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Question 1
Question 2
Question 3
i) Chemical fertilizer and pesticides used in Agriculture
ii) Illegal dumping
iii) Industrial waste
iv) Mining activities
Question 4
Now the question arises, what is the secret of the longevity and imperishability of Indian culture? Why is it that such great empires and nations is Babylon, Assyria, Greece, Rome and Persia, could not last more than the footprints of a camel on the shifting sands of the desert, while India which faced the same ups and downs, the same mighty and cruel hand of time, is still alive and with the same halo of glory and splendor? The answer is given by Prof. J. B. Pratt of America. According to him Hindu religion is the only religion in the world which is 'self-perpetuating and self-renewing.' Unlike other religions 'not death, but development' has been the fate of Hinduism. Not only Hindu religion but the whole culture of the Hindus has been growing changing and developing in accordance with the needs of time and circumstance without losing its essential and imperishable spirit. The culture of the Vedic ages, of the ages of the Upanishads, the philosophical systems, the Mahabharata, the Smritis, the Puranas, the commentators, the medieval saints and of the age of the modern reformers is the same in Spirit and yet very different in form. Its basic principles are so broad based that they can be adapted to almost any environment of development.
The author has compared India with all the following except _________.
Question 5
शिक्षा की बैंकीय अवधारणा (बैंकिग कॉनसेप्ट) में ज्ञान एक उपहार होता है, जो स्वयं को ज्ञानवान समझने वालों के द्वारा उनको दिया जाता है, जिन्हें वे नितान्त अज्ञानी मानते हैं। दूसरों को परम अज्ञानी बताना उत्पीड़न की विचारधारा की विशेषता है। वह शिक्षा और ज्ञान को जिज्ञासा की प्रकिया नहीं मानती शिक्षक अपने छात्रें के समझ स्वयं को एक आवश्यक विलोम के रूप में प्रस्तुत करता है, उन्हें परम अज्ञानी मानकर वह अपने अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करता है। छात्र, हेगेलीय द्वन्द्ववाद में वर्णित दासों की भाँति, अलगाव के शिकार होने के कारण अपने अज्ञान को शिक्षक के अस्तित्व का औचित्य सिद्ध करने वाला समझते हैं - लेकिन इस फर्क के साथ कि दास तो अपनी वास्तविकता को जान लेता है (कि मालिक का अस्तित्व उसके अस्तित्व पर निर्भर है) लेकिन ये छात्र अपनी इस वास्तविकता को कभी नहीं जान पाते कि वे भी शिक्षक को शिक्षित करते हैं।
शिक्षा की बैंकीय अवधारणा शिक्षा को किस रूप में प्रस्तुत करती है?
Question 6
A duty is an obligation. It is something we owe to others as social beings when we live together. We must let others live with us. My right of living implies my duty to my fellow beings to allow them the same conditions of life. In fact, rights and duties are correlated. What is a right in regard to one may be a duty in regard to others Rights and duties are two sides of the same coin. We should always observe from the standpoint of others. Moral duty is more effective than legal rights. A moral duty is that which is binding upon the people on moral grounds. It is my moral duty to help the poor because of being a member of the society.
I must try to create conditions that contribute to the welfare of humanity. Similarly, I owe a duty to my parents—to be obedient and respectful to them. This duty originates from the sense of responsibility which is directly related to our conscience. So, this is concerned with a moral duty which any person owes without a legal bondage.
A sense of duty is paramount for the proper development of civilization. Hypocrisy is quite reverse to the sense of duty. It involves wickedness, while duty involves sincerity and faithfulness.
According to the passage, rights and duties are _________________.
Question 7
आसमान में मुक्का मारना कोई बुद्धिमान का काम नहीं समझा जाता। बिना लक्ष्य के तर्क करना भी बुद्धिमानी नहीं है। हमें भली-भाँति समझ लेने की आवश्यकता है, कि हमारा लक्ष्य क्या है? हम जो कुछ प्रयत्न करने जा रहे हैं वह किसके लिए है? साहित्य हम किसके लिए रचते हैं, इतिहास और दर्शन क्यों लिखते और पढ़ते हैं? राजनीतिक आन्दोलन किस महान उद्देश्य की सिद्धि के लिए करते हैं? मनुष्य ही वह बड़ी चीज़ है जिसके लिए सब यह किया करते हैं। हमारे सब प्रयत्नों का एक लक्ष्य है, मनुष्य वर्तमान दुर्गति के पंक से उबर पाए और भविष्य में सुख और शांति से रह सके। वह शास्त्र, वह ग्रंथ, वह कला, वह नृत्य, वह राजनीति, वह समाज-सुधार जंजाल-मात्र है जिससे मनुष्य का भला न होता हो। मनुष्य आज हाहाकार के भीतर त्राहि-त्राहि पुकार रहा है। हमारे राजनीतिक और सामाजिक सुधार से अन्न-वस्त्र की समस्या सुलझ सकती है फिर भी मनुष्य सुखी नहीं बनेगा। उसे सिर्फ अन्न-वस्त्र से ही संतोष नहीं होगा। इसके बाद भी उसका मुनष्य बनना बाकी रह जाता है। साहित्य वही काम करता है। मनुष्य नामक प्राणी तो पशुओं में ही एक विकसित प्रजाति है और यदि मनुष्यता के गुण और मूल्य उसमें नहीं हैं तो वह मनुष्य नामक पशु ही है, मनुष्य नहीं। भोजन करना, सोना और वंश-वृद्धि जैसे काम प्रकृति के द्वारा तय हैं, सच्चा मानव बनने के लिए उसे जो दृष्टि चाहिए उसे पाने में साहित्य सहायक हो सकता है।
आसमान में मुक्का मारने से आशय है -
Question 8
अस्ति कर्मपुरनाम्नि नगरे प्रच्छन्नभाग्य-नामधेयः कश्चित् कुमारः। बाल्ये: वयसि विद्यापराङ्मुखः स केनचित् दुष्टबुद्धिनाम्ना चौरेण सह चौर्यकर्मणि निरतः सञ्जातः। एकदा स दुष्टबुद्धिना सार्धं कस्यचित् श्रेष्ठिनः गेहे धनहरणार्थं ग्राभान्तरं प्रस्थितः। अथ व्रजन्तौ तौ गर्तसङ्कुले मार्गे क्रीडतः कांश्चित् बालकान् प्रेक्ष्य अवदताम्---- ''भो भो बालकाः! कथमत्र नतोन्नते विषमे मार्गे क्रीडथ? यदि कश्चित् गर्ने पतेत् तर्हि स विकलाङ्गो भूत्वा चिरं क्लेशम् अनुभवेत्।" तच्छ्रुत्वा तेषु कश्चित् उद्दण्डः बालक: उवाच- अयि भो! यद्येवं तर्हि,कथं भवन्तौ सुपथं परित्यज्य अनेन कुपथेन गन्तुं प्रवृत्तौ?,-अपि इदं श्रेयस्करम्?"
अनेन वचसा प्रतिहतान्तःकरणः प्रच्छन्नभाग्यः अचिन्तयत्- किम् इदं वचनं' विशेषेण माम् एव 'लक्ष्यीकरोति? अहो! कुमार्गम् आश्रितस्य मम कीदृशी क्लेशपरम्परा। गुरूपदेशेन इव अनेन बालवचसा मम चक्षुषी समुन्मीलिते। अद्यप्रभृति पापपथं त्यजामि इति विचिन्त्यं मित्रं दुष्टबुद्धिम् अवदत्--- ''सखे! यदि मां मित्रस्थाने परिगणयसि, तर्हि साधुजनगर्हितम् इमं पन्थानं त्यजतु भवान्।''
...बाल्यकाले विद्यापराङ्मुखः कः अभवत् ? .
Question 9
गतिबोधक-छात्राणां (Kinesthetic learners) मूल्याङ्कनार्थं किम् अनुपयुक्तम् ?
Question 10
Question 11
A class V teacher provides her students with a Neem leaf and a Mango leaf and asks them to state in which way they are similar to and different from each other. Which one of the following process skills will be used in answering this question?
Question 12
Question 13
न देवो विद्यते काष्ठे, न पाषाणे न मृण्मये ।
भावे हि विद्यते देवः, तस्माद्भावो हि कारणम् ।।
दातृत्वं प्रियवक्तृत्वं, धीरत्वमुचितज्ञता।
अभ्यासेन न लभ्यन्ते, चत्वारः सहजा गुणाः ।।
अर्थम् महान्तमासाद्य, विद्यामैश्वर्यमेव वा।
विचरत्यसमुन्नद्धो, यः स पंडित उच्यते ।।
जनिता चोपनेता च, यस्तु विद्याम् प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता,पञ्चैते पितरः स्मृताः ।।
सुपुत्रो यः पितुर्मातुः, भूरिभक्तिसुधारसैः।
निर्वापयति सन्तापं, शेषास्तु कृमिकीटकाः ।।
दुर्जनः प्रियवादी च नैतद्विश्वासकारणम् ।
मधु तिष्ठति जिह्वाग्रे हृदये तु हलाहलम् ।।
भक्तिसुधारसैः इति पदे कविना क: अलङ्कारः प्रयुक्तः ?
Question 14
आसमान में मुक्का मारना कोई बुद्धिमान का काम नहीं समझा जाता। बिना लक्ष्य के तर्क करना भी बुद्धिमानी नहीं है। हमें भली-भाँति समझ लेने की आवश्यकता है, कि हमारा लक्ष्य क्या है? हम जो कुछ प्रयत्न करने जा रहे हैं वह किसके लिए है? साहित्य हम किसके लिए रचते हैं, इतिहास और दर्शन क्यों लिखते और पढ़ते हैं? राजनीतिक आन्दोलन किस महान उद्देश्य की सिद्धि के लिए करते हैं? मनुष्य ही वह बड़ी चीज़ है जिसके लिए सब यह किया करते हैं। हमारे सब प्रयत्नों का एक लक्ष्य है, मनुष्य वर्तमान दुर्गति के पंक से उबर पाए और भविष्य में सुख और शांति से रह सके। वह शास्त्र, वह ग्रंथ, वह कला, वह नृत्य, वह राजनीति, वह समाज-सुधार जंजाल-मात्र है जिससे मनुष्य का भला न होता हो। मनुष्य आज हाहाकार के भीतर त्राहि-त्राहि पुकार रहा है। हमारे राजनीतिक और सामाजिक सुधार से अन्न-वस्त्र की समस्या सुलझ सकती है फिर भी मनुष्य सुखी नहीं बनेगा। उसे सिर्फ अन्न-वस्त्र से ही संतोष नहीं होगा। इसके बाद भी उसका मुनष्य बनना बाकी रह जाता है। साहित्य वही काम करता है। मनुष्य नामक प्राणी तो पशुओं में ही एक विकसित प्रजाति है और यदि मनुष्यता के गुण और मूल्य उसमें नहीं हैं तो वह मनुष्य नामक पशु ही है, मनुष्य नहीं। भोजन करना, सोना और वंश-वृद्धि जैसे काम प्रकृति के द्वारा तय हैं, सच्चा मानव बनने के लिए उसे जो दृष्टि चाहिए उसे पाने में साहित्य सहायक हो सकता है।
Question 15
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