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वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 (Wildlife Protection Act in Hindi) – गठन, संवैधानिक प्रावधान,

By BYJU'S Exam Prep

Updated on: September 25th, 2023

भारत सरकार ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 (Wildlife Protection Act 1972) को देश के वन्यजीवों को सुरक्षा प्रदान करने एवं अवैध शिकार, तस्करी और अवैध व्यापार को नियंत्रित करने के उद्देश्य से लागू किया था। जनवरी 2003 में अधिनियम में संशोधन किया गया था और सजा और अधिनियम के तहत अपराधों के लिए जुर्माना और अधिक कठोर बना दिया है। जनवरी 2003 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया था और इसके तहत अपराधों के लिए जुर्माने और सजा को अधिक कठोर बना दिया गया है। संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) के अनुसार वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।

इस लेख में आप वन्यजीव संरक्षण अधिनियम क्या है, ये कब लागु हुआ था, इसके संवैधानिक प्रावधान पढ़ सकेंगे | साथ ही में ये भी जानें की वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 बोर्ड की प्रक्रिया और कर्तव्य क्या हैं. पढ़ें Wildlife Protection Act, 1972 in Hindi और  साथ में पीडीऍफ़ भी डाउनलोड करें|

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 | Wildlife Protection Act 1972 in Hindi

भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 भारत सरकार ने सन् 1972 ई॰ में इस उद्देश्य से पारित किया था कि वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उसके हाड़-माँस और खाल के व्यापार पर रोक लगाई जा सके।

इसे सन् 2003 ई॰ में संशोधित किया गया है और इसका नाम भारतीय वन्य जीव संरक्षण (संशोधित) अधिनियम २००२ रखा गया जिसके तहत इसमें दण्ड तथा जुर्माना और कठोर कर दिया गया है। 1972 से पहले, भारत के पास केवल पाँच नामित राष्ट्रीय पार्क थे।वर्तमान में भारत में 101 राष्ट्रीय उद्यान हैं।अन्य सुधारों के अलावा, अधिनियम संरक्षित पौधे और पशु प्रजातियों के अनुसूचियों की स्थापना तथा इन प्रजातियों की कटाई व शिकार को मोटे तौर पर गैरकानूनी करता है।
यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है|
वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 (Wildlife Protection Act 1972 in Hindi) में 66 धाराएं हैं और इसमें 6 अनुसूचियां हैं जो उनमें से प्रत्येक के तहत रखी गई प्रजातियों के लिए विभिन्न प्रकार की सुरक्षा प्रदान करती हैं। जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता है।

  • अनुसूची-1 तथा अनुसूची-2 के द्वितीय भाग वन्यजीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते है| इनके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड निर्धारित है।
  • अनुसूची-3 और अनुसूची-4 भी संरक्षण प्रदान कर रहे हैं लेकिन इनमे दंड बहुत कम हैं।
  • अनुसूची-5 मे वह जानवरों शामिल है जिनका शिकार हो सकता है।
  • छठी अनुसूची में शामिल पौधों की खेती और रोपण पर रोक है।
  • सबसे ज्यादा जोर भारतीय स्टार कचवे पर दिया गया है इसे रखने पर 10000 रु जुर्माना ओर 10 साल की निश्चित गैर जमानती कारावास है
  • मध्य प्रदेश राज्य इसे लागू करने बाला पहला राज्य था जिसने इसे 1973—74 मे लागू किया।

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वन्यजीव संरक्षण अधिनियमसे सम्बंधित संवैधानिक प्रावधान | Constitutional Provisions Related to Wildlife Protection Act

42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से वन और जंगली जानवरों एवं पक्षियों के संरक्षण को राज्य सूची से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।

वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 PDF

  • संविधान के अनुच्छेद 51 A (g) में कहा गया है कि वनों एवं वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
  • राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत अनुच्छेद 48A के मुताबिक, राज्य पर्यावरण संरक्षण व उसको बढ़ावा देने का काम करेगा और देश भर में जंगलों एवं वन्यजीवों की सुरक्षा की दिशा में कार्य करेगा।

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम अपराध और दण्ड विधान | Wildlife Protection Act Penalties

उन अपराधों के लिए जिसमें वन्य जीव (या उनके शरीर के अंश)— जो कि इस अधिनियम की सूची 1 या सूची 2 के भाग 2 के अंतर्गत आते हैं उनके अवैध शिकार, या अभ्यारण या राष्ट्रीय उद्यान की सीमा को बदलने के लिए दण्ड तथा जुर्माने की राशि बढ़ा दी गई है। अब कम से कम कारावास 3 साल का है जो कि 7 साल की अवधि के लिए बढ़ाया भी जा सकता है और कम से कम जुर्माना रु 10,000- है। दूसरी बार इस प्रकार का अपराध करने पर यह दण्ड कम से कम 3 साल की कारावास का है जो कि 7 साल की अवधि के लिए बढ़ाया भी जा सकता है और कम से कम जुर्माना रु 25,000/- है।

वन्य जीव निदेशक और मुख्य वन्य जीव संरक्षक, Wildlife Director and Chief Wildlife Warden

वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के लिए सरकार द्वारा एक वन्यजीव संरक्षण निदेशक और मुख्य वन्यजीव वार्डन नियुक्त किया जाता है।

वन्य जीव संरक्षण निदेशक

  • धारा 3 के तहत केंद्र सरकार को वन्य जीव संरक्षण निदेशक नियुक्त करने का अधिकार है।
  • निदेशक को केंद्र सरकार द्वारा सामान्य या विशिष्ट निर्देशों के अधीन किया जाएगा।
  • केंद्र सरकार किसी अन्य अधिकारी को भी नियुक्त कर सकती है, जिसे वह आवश्यक समझे।

मुख्य वन्य जीव संरक्षक

  • राज्य सरकार को क्रमशः धारा 4 के तहत मुख्य वन्य जीव संरक्षक, वन्य जीव संरक्षक और मानद (ऑनरेरी) वन्य जीव संरक्षक की नियुक्ति करना आवश्यक है।
  • मुख्य वन्य जीव संरक्षक राज्य सरकार के सामान्य या विशेष निर्देशों के अधीन होंगे।
  • वन्य जीव संरक्षण निदेशक और मुख्य वन्य जीव संरक्षक को प्रत्यायोजित (डेलीगेट) करने की शक्ति
  • संबंधित व्यक्ति, जैसे कि निदेशक और मुख्य वन्य जीव संरक्षक, को संबंधित सरकारों को इसकी सूचना देनी चाहिए।
  • उन्हें धारा 5 के तहत अपनी सरकारों के पूर्व अनुमोदन (अप्रूवल) और लिखित आदेश द्वारा अपनी शक्तियों को प्रत्यायोजित करने का अधिकार है।

राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड का गठन

वन्य जीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2002 ने राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड (‘बोर्ड’) के गठन के लिए धारा 5A को जोड़ा है।

बोर्ड की संरचना

  • प्रधानमंत्री राष्ट्रीय वन्य जीव बोर्ड के अध्यक्ष हैं।
  • अधिनियम में संशोधन के तीन महीने के भीतर बोर्ड का गठन किया जाना है।
  • बोर्ड का कार्य, जैसा कि धारा 5C के तहत निर्दिष्ट है, वन्य जीवन और वन के संरक्षण और विकास को बढ़ावा देना है।
  • यह नीतियां भी बना सकता है और वन्य जीव संरक्षण को बढ़ावा देने और वन्य जीवों और उसके उत्पादों के अवैध व्यापार को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के तरीकों और साधनों पर केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह दे सकता है।

बोर्ड के कर्तव्य

  • बोर्ड को देश में वन्य जीव संरक्षण की स्थिति पर दो साल में कम से कम एक बार स्थिति की रिपोर्ट प्रकाशित करनी होगी।
  • बोर्ड को उन राष्ट्रीय उद्यानों, अभयारण्यों और अन्य संरक्षित क्षेत्रों, जहां कुछ गतिविधियां प्रतिबंधित हैं, की स्थापना और प्रबंधन पर सुझाव प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • बोर्ड अधिनियम के तहत संरक्षित क्षेत्रों को क्रमशः धारा 18 और धारा 35 के तहत अभयारण्य और राष्ट्रीय उद्यान घोषित कर सकता है।
  • बोर्ड अपने कर्तव्यों को धारा 5B (1) के तहत स्थायी समिति को प्रत्यायोजित कर सकता है।

राज्य वन्य जीव बोर्ड का गठन

यह अधिनियम धारा 6 के तहत राज्य के मुख्यमंत्री के साथ केंद्र शासित प्रदेश (यूनियन टेरिटरी) में इसके अध्यक्ष और प्रशासक के रूप में, जैसा भी मामला हो, एक राज्य वन्य जीव बोर्ड की स्थापना करता है।
बोर्ड में अनुसूचित जनजातियों के कम से कम दो प्रतिनिधियों (रिप्रेजेंटेटिव) सहित प्रख्यात संरक्षणवादियों (कंजर्वेशनिस्ट), पारिस्थितिकीविदों (इकोलॉजिस्ट) और पर्यावरणविदों में से राज्य सरकार द्वारा नामित दस व्यक्ति शामिल होते हैं।
राष्ट्रीय बोर्ड को भी केंद्रीय स्तर पर दस व्यक्तियों को नामित करना होता है।

राज्य बोर्ड की प्रक्रिया और कर्तव्य

अधिनियम की धारा 7 के तहत, राज्य बोर्ड को एक वर्ष में कम से कम दो बार बैठक करवाना आवश्यक है ।
अधिनियम की धारा 8 के तहत वे राज्य सरकार को वन्य जीवों और निर्दिष्ट पौधों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए नीतियां बनाने की सलाह देने के लिए बाध्य हैं।
उन्हें संरक्षित क्षेत्रों के रूप में घोषित किए जाने वाले क्षेत्रों के चयन और प्रबंधन के लिए सलाह देना भी आवश्यक है।
इसके अलावा, उन्हें भारतीय संविधान की चौथी और पांचवीं अनुसूची के तहत संशोधन से संबंधित मामलों में सलाह देनी होती है, जिसमें आदिवासियों और अन्य वनवासियों की जरूरतों को पूरा करने के लिए किए जाने वाले उपाय भी शामिल होते हैं।

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