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Question 1
Question 2
Question 3
Question 4
Question 5
Question 6
Question 7
Question 8
Question 9
i. At primary stage of learning science, the child should learn principles of science through familiar experiences.
ii. The objective of primary stage is to nurture the curiosity of the child about the world.
Which of the above statements is/are correct?
Question 10
Now the question arises, what is the secret of the longevity and imperishability of Indian culture? Why is it that such great empires and nations is Babylon, Assyria, Greece, Rome and Persia, could not last more than the footprints of a camel on the shifting sands of the desert, while India which faced the same ups and downs, the same mighty and cruel hand of time, is still alive and with the same halo of glory and splendor? The answer is given by Prof. J. B. Pratt of America. According to him Hindu religion is the only religion in the world which is 'self-perpetuating and self-renewing.' Unlike other religions 'not death, but development' has been the fate of Hinduism. Not only Hindu religion but the whole culture of the Hindus has been growing changing and developing in accordance with the needs of time and circumstance without losing its essential and imperishable spirit. The culture of the Vedic ages, of the ages of the Upanishads, the philosophical systems, the Mahabharata, the Smritis, the Puranas, the commentators, the medieval saints and of the age of the modern reformers is the same in Spirit and yet very different in form. Its basic principles are so broad based that they can be adapted to almost any environment of development.
Question 11
Question 12
i. With adequate exposure, children can learn new languages with ease.
ii. Teachers should focus more on grammar than content.
iii. Teachers should focus more on content than grammar.
iv. It is difficult for children to learn new languages even with proper exposure.
Which of the above statements are true?
Question 13
जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक हैं। नवम्बर-दिसम्बर मध्य तक ठण्ड का अहसास नहीं होना, फरवरी – मार्च तक सर्दी पड़ना, अगस्त- सितम्बर से वर्षा होना तथा अक्टूवर – नवम्वर माह तक गर्मी पड़ना, तापक्रम ज्यादा होना, ये सब कुछ मौसम में होने वाले बदलाव के कारण होता है। मौसम, किसी भी स्थान की औसत जलवायु होती है जिसे कुछ समयावधि के लिए वहां अनुभव किया जाता है। इस मौसम को तय करने वाले मानकों में वर्षा, सूर्य, प्रकाश, हवा, नमी व तापमान प्रमुख हैं। मौसम में बदलाव काफी जल्दी होता है लेकिन जलवायु में बदलाव आने में काफी समय लगता है। और इस समय पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन हो रहा है, कोई नहीं जानता की गर्मी की कितनी मात्रा सुरक्षित है। पर हमें यह जरूर पता है की जलवायु परिवर्तन लोगों एवं पारिस्थितिकी तंत्र को पहले से ही नुकसान पहुंचा रहा है। इसकी सच्चाई ग्लेशियरों के पिघलने, ध्रुवीय बर्फ में खंडित होने, परिहिमानी क्षेत्र के विगलन, मानसून के तरीकों में परिवर्तन, समुद्र के बढ़ते जलस्तर, बदलते पारिस्थितिक तंत्र एवं घातक गर्म तरंगों में देखी जा सकती हैं।
इस परिवर्तन के लिये एक प्रकार से प्राकृतिक गतिविधियां तथा मानवीय क्रिया- कलाप ही जिम्मेदार है। प्राकृतिक कारण जलवायु परिवर्तन के लिये जिम्मेदार हैं। इनमें से प्रमुख हैं - महाद्वीपों का खिसकना, ज्वालामुखी, समुद्री तरंगें और धरती का घुमाव। तथा मानवीय कारण, पृथ्वी द्वारा सूर्य से ऊर्जा ग्रहण की जाती है जिसके चलते धरती की सतह गर्म हो जाती है। जब ये ऊर्जा वातावरण से होकर गुजरती है, तो कुछ मात्रा में , लगभग 30 प्रतिशत ऊर्जा वातावरण में ही रह जाती है। इस ऊर्जा का कुछ भाग धरती की सतह तथा समुद्र के जरिये परावर्तित होकर पुन: वातावरण में चला जाता है। वातावरण की कुछ गैसों द्वारा पूरी पृथ्वी पर एक परत सी बना ली जाती है वे इस ऊर्जा का कुछ भाग भी सोख लेते है। इन गैसों में शामिल होती है कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड व जल कण, जो वातावरण के 1 प्रतिशत से भी कम भाग में होती है। इन गैसों को ग्रीन हाउस गैसे भी कहते हैं। औद्योगिक कारणों से निकालने वाली गैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन, ऑटोमोबाईल से निकलने वाले धुंए के कारण ओजोन परत के निर्माण में बाधा उत्पन्न करते है जिसके कारण ग्रीन हाउस गैसों में असंतुलन उत्पन्न हो रहा जो वातावरण में ताप मान वृद्धि का प्रमुख कारण है।
Question 14
जलवायु परिवर्तन विश्व की सबसे ज्वलंत पर्यावरणीय समस्याओं में से एक हैं। नवम्बर-दिसम्बर मध्य तक ठण्ड का अहसास नहीं होना, फरवरी – मार्च तक सर्दी पड़ना, अगस्त- सितम्बर से वर्षा होना तथा अक्टूवर – नवम्वर माह तक गर्मी पड़ना, तापक्रम ज्यादा होना, ये सब कुछ मौसम में होने वाले बदलाव के कारण होता है। मौसम, किसी भी स्थान की औसत जलवायु होती है जिसे कुछ समयावधि के लिए वहां अनुभव किया जाता है। इस मौसम को तय करने वाले मानकों में वर्षा, सूर्य, प्रकाश, हवा, नमी व तापमान प्रमुख हैं। मौसम में बदलाव काफी जल्दी होता है लेकिन जलवायु में बदलाव आने में काफी समय लगता है। और इस समय पृथ्वी के जलवायु में परिवर्तन हो रहा है, कोई नहीं जानता की गर्मी की कितनी मात्रा सुरक्षित है। पर हमें यह जरूर पता है की जलवायु परिवर्तन लोगों एवं पारिस्थितिकी तंत्र को पहले से ही नुकसान पहुंचा रहा है। इसकी सच्चाई ग्लेशियरों के पिघलने, ध्रुवीय बर्फ में खंडित होने, परिहिमानी क्षेत्र के विगलन, मानसून के तरीकों में परिवर्तन, समुद्र के बढ़ते जलस्तर, बदलते पारिस्थितिक तंत्र एवं घातक गर्म तरंगों में देखी जा सकती हैं।
इस परिवर्तन के लिये एक प्रकार से प्राकृतिक गतिविधियां तथा मानवीय क्रिया- कलाप ही जिम्मेदार है। प्राकृतिक कारण जलवायु परिवर्तन के लिये जिम्मेदार हैं। इनमें से प्रमुख हैं - महाद्वीपों का खिसकना, ज्वालामुखी, समुद्री तरंगें और धरती का घुमाव। तथा मानवीय कारण, पृथ्वी द्वारा सूर्य से ऊर्जा ग्रहण की जाती है जिसके चलते धरती की सतह गर्म हो जाती है। जब ये ऊर्जा वातावरण से होकर गुजरती है, तो कुछ मात्रा में , लगभग 30 प्रतिशत ऊर्जा वातावरण में ही रह जाती है। इस ऊर्जा का कुछ भाग धरती की सतह तथा समुद्र के जरिये परावर्तित होकर पुन: वातावरण में चला जाता है। वातावरण की कुछ गैसों द्वारा पूरी पृथ्वी पर एक परत सी बना ली जाती है वे इस ऊर्जा का कुछ भाग भी सोख लेते है। इन गैसों में शामिल होती है कार्बन डाइऑक्साइड, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड व जल कण, जो वातावरण के 1 प्रतिशत से भी कम भाग में होती है। इन गैसों को ग्रीन हाउस गैसे भी कहते हैं। औद्योगिक कारणों से निकालने वाली गैसे क्लोरोफ्लोरोकार्बन, ऑटोमोबाईल से निकलने वाले धुंए के कारण ओजोन परत के निर्माण में बाधा उत्पन्न करते है जिसके कारण ग्रीन हाउस गैसों में असंतुलन उत्पन्न हो रहा जो वातावरण में ताप मान वृद्धि का प्रमुख कारण है।
Question 15
हमारे व्यावहारिक अथवा वास्तविक जीवन में भी यही सिद्धांत काम करता है कि हम समाज अथवा लोगों को जो देते हैं वही हमारे पास लौटकर आता है हम लोगों से प्यार करते हैं तो लोग भी हमें प्यार करते हैं लेकिन यदि हम लोगों से घृणा करते हैं तो वे भी हमसे घृणा ही करेंगे इसमें संदेह नहीं। यदि हम सबके साथ सहयोग करते हैं अथवा ईमानदार बने रहते हैं तो दूसरे भी हमारे प्रति सहयोगात्मक और ईमानदार हो जाते हैं। इसे आकर्षण का नियम कहा गया है। हम जैसा स्वभाव विकसित कर लेते हैं वैसी ही चीजें हमारी और आकर्षित होती हैं। गंदगी मक्खी को आकर्षित करती है तो फूल तितली को आकर्षित करते हैं। यदि हम स्वयं को फूल जैसा सुंदर, सुवासित, मसृण व रंगीन अर्थात सुंदर गुणों से युक्त बना लेंगे तो स्वाभाविक है कि समाज के सुंदर गुणी व्यक्ति हमारी और आकर्षित होंगे ही।
यदि हम चाहते हैं कि हमारे संपर्क में केवल अच्छे लोग ही आएँ तो हमें स्वयं को उनके अनुरूप बनाना होगा – दुर्गुणों में नहीं, सद्गुणों में, अपने व्यवहार को व्यवस्थित व आदतों को अच्छा करना होगा। अपनी वाणी को कोमल व मधुर बनाना होगा। केवल मात्र बाहर से नहीं, मन कि गहराइयों में स्वयं को सुंदर बनाना होगा। यदि हम बाहरी रूप-स्वरूप से नहीं, वरन मन से सुंदर बन पाते हैं तो विचार और कर्म स्वयं सुंदर हो जाएँगे। जीवन रूपी सितार ठीक बजने लगेगा। जीवन के प्रति सत्यम् शिवम् और सुंदरम् का आकर्षण बढ़ने लगेगा।
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