में सदा-सदा के लिए तभी बने रह सकते हैं, जब हम अपने नश्वर शरीर को वैचारिक, बौद्धिक और आत्मिक चेतना से पूर्ण कार नि:स्वार्थ भाव से स्वयं को जीव सेवा में समर्पित करेंगे।
हमें स्थिरता से और शांतिपूर्वक यह विचार करते रहना चाहिए कि हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य और एकमात्र लक्ष्य हमारे द्वारा किया जाने वाला त्याग है। त्याग योग्य व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए गहन ताप की आवश्यकता है। त्याग का भाव किसी मनुष्य में साधारण होते हुए नहीं जन्म लेता। इसके लिए मनुष्य को जीवन-जगत और इसके जीवों के संबंध में असाधारण वैचारिक रचनात्मकता अपनाकर निरंतर योग, ध्यान, तप व साधना करनी होगी। उसे इस स्थिति से विचरते हुए विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभवों से लैस होना होगा। आवश्यकता होने पर उसे जीवों की वास्तविक सेवा करनी होगी। जब ऐसी विशेष मानवीय परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी, तब ही मानव में त्याग भाव आकार ग्रहण करेगा।
Question 5
हमारा जीवन जिन मानवीय सिद्धांतों, अनुभवों और सांस्कृतिक संस्कारों के संबल से समस्त सृष्टि के लिए महत्वपूर्ण बना है, परोपकार की भावना उन्ही में एक है। मानव को दूसरे मानव के प्रति वैसा ही संवेदनात्मक उत्तरदायित्व निभाना चाहिए, जैसे वह स्वयं के प्रति निभाता है। जीवन को केवल परोपकार, पर सेवा और नि:स्वार्थ प्रेम के लिए ही वास्तविक समझना चाहिए क्योंकि नश्वर शरीर जब नष्ट हो जाएगा तो उसके बाद हमारा कुछ भी इस दुनिया के जीवों की स्मृति में नहीं रहेगा। हम जग जीवों की स्मृति में सदा-सदा के लिए तभी बने रह सकते हैं, जब हम अपने नश्वर शरीर को वैचारिक, बौद्धिक और आत्मिक चेतना से पूर्ण कार नि:स्वार्थ भाव से स्वयं को जीव सेवा में समर्पित करेंगे।
हमें स्थिरता से और शांतिपूर्वक यह विचार करते रहना चाहिए कि हमारे जीवन का सर्वश्रेष्ठ उद्देश्य और एकमात्र लक्ष्य हमारे द्वारा किया जाने वाला त्याग है। त्याग योग्य व्यक्तित्व प्राप्त करने के लिए गहन ताप की आवश्यकता है। त्याग का भाव किसी मनुष्य में साधारण होते हुए नहीं जन्म लेता। इसके लिए मनुष्य को जीवन-जगत और इसके जीवों के संबंध में असाधारण वैचारिक रचनात्मकता अपनाकर निरंतर योग, ध्यान, तप व साधना करनी होगी। उसे इस स्थिति से विचरते हुए विशिष्ट आध्यात्मिक अनुभवों से लैस होना होगा। आवश्यकता होने पर उसे जीवों की वास्तविक सेवा करनी होगी। जब ऐसी विशेष मानवीय परिस्थितियाँ उत्पन्न होंगी, तब ही मानव में त्याग भाव आकार ग्रहण करेगा।
Question 6
14 फ़रवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना में 'ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर' का जन्म हुआ। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा एवं माता की ओर से चंगेज़ ख़ाँ (मंगोल नेता) का चौदहवाँ वंशज था। उसका परिवार तुर्की जाति के 'चग़ताई वंश' के अन्तर्गत आता था। बाबर अपने पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा' की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में शासक बना। उसने अपना राज्याभिषेक अपनी दादी ‘ऐसान दौलत बेगम’ के सहयोग से करवाया। बाबर ने अपने फ़रग़ना के शासन काल में 1501 ई. में समरकन्द पर अधिकार किया, जो मात्र आठ महीने तक ही उसके क़ब्ज़े में रहा। 1504 ई. में क़ाबुल विजय के उपरांत बाबर ने अपने पूर्वजों द्वारा धारण की गई उपाधि ‘मिर्ज़ा’ का त्याग कर नई उपाधि ‘पादशाह’ धारण की। मुग़ल राजवंश, जिसे भारत में बाबर ने आरम्भ किया था, जिसने 1526 ई. में लोदी वंश के अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपथ के प्रथम युद्ध में पराजित किया। इस विजय से बाबर का दिल्ली और आगरा पर अधिकार हो गया। 1527 ई. में बाबर ने मेवाड़ के शासक राणा साँगा को खानवा के युद्ध में पराजित कर राजपूतों के प्रतिरोध का भी अन्त कर दिया। अन्तत: 1528 ई. में उसने घाघरा के युद्ध में अफ़ग़ानों को भी पराजित कर अपना शासन बंगाल और बिहार तक विस्तृत कर लिया। इन विजयों ने बाबर को उत्तरी भारत का सम्राट बना दिया। उसके द्वारा प्रचलित मुग़ल राजवंश ने भारत में 1526 ई. से 1858 ई. तक राज्य किया।
क़ाबुल विजय के उपरांत बाबर ने किसकी उपाधि धारण की थी ?
Question 7
14 फ़रवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना में 'ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर' का जन्म हुआ। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा एवं माता की ओर से चंगेज़ ख़ाँ (मंगोल नेता) का चौदहवाँ वंशज था। उसका परिवार तुर्की जाति के 'चग़ताई वंश' के अन्तर्गत आता था। बाबर अपने पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा' की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में शासक बना। उसने अपना राज्याभिषेक अपनी दादी ‘ऐसान दौलत बेगम’ के सहयोग से करवाया। बाबर ने अपने फ़रग़ना के शासन काल में 1501 ई. में समरकन्द पर अधिकार किया, जो मात्र आठ महीने तक ही उसके क़ब्ज़े में रहा। 1504 ई. में क़ाबुल विजय के उपरांत बाबर ने अपने पूर्वजों द्वारा धारण की गई उपाधि ‘मिर्ज़ा’ का त्याग कर नई उपाधि ‘पादशाह’ धारण की। मुग़ल राजवंश, जिसे भारत में बाबर ने आरम्भ किया था, जिसने 1526 ई. में लोदी वंश के अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपथ के प्रथम युद्ध में पराजित किया। इस विजय से बाबर का दिल्ली और आगरा पर अधिकार हो गया। 1527 ई. में बाबर ने मेवाड़ के शासक राणा साँगा को खानवा के युद्ध में पराजित कर राजपूतों के प्रतिरोध का भी अन्त कर दिया। अन्तत: 1528 ई. में उसने घाघरा के युद्ध में अफ़ग़ानों को भी पराजित कर अपना शासन बंगाल और बिहार तक विस्तृत कर लिया। इन विजयों ने बाबर को उत्तरी भारत का सम्राट बना दिया। उसके द्वारा प्रचलित मुग़ल राजवंश ने भारत में 1526 ई. से 1858 ई. तक राज्य किया।
Question 8
14 फ़रवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना में 'ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर' का जन्म हुआ। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा एवं माता की ओर से चंगेज़ ख़ाँ (मंगोल नेता) का चौदहवाँ वंशज था। उसका परिवार तुर्की जाति के 'चग़ताई वंश' के अन्तर्गत आता था। बाबर अपने पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा' की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में शासक बना। उसने अपना राज्याभिषेक अपनी दादी ‘ऐसान दौलत बेगम’ के सहयोग से करवाया। बाबर ने अपने फ़रग़ना के शासन काल में 1501 ई. में समरकन्द पर अधिकार किया, जो मात्र आठ महीने तक ही उसके क़ब्ज़े में रहा। 1504 ई. में क़ाबुल विजय के उपरांत बाबर ने अपने पूर्वजों द्वारा धारण की गई उपाधि ‘मिर्ज़ा’ का त्याग कर नई उपाधि ‘पादशाह’ धारण की। मुग़ल राजवंश, जिसे भारत में बाबर ने आरम्भ किया था, जिसने 1526 ई. में लोदी वंश के अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपथ के प्रथम युद्ध में पराजित किया। इस विजय से बाबर का दिल्ली और आगरा पर अधिकार हो गया। 1527 ई. में बाबर ने मेवाड़ के शासक राणा साँगा को खानवा के युद्ध में पराजित कर राजपूतों के प्रतिरोध का भी अन्त कर दिया। अन्तत: 1528 ई. में उसने घाघरा के युद्ध में अफ़ग़ानों को भी पराजित कर अपना शासन बंगाल और बिहार तक विस्तृत कर लिया। इन विजयों ने बाबर को उत्तरी भारत का सम्राट बना दिया। उसके द्वारा प्रचलित मुग़ल राजवंश ने भारत में 1526 ई. से 1858 ई. तक राज्य किया।
Question 9
14 फ़रवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना में 'ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर' का जन्म हुआ। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा एवं माता की ओर से चंगेज़ ख़ाँ (मंगोल नेता) का चौदहवाँ वंशज था। उसका परिवार तुर्की जाति के 'चग़ताई वंश' के अन्तर्गत आता था। बाबर अपने पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा' की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में शासक बना। उसने अपना राज्याभिषेक अपनी दादी ‘ऐसान दौलत बेगम’ के सहयोग से करवाया। बाबर ने अपने फ़रग़ना के शासन काल में 1501 ई. में समरकन्द पर अधिकार किया, जो मात्र आठ महीने तक ही उसके क़ब्ज़े में रहा। 1504 ई. में क़ाबुल विजय के उपरांत बाबर ने अपने पूर्वजों द्वारा धारण की गई उपाधि ‘मिर्ज़ा’ का त्याग कर नई उपाधि ‘पादशाह’ धारण की। मुग़ल राजवंश, जिसे भारत में बाबर ने आरम्भ किया था, जिसने 1526 ई. में लोदी वंश के अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपथ के प्रथम युद्ध में पराजित किया। इस विजय से बाबर का दिल्ली और आगरा पर अधिकार हो गया। 1527 ई. में बाबर ने मेवाड़ के शासक राणा साँगा को खानवा के युद्ध में पराजित कर राजपूतों के प्रतिरोध का भी अन्त कर दिया। अन्तत: 1528 ई. में उसने घाघरा के युद्ध में अफ़ग़ानों को भी पराजित कर अपना शासन बंगाल और बिहार तक विस्तृत कर लिया। इन विजयों ने बाबर को उत्तरी भारत का सम्राट बना दिया। उसके द्वारा प्रचलित मुग़ल राजवंश ने भारत में 1526 ई. से 1858 ई. तक राज्य किया।
Question 10
14 फ़रवरी, 1483 ई. को फ़रग़ना में 'ज़हीरुद्दीन मुहम्मद बाबर' का जन्म हुआ। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा एवं माता की ओर से चंगेज़ ख़ाँ (मंगोल नेता) का चौदहवाँ वंशज था। उसका परिवार तुर्की जाति के 'चग़ताई वंश' के अन्तर्गत आता था। बाबर अपने पिता 'उमर शेख़ मिर्ज़ा' की मृत्यु के बाद 11 वर्ष की आयु में शासक बना। उसने अपना राज्याभिषेक अपनी दादी ‘ऐसान दौलत बेगम’ के सहयोग से करवाया। बाबर ने अपने फ़रग़ना के शासन काल में 1501 ई. में समरकन्द पर अधिकार किया, जो मात्र आठ महीने तक ही उसके क़ब्ज़े में रहा। 1504 ई. में क़ाबुल विजय के उपरांत बाबर ने अपने पूर्वजों द्वारा धारण की गई उपाधि ‘मिर्ज़ा’ का त्याग कर नई उपाधि ‘पादशाह’ धारण की। मुग़ल राजवंश, जिसे भारत में बाबर ने आरम्भ किया था, जिसने 1526 ई. में लोदी वंश के अन्तिम सुल्तान इब्राहीम लोदी को पानीपथ के प्रथम युद्ध में पराजित किया। इस विजय से बाबर का दिल्ली और आगरा पर अधिकार हो गया। 1527 ई. में बाबर ने मेवाड़ के शासक राणा साँगा को खानवा के युद्ध में पराजित कर राजपूतों के प्रतिरोध का भी अन्त कर दिया। अन्तत: 1528 ई. में उसने घाघरा के युद्ध में अफ़ग़ानों को भी पराजित कर अपना शासन बंगाल और बिहार तक विस्तृत कर लिया। इन विजयों ने बाबर को उत्तरी भारत का सम्राट बना दिया। उसके द्वारा प्रचलित मुग़ल राजवंश ने भारत में 1526 ई. से 1858 ई. तक राज्य किया।
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