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गद्यांश पर हिंदी भाषा का क्विज: 15.11.2020

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Question 1

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए ।

भगतसिंह की फांसी की सजा सुन कर, भारतवासी स्तम्भा थे। क्योकि प्रत्येक व्यक्ति भगतसिंह को अपने ही आत्मीय जान समझता था। कुछ वकीलों ने जब उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वे वायसराय को क्षमायाचना का पत्र भेजें, तो शायद सजा में कुछ छुट मिल जाए तो भगतसिंह ने हंसकर इस परामर्श को टाल दिया वे बोले –“मेरे देश पर अत्याचार करने वाली सरकार से मैं ‘क्षमायाचना कैसे कर सकता हूँ? मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने जा रहा हूँ। इस तरह अनेक विरोधों के बाद भी फाँसी का दिन टल नहीं सका। उनकी माता विधावती जी पुत्र से मिलने आई तो भगत सिंह ने बड़े गर्व से कहा –“बेबे आप मेरी लाश लेने मत आना, कहीं आपकी आँखों में आँसू आ गए तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की माँ रो रही है।” 24 मार्च सन 1931 को फाँसी का दिन था, पर अंग्रेज सरकार जानती थी कि भगतसिंह के भक्त दिन चढ़ते ही जेल के दरवाजे पर आ जुटेंगे, अत: सभी नियमों को तोड़ कर 23 मार्च की रात को ही उन तीनों को फाँसी दे दी गई। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि फाँसी का फंदा चूमने के पहले भगत सिंह का वजन बढ़ गया था । रातों-रात रावी तट पर इन अमर शहीदों की लाशों को जला दिया गया। अगली सुबह जब परिवारजन व अन्य व्यक्ति वहाँ पहुँचे, तो केवल भस्म ही शेष थी।
किसकी फाँसी की सजा सुनकर भारतवासी स्तम्भ थे ?

Question 2

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए ।

भगतसिंह की फांसी की सजा सुन कर, भारतवासी स्तम्भा थे। क्योकि प्रत्येक व्यक्ति भगतसिंह को अपने ही आत्मीय जान समझता था। कुछ वकीलों ने जब उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वे वायसराय को क्षमायाचना का पत्र भेजें, तो शायद सजा में कुछ छुट मिल जाए तो भगतसिंह ने हंसकर इस परामर्श को टाल दिया वे बोले –“मेरे देश पर अत्याचार करने वाली सरकार से मैं ‘क्षमायाचना कैसे कर सकता हूँ? मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने जा रहा हूँ। इस तरह अनेक विरोधों के बाद भी फाँसी का दिन टल नहीं सका। उनकी माता विधावती जी पुत्र से मिलने आई तो भगत सिंह ने बड़े गर्व से कहा –“बेबे आप मेरी लाश लेने मत आना, कहीं आपकी आँखों में आँसू आ गए तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की माँ रो रही है।” 24 मार्च सन 1931 को फाँसी का दिन था, पर अंग्रेज सरकार जानती थी कि भगतसिंह के भक्त दिन चढ़ते ही जेल के दरवाजे पर आ जुटेंगे, अत: सभी नियमों को तोड़ कर 23 मार्च की रात को ही उन तीनों को फाँसी दे दी गई। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि फाँसी का फंदा चूमने के पहले भगत सिंह का वजन बढ़ गया था । रातों-रात रावी तट पर इन अमर शहीदों की लाशों को जला दिया गया। अगली सुबह जब परिवारजन व अन्य व्यक्ति वहाँ पहुँचे, तो केवल भस्म ही शेष थी।
"वकील" शब्द में कौन सी संज्ञा है?

Question 3

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए ।

भगतसिंह की फांसी की सजा सुन कर, भारतवासी स्तम्भा थे। क्योकि प्रत्येक व्यक्ति भगतसिंह को अपने ही आत्मीय जान समझता था। कुछ वकीलों ने जब उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वे वायसराय को क्षमायाचना का पत्र भेजें, तो शायद सजा में कुछ छुट मिल जाए तो भगतसिंह ने हंसकर इस परामर्श को टाल दिया वे बोले –“मेरे देश पर अत्याचार करने वाली सरकार से मैं ‘क्षमायाचना कैसे कर सकता हूँ? मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने जा रहा हूँ। इस तरह अनेक विरोधों के बाद भी फाँसी का दिन टल नहीं सका। उनकी माता विधावती जी पुत्र से मिलने आई तो भगत सिंह ने बड़े गर्व से कहा –“बेबे आप मेरी लाश लेने मत आना, कहीं आपकी आँखों में आँसू आ गए तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की माँ रो रही है।” 24 मार्च सन 1931 को फाँसी का दिन था, पर अंग्रेज सरकार जानती थी कि भगतसिंह के भक्त दिन चढ़ते ही जेल के दरवाजे पर आ जुटेंगे, अत: सभी नियमों को तोड़ कर 23 मार्च की रात को ही उन तीनों को फाँसी दे दी गई। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि फाँसी का फंदा चूमने के पहले भगत सिंह का वजन बढ़ गया था । रातों-रात रावी तट पर इन अमर शहीदों की लाशों को जला दिया गया। अगली सुबह जब परिवारजन व अन्य व्यक्ति वहाँ पहुँचे, तो केवल भस्म ही शेष थी।
भगत सिंह को वायसराय के पास पत्र भेजने को किसने कहा था ?

Question 4

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए ।

भगतसिंह की फांसी की सजा सुन कर, भारतवासी स्तम्भा थे। क्योकि प्रत्येक व्यक्ति भगतसिंह को अपने ही आत्मीय जान समझता था। कुछ वकीलों ने जब उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वे वायसराय को क्षमायाचना का पत्र भेजें, तो शायद सजा में कुछ छुट मिल जाए तो भगतसिंह ने हंसकर इस परामर्श को टाल दिया वे बोले –“मेरे देश पर अत्याचार करने वाली सरकार से मैं ‘क्षमायाचना कैसे कर सकता हूँ? मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने जा रहा हूँ। इस तरह अनेक विरोधों के बाद भी फाँसी का दिन टल नहीं सका। उनकी माता विधावती जी पुत्र से मिलने आई तो भगत सिंह ने बड़े गर्व से कहा –“बेबे आप मेरी लाश लेने मत आना, कहीं आपकी आँखों में आँसू आ गए तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की माँ रो रही है।” 24 मार्च सन 1931 को फाँसी का दिन था, पर अंग्रेज सरकार जानती थी कि भगतसिंह के भक्त दिन चढ़ते ही जेल के दरवाजे पर आ जुटेंगे, अत: सभी नियमों को तोड़ कर 23 मार्च की रात को ही उन तीनों को फाँसी दे दी गई। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि फाँसी का फंदा चूमने के पहले भगत सिंह का वजन बढ़ गया था । रातों-रात रावी तट पर इन अमर शहीदों की लाशों को जला दिया गया। अगली सुबह जब परिवारजन व अन्य व्यक्ति वहाँ पहुँचे, तो केवल भस्म ही शेष थी।
"अत्याचार" शब्द में सन्धि है -

Question 5

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए ।

भगतसिंह की फांसी की सजा सुन कर, भारतवासी स्तम्भा थे। क्योकि प्रत्येक व्यक्ति भगतसिंह को अपने ही आत्मीय जान समझता था। कुछ वकीलों ने जब उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वे वायसराय को क्षमायाचना का पत्र भेजें, तो शायद सजा में कुछ छुट मिल जाए तो भगतसिंह ने हंसकर इस परामर्श को टाल दिया वे बोले –“मेरे देश पर अत्याचार करने वाली सरकार से मैं ‘क्षमायाचना कैसे कर सकता हूँ? मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने जा रहा हूँ। इस तरह अनेक विरोधों के बाद भी फाँसी का दिन टल नहीं सका। उनकी माता विधावती जी पुत्र से मिलने आई तो भगत सिंह ने बड़े गर्व से कहा –“बेबे आप मेरी लाश लेने मत आना, कहीं आपकी आँखों में आँसू आ गए तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की माँ रो रही है।” 24 मार्च सन 1931 को फाँसी का दिन था, पर अंग्रेज सरकार जानती थी कि भगतसिंह के भक्त दिन चढ़ते ही जेल के दरवाजे पर आ जुटेंगे, अत: सभी नियमों को तोड़ कर 23 मार्च की रात को ही उन तीनों को फाँसी दे दी गई। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि फाँसी का फंदा चूमने के पहले भगत सिंह का वजन बढ़ गया था । रातों-रात रावी तट पर इन अमर शहीदों की लाशों को जला दिया गया। अगली सुबह जब परिवारजन व अन्य व्यक्ति वहाँ पहुँचे, तो केवल भस्म ही शेष थी।
भगत सिंह की माँ का क्या नाम था?

Question 6

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए ।

भगतसिंह की फांसी की सजा सुन कर, भारतवासी स्तम्भा थे। क्योकि प्रत्येक व्यक्ति भगतसिंह को अपने ही आत्मीय जान समझता था। कुछ वकीलों ने जब उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वे वायसराय को क्षमायाचना का पत्र भेजें, तो शायद सजा में कुछ छुट मिल जाए तो भगतसिंह ने हंसकर इस परामर्श को टाल दिया वे बोले –“मेरे देश पर अत्याचार करने वाली सरकार से मैं ‘क्षमायाचना कैसे कर सकता हूँ? मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने जा रहा हूँ। इस तरह अनेक विरोधों के बाद भी फाँसी का दिन टल नहीं सका। उनकी माता विधावती जी पुत्र से मिलने आई तो भगत सिंह ने बड़े गर्व से कहा –“बेबे आप मेरी लाश लेने मत आना, कहीं आपकी आँखों में आँसू आ गए तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की माँ रो रही है।” 24 मार्च सन 1931 को फाँसी का दिन था, पर अंग्रेज सरकार जानती थी कि भगतसिंह के भक्त दिन चढ़ते ही जेल के दरवाजे पर आ जुटेंगे, अत: सभी नियमों को तोड़ कर 23 मार्च की रात को ही उन तीनों को फाँसी दे दी गई। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि फाँसी का फंदा चूमने के पहले भगत सिंह का वजन बढ़ गया था । रातों-रात रावी तट पर इन अमर शहीदों की लाशों को जला दिया गया। अगली सुबह जब परिवारजन व अन्य व्यक्ति वहाँ पहुँचे, तो केवल भस्म ही शेष थी।
गद्यांश में प्रयुक्त "गर्व" शब्द का पर्यायवाची  है।

Question 7

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए ।

भगतसिंह की फांसी की सजा सुन कर, भारतवासी स्तम्भा थे। क्योकि प्रत्येक व्यक्ति भगतसिंह को अपने ही आत्मीय जान समझता था। कुछ वकीलों ने जब उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वे वायसराय को क्षमायाचना का पत्र भेजें, तो शायद सजा में कुछ छुट मिल जाए तो भगतसिंह ने हंसकर इस परामर्श को टाल दिया वे बोले –“मेरे देश पर अत्याचार करने वाली सरकार से मैं ‘क्षमायाचना कैसे कर सकता हूँ? मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने जा रहा हूँ। इस तरह अनेक विरोधों के बाद भी फाँसी का दिन टल नहीं सका। उनकी माता विधावती जी पुत्र से मिलने आई तो भगत सिंह ने बड़े गर्व से कहा –“बेबे आप मेरी लाश लेने मत आना, कहीं आपकी आँखों में आँसू आ गए तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की माँ रो रही है।” 24 मार्च सन 1931 को फाँसी का दिन था, पर अंग्रेज सरकार जानती थी कि भगतसिंह के भक्त दिन चढ़ते ही जेल के दरवाजे पर आ जुटेंगे, अत: सभी नियमों को तोड़ कर 23 मार्च की रात को ही उन तीनों को फाँसी दे दी गई। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि फाँसी का फंदा चूमने के पहले भगत सिंह का वजन बढ़ गया था । रातों-रात रावी तट पर इन अमर शहीदों की लाशों को जला दिया गया। अगली सुबह जब परिवारजन व अन्य व्यक्ति वहाँ पहुँचे, तो केवल भस्म ही शेष थी।
भगत सिंह को किस तारीख पर फाँसी दी गयी ?

Question 8

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए ।

भगतसिंह की फांसी की सजा सुन कर, भारतवासी स्तम्भा थे। क्योकि प्रत्येक व्यक्ति भगतसिंह को अपने ही आत्मीय जान समझता था। कुछ वकीलों ने जब उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वे वायसराय को क्षमायाचना का पत्र भेजें, तो शायद सजा में कुछ छुट मिल जाए तो भगतसिंह ने हंसकर इस परामर्श को टाल दिया वे बोले –“मेरे देश पर अत्याचार करने वाली सरकार से मैं ‘क्षमायाचना कैसे कर सकता हूँ? मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने जा रहा हूँ। इस तरह अनेक विरोधों के बाद भी फाँसी का दिन टल नहीं सका। उनकी माता विधावती जी पुत्र से मिलने आई तो भगत सिंह ने बड़े गर्व से कहा –“बेबे आप मेरी लाश लेने मत आना, कहीं आपकी आँखों में आँसू आ गए तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की माँ रो रही है।” 24 मार्च सन 1931 को फाँसी का दिन था, पर अंग्रेज सरकार जानती थी कि भगतसिंह के भक्त दिन चढ़ते ही जेल के दरवाजे पर आ जुटेंगे, अत: सभी नियमों को तोड़ कर 23 मार्च की रात को ही उन तीनों को फाँसी दे दी गई। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि फाँसी का फंदा चूमने के पहले भगत सिंह का वजन बढ़ गया था । रातों-रात रावी तट पर इन अमर शहीदों की लाशों को जला दिया गया। अगली सुबह जब परिवारजन व अन्य व्यक्ति वहाँ पहुँचे, तो केवल भस्म ही शेष थी।
फांसी का फंदा चूमने के पहले किसका वजन बढ़ गया था?

Question 9

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए ।

भगतसिंह की फांसी की सजा सुन कर, भारतवासी स्तम्भा थे। क्योकि प्रत्येक व्यक्ति भगतसिंह को अपने ही आत्मीय जान समझता था। कुछ वकीलों ने जब उन्हें यह परामर्श दिया कि यदि वे वायसराय को क्षमायाचना का पत्र भेजें, तो शायद सजा में कुछ छुट मिल जाए तो भगतसिंह ने हंसकर इस परामर्श को टाल दिया वे बोले –“मेरे देश पर अत्याचार करने वाली सरकार से मैं ‘क्षमायाचना कैसे कर सकता हूँ? मुझे गर्व है कि मैं अपने देश के लिए फांसी पर चढ़ने जा रहा हूँ। इस तरह अनेक विरोधों के बाद भी फाँसी का दिन टल नहीं सका। उनकी माता विधावती जी पुत्र से मिलने आई तो भगत सिंह ने बड़े गर्व से कहा –“बेबे आप मेरी लाश लेने मत आना, कहीं आपकी आँखों में आँसू आ गए तो लोग कहेंगे कि भगतसिंह की माँ रो रही है।” 24 मार्च सन 1931 को फाँसी का दिन था, पर अंग्रेज सरकार जानती थी कि भगतसिंह के भक्त दिन चढ़ते ही जेल के दरवाजे पर आ जुटेंगे, अत: सभी नियमों को तोड़ कर 23 मार्च की रात को ही उन तीनों को फाँसी दे दी गई। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि फाँसी का फंदा चूमने के पहले भगत सिंह का वजन बढ़ गया था । रातों-रात रावी तट पर इन अमर शहीदों की लाशों को जला दिया गया। अगली सुबह जब परिवारजन व अन्य व्यक्ति वहाँ पहुँचे, तो केवल भस्म ही शेष थी।
भगत सिंह का दाह संस्कार किस नदी के तट पर हुआ?
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