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गद्यांश और पद्यांश पर हिंदी भषा का क्विज:10.11.2020

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Question 1

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
जिस ओर झुके हम मस्ती में, झुक जाए उधर अंबर-भूतल,
आजाद वतन के बाशिंदे, हर गीत हमारा है बादल
अपनी-अपनी भाषा अपनी संस्कृति के अभिमानी हम,
विविध प्रांत हों लेकिन दुनियावालो ! हिन्दुस्तानी हम
रहन-सहन में खान-पान में भिन्न भले ही हों कितने,
इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुल कर कुरबानी हम |
सदियों से गुजरे लाखों तूफान हमारे आगे से
संघर्षों से टकराते हम हरदम लगते जागे से
केरल से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना
पर हर राज्य जुड़ा है, अपना कोमल मन के धागे से|
‘आजाद वतन के बाशिंदे’ – कथन का अर्थ है:

Question 2

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
जिस ओर झुके हम मस्ती में, झुक जाए उधर अंबर-भूतल,
आजाद वतन के बाशिंदे, हर गीत हमारा है बादल
अपनी-अपनी भाषा अपनी संस्कृति के अभिमानी हम,
विविध प्रांत हों लेकिन दुनियावालो ! हिन्दुस्तानी हम
रहन-सहन में खान-पान में भिन्न भले ही हों कितने,
इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुल कर कुरबानी हम |
सदियों से गुजरे लाखों तूफान हमारे आगे से
संघर्षों से टकराते हम हरदम लगते जागे से
केरल से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना
पर हर राज्य जुड़ा है, अपना कोमल मन के धागे से|
अंबर-भूतल’ का समास विग्रह होगा:

Question 3

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
जिस ओर झुके हम मस्ती में, झुक जाए उधर अंबर-भूतल,
आजाद वतन के बाशिंदे, हर गीत हमारा है बादल
अपनी-अपनी भाषा अपनी संस्कृति के अभिमानी हम,
विविध प्रांत हों लेकिन दुनियावालो ! हिन्दुस्तानी हम
रहन-सहन में खान-पान में भिन्न भले ही हों कितने,
इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुल कर कुरबानी हम |
सदियों से गुजरे लाखों तूफान हमारे आगे से
संघर्षों से टकराते हम हरदम लगते जागे से
केरल से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना
पर हर राज्य जुड़ा है, अपना कोमल मन के धागे से|
रहन-सहन में खान-पान में भिन्न भले ही हों कितने” – पंक्ति में अलंकार है?

Question 4

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
जिस ओर झुके हम मस्ती में, झुक जाए उधर अंबर-भूतल,
आजाद वतन के बाशिंदे, हर गीत हमारा है बादल
अपनी-अपनी भाषा अपनी संस्कृति के अभिमानी हम,
विविध प्रांत हों लेकिन दुनियावालो ! हिन्दुस्तानी हम
रहन-सहन में खान-पान में भिन्न भले ही हों कितने,
इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुल कर कुरबानी हम |
सदियों से गुजरे लाखों तूफान हमारे आगे से
संघर्षों से टकराते हम हरदम लगते जागे से
केरल से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना
पर हर राज्य जुड़ा है, अपना कोमल मन के धागे से|
कवि के अनुसार भारतीयों को गर्व है:

Question 5

निर्देश: निम्नलिखित काव्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के सबसे उचित उत्तर वाले विकल्प चुनिए:
जिस ओर झुके हम मस्ती में, झुक जाए उधर अंबर-भूतल,
आजाद वतन के बाशिंदे, हर गीत हमारा है बादल
अपनी-अपनी भाषा अपनी संस्कृति के अभिमानी हम,
विविध प्रांत हों लेकिन दुनियावालो ! हिन्दुस्तानी हम
रहन-सहन में खान-पान में भिन्न भले ही हों कितने,
इस मिट्टी को देते आए, मिल-जुल कर कुरबानी हम |
सदियों से गुजरे लाखों तूफान हमारे आगे से
संघर्षों से टकराते हम हरदम लगते जागे से
केरल से कश्मीर भले ही दूर दिखाई दे कितना
पर हर राज्य जुड़ा है, अपना कोमल मन के धागे से|
भारत के दूर-दूर स्थित राज्य भी परस्पर जुड़े हैं:

Question 6

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए।
कार्तिकी पूर्णिमा इस देश की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है। शरतकाल का पूर्ण चन्द्रमा इस दिन अपने पुरे वैभव पर होता है। आकाश निर्मल, दिशाएँ प्रसन्न, वायुमण्डल शान्त, पृथ्वी हरी-भरी, जलप्रवाह मृदु-मंथर हो जाता है। कुछ आश्चर्य नहीं कि इस दिन मनुष्य का सामूहिक चित्त उदेलित हो उठे। इसी दिन महान गुरु नानकदेव के आविर्भाव का उत्सव मनाया जाता है। आकाश में जिस प्रकार षोडशकला से पूर्ण चन्द्रमा अपनी कोमल स्निग्ध किरणों से प्रकाशित होता ह। उसी प्रकार मानव चित्त में भी किसी उज्जवल प्रसन्न ज्योतिपुंज का आविर्भाव होना स्वाभाविक है। गुरु नानकदेव ऐसे ही षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे। लोकमानस में अर्से से कार्तिकी पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव का सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। गुरु किसी एक ही दिन को पार्थिव शरीर में आविर्भूत हुए होंगे, पर भक्तों के चित्त में वे प्रतिक्षण प्रकट हो सकते हैं। पार्थिव रूप को महत्व दिया जाता है, परन्तु प्रतिक्षण आविर्भूत होने को आध्यात्मिक द्रष्टि से अधिक महत्व मिलना चाहिए। इतिहास के पण्डित गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के विषय में वाद-विवाद करते रहें, इस देश का सामूहिक मानव चित्त उतना महत्त्व नहीं देता।
गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जाये, वही क्षण उत्सव का है, वही क्षण उल्लसित कर देने के लिए पर्याप्त है। ‘नवो नवो भवति जायमान:’ – गुरु तुम प्रतिक्षण चित्तभूमि में आविर्भूत होकर नित्य नवीन हो रहे हो। हजारों वर्ष से शरतकाल की यह सर्वाधिक प्रसन्न तिथि प्रभामण्डित पूरनचंद के साथ उतनी ही मीठी ज्योति के धनी महामानव का स्मरण कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का सम्बन्ध जोड़ने में इस देश का समष्टि चित्त आहाद का अनुभव करता है। हम ‘रामचन्द्र’, ‘कृष्णचन्द्र’ आदि कहकर इसी आह्राद को प्रकट करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जनता के मानस के अनुकूल है। आज वह अपना आह्राद प्रकट करती है।
"पवित्र" शब्द में निम्न में से कौन-सी सन्धि है?

Question 7

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए।
कार्तिकी पूर्णिमा इस देश की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है। शरतकाल का पूर्ण चन्द्रमा इस दिन अपने पुरे वैभव पर होता है। आकाश निर्मल, दिशाएँ प्रसन्न, वायुमण्डल शान्त, पृथ्वी हरी-भरी, जलप्रवाह मृदु-मंथर हो जाता है। कुछ आश्चर्य नहीं कि इस दिन मनुष्य का सामूहिक चित्त उदेलित हो उठे। इसी दिन महान गुरु नानकदेव के आविर्भाव का उत्सव मनाया जाता है। आकाश में जिस प्रकार षोडशकला से पूर्ण चन्द्रमा अपनी कोमल स्निग्ध किरणों से प्रकाशित होता ह। उसी प्रकार मानव चित्त में भी किसी उज्जवल प्रसन्न ज्योतिपुंज का आविर्भाव होना स्वाभाविक है। गुरु नानकदेव ऐसे ही षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे। लोकमानस में अर्से से कार्तिकी पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव का सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। गुरु किसी एक ही दिन को पार्थिव शरीर में आविर्भूत हुए होंगे, पर भक्तों के चित्त में वे प्रतिक्षण प्रकट हो सकते हैं। पार्थिव रूप को महत्व दिया जाता है, परन्तु प्रतिक्षण आविर्भूत होने को आध्यात्मिक द्रष्टि से अधिक महत्व मिलना चाहिए। इतिहास के पण्डित गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के विषय में वाद-विवाद करते रहें, इस देश का सामूहिक मानव चित्त उतना महत्त्व नहीं देता।
गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जाये, वही क्षण उत्सव का है, वही क्षण उल्लसित कर देने के लिए पर्याप्त है। ‘नवो नवो भवति जायमान:’ – गुरु तुम प्रतिक्षण चित्तभूमि में आविर्भूत होकर नित्य नवीन हो रहे हो। हजारों वर्ष से शरतकाल की यह सर्वाधिक प्रसन्न तिथि प्रभामण्डित पूरनचंद के साथ उतनी ही मीठी ज्योति के धनी महामानव का स्मरण कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का सम्बन्ध जोड़ने में इस देश का समष्टि चित्त आहाद का अनुभव करता है। हम ‘रामचन्द्र’, ‘कृष्णचन्द्र’ आदि कहकर इसी आह्राद को प्रकट करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जनता के मानस के अनुकूल है। आज वह अपना आह्राद प्रकट करती है।
शरद काल का चंद्रमा किस दिन अपने पूरे वैभव में होता है?

Question 8

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए।
कार्तिकी पूर्णिमा इस देश की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है। शरतकाल का पूर्ण चन्द्रमा इस दिन अपने पुरे वैभव पर होता है। आकाश निर्मल, दिशाएँ प्रसन्न, वायुमण्डल शान्त, पृथ्वी हरी-भरी, जलप्रवाह मृदु-मंथर हो जाता है। कुछ आश्चर्य नहीं कि इस दिन मनुष्य का सामूहिक चित्त उदेलित हो उठे। इसी दिन महान गुरु नानकदेव के आविर्भाव का उत्सव मनाया जाता है। आकाश में जिस प्रकार षोडशकला से पूर्ण चन्द्रमा अपनी कोमल स्निग्ध किरणों से प्रकाशित होता ह। उसी प्रकार मानव चित्त में भी किसी उज्जवल प्रसन्न ज्योतिपुंज का आविर्भाव होना स्वाभाविक है। गुरु नानकदेव ऐसे ही षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे। लोकमानस में अर्से से कार्तिकी पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव का सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। गुरु किसी एक ही दिन को पार्थिव शरीर में आविर्भूत हुए होंगे, पर भक्तों के चित्त में वे प्रतिक्षण प्रकट हो सकते हैं। पार्थिव रूप को महत्व दिया जाता है, परन्तु प्रतिक्षण आविर्भूत होने को आध्यात्मिक द्रष्टि से अधिक महत्व मिलना चाहिए। इतिहास के पण्डित गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के विषय में वाद-विवाद करते रहें, इस देश का सामूहिक मानव चित्त उतना महत्त्व नहीं देता।
गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जाये, वही क्षण उत्सव का है, वही क्षण उल्लसित कर देने के लिए पर्याप्त है। ‘नवो नवो भवति जायमान:’ – गुरु तुम प्रतिक्षण चित्तभूमि में आविर्भूत होकर नित्य नवीन हो रहे हो। हजारों वर्ष से शरतकाल की यह सर्वाधिक प्रसन्न तिथि प्रभामण्डित पूरनचंद के साथ उतनी ही मीठी ज्योति के धनी महामानव का स्मरण कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का सम्बन्ध जोड़ने में इस देश का समष्टि चित्त आहाद का अनुभव करता है। हम ‘रामचन्द्र’, ‘कृष्णचन्द्र’ आदि कहकर इसी आह्राद को प्रकट करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जनता के मानस के अनुकूल है। आज वह अपना आह्राद प्रकट करती है।
कार्तिक पूर्णिमा को चन्द्रमा कितनी कला से अंलकृत होकर चमकता है?

Question 9

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए।
कार्तिकी पूर्णिमा इस देश की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है। शरतकाल का पूर्ण चन्द्रमा इस दिन अपने पुरे वैभव पर होता है। आकाश निर्मल, दिशाएँ प्रसन्न, वायुमण्डल शान्त, पृथ्वी हरी-भरी, जलप्रवाह मृदु-मंथर हो जाता है। कुछ आश्चर्य नहीं कि इस दिन मनुष्य का सामूहिक चित्त उदेलित हो उठे। इसी दिन महान गुरु नानकदेव के आविर्भाव का उत्सव मनाया जाता है। आकाश में जिस प्रकार षोडशकला से पूर्ण चन्द्रमा अपनी कोमल स्निग्ध किरणों से प्रकाशित होता ह। उसी प्रकार मानव चित्त में भी किसी उज्जवल प्रसन्न ज्योतिपुंज का आविर्भाव होना स्वाभाविक है। गुरु नानकदेव ऐसे ही षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे। लोकमानस में अर्से से कार्तिकी पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव का सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। गुरु किसी एक ही दिन को पार्थिव शरीर में आविर्भूत हुए होंगे, पर भक्तों के चित्त में वे प्रतिक्षण प्रकट हो सकते हैं। पार्थिव रूप को महत्व दिया जाता है, परन्तु प्रतिक्षण आविर्भूत होने को आध्यात्मिक द्रष्टि से अधिक महत्व मिलना चाहिए। इतिहास के पण्डित गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के विषय में वाद-विवाद करते रहें, इस देश का सामूहिक मानव चित्त उतना महत्त्व नहीं देता।
गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जाये, वही क्षण उत्सव का है, वही क्षण उल्लसित कर देने के लिए पर्याप्त है। ‘नवो नवो भवति जायमान:’ – गुरु तुम प्रतिक्षण चित्तभूमि में आविर्भूत होकर नित्य नवीन हो रहे हो। हजारों वर्ष से शरतकाल की यह सर्वाधिक प्रसन्न तिथि प्रभामण्डित पूरनचंद के साथ उतनी ही मीठी ज्योति के धनी महामानव का स्मरण कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का सम्बन्ध जोड़ने में इस देश का समष्टि चित्त आहाद का अनुभव करता है। हम ‘रामचन्द्र’, ‘कृष्णचन्द्र’ आदि कहकर इसी आह्राद को प्रकट करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जनता के मानस के अनुकूल है। आज वह अपना आह्राद प्रकट करती है।
प्रस्तुत गधांश में कार्तिक पूर्णिमा का सम्बन्ध किसके जन्मदिवस से है?

Question 10

निर्देश: गद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित में सबसे उचित विकल्प को चुनिए।
कार्तिकी पूर्णिमा इस देश की बहुत पवित्र तिथि है। इस दिन सारे भारतवर्ष में कोई-न-कोई उत्सव, मेला, स्नान या अनुष्ठान होता है। शरतकाल का पूर्ण चन्द्रमा इस दिन अपने पुरे वैभव पर होता है। आकाश निर्मल, दिशाएँ प्रसन्न, वायुमण्डल शान्त, पृथ्वी हरी-भरी, जलप्रवाह मृदु-मंथर हो जाता है। कुछ आश्चर्य नहीं कि इस दिन मनुष्य का सामूहिक चित्त उदेलित हो उठे। इसी दिन महान गुरु नानकदेव के आविर्भाव का उत्सव मनाया जाता है। आकाश में जिस प्रकार षोडशकला से पूर्ण चन्द्रमा अपनी कोमल स्निग्ध किरणों से प्रकाशित होता ह। उसी प्रकार मानव चित्त में भी किसी उज्जवल प्रसन्न ज्योतिपुंज का आविर्भाव होना स्वाभाविक है। गुरु नानकदेव ऐसे ही षोडश कला से पूर्ण स्निग्ध ज्योति महामानव थे। लोकमानस में अर्से से कार्तिकी पूर्णिमा के साथ गुरु के आविर्भाव का सम्बन्ध जोड़ दिया गया है। गुरु किसी एक ही दिन को पार्थिव शरीर में आविर्भूत हुए होंगे, पर भक्तों के चित्त में वे प्रतिक्षण प्रकट हो सकते हैं। पार्थिव रूप को महत्व दिया जाता है, परन्तु प्रतिक्षण आविर्भूत होने को आध्यात्मिक द्रष्टि से अधिक महत्व मिलना चाहिए। इतिहास के पण्डित गुरु के पार्थिव शरीर के आविर्भाव के विषय में वाद-विवाद करते रहें, इस देश का सामूहिक मानव चित्त उतना महत्त्व नहीं देता।
गुरु जिस किसी भी शुभ क्षण में चित्त में आविर्भूत हो जाये, वही क्षण उत्सव का है, वही क्षण उल्लसित कर देने के लिए पर्याप्त है। ‘नवो नवो भवति जायमान:’ – गुरु तुम प्रतिक्षण चित्तभूमि में आविर्भूत होकर नित्य नवीन हो रहे हो। हजारों वर्ष से शरतकाल की यह सर्वाधिक प्रसन्न तिथि प्रभामण्डित पूरनचंद के साथ उतनी ही मीठी ज्योति के धनी महामानव का स्मरण कराती रही है। इस चन्द्रमा के साथ महामानवों का सम्बन्ध जोड़ने में इस देश का समष्टि चित्त आहाद का अनुभव करता है। हम ‘रामचन्द्र’, ‘कृष्णचन्द्र’ आदि कहकर इसी आह्राद को प्रकट करते हैं। गुरु नानकदेव के साथ इस पूर्णचन्द्र का सम्बन्ध जोड़ना भारतीय जनता के मानस के अनुकूल है। आज वह अपना आह्राद प्रकट करती है।
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