US-Iran tensions

By Hemant Kumar|Updated : February 25th, 2020

Context

  • Recently there was a significant increase in tensions between the U.S. and Iran after the U.S. military force assassinated General Qasem Soleimani.
  • General Qasem Soleimani was the head of Iran’s elite Quds force.
  • Quds force is a wing of the Islamic Revolutionary Guard Corps responsible mainly for its foreign operations.
  • Islamic Revolutionary guards corps is a branch of Iranian armed forces, independent of Iran’s regular army. It is also known as Pasdaran. This organization aims to preserve the Islamic Republic of Iran and the ideals of the 1979 revolution.
  • The U.S. alleged that General Soleimani was developing plans to attack American diplomats and service members in Iraq and throughout the region.
  • Iran also recently abandoned nuclear deal limits prescribed under Joint comprehensive plan of action(JCPOA)

संदर्भ

  • हाल ही में अमेरिकी सैन्य बल द्वारा जनरल कासिम सुलेमानी की हत्या के बाद अमेरिका और ईरान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है।
  • जनरल कासिम सुलेमानी के एलीट क़ुद्स फ़ोर्स के प्रमुख थे।
  • क़ुद्स बल इस्लामी रिवॉल्यूशनरी गार्ड सैन्य-दल की एक शाखा है जो मुख्य रूप से अपने विदेशी ऑपरेशन हेतु जिंमेदार है।
  • इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स सैन्य-दल ईरानी सशस्त्र बलों की एक शाखा है, जो ईरान की नियमित सेना से स्वतंत्र है। इसे पस्दारन के नाम से भी जाना जाता है। इस संगठन का उद्देश्य ईरान के इस्लामी गणराज्य और 1979 क्रांति के आदर्शों को संरक्षित करना है।
  • अमेरिका ने आरोप लगाया कि जनरल सुलेमानी इराक और पूरे क्षेत्र में अमेरिकी राजनयिकों और सेवा सदस्यों पर हमला करने की योजना बना रहे थे।
  • ईरान ने भी हाल ही में संयुक्त व्यापक कार्ययोजना के तहत निर्धारित परमाणु समझौते की सीमा को छोड़ दिया (JCPOA) है।

पृष्ठभूमि

  • ईरान में 1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से अमेरिका-ईरान के संबंध अस्थिर हैं।
  • अमेरिकी अधिकारियों और आधिकारिक रिपोर्टों में ईरान पर पश्चिम एशिया क्षेत्र में उग्रवादी सशस्त्र गुटों का समर्थन करने के आरोप लगाये गए है। यह अमेरिका के हितों और सहयोगियों के लिए खतरा है।
  • ईरान और अमेरिका के बीच ईरान द्वारा परमाणु घटनाक्रमों से संबंधित हमेशा तनाव बना रहता है।
  • 2015 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर ईरान और P5 + 1 समूह (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी) के बीच एक संयुक्त व्यापक कार्ययोजना (JCPOA) समझौता हुआ।
  • ईरान को उसके परमाणु हथियारो के उत्पादन से रोकना और ईरान को यूरेनियम को समृद्ध करने की अनुमति देने की राशि और सीमा को भी सीमित करना समझौते का उद्देश्य था।
  • बाद में 2018 में, अमेरिका समझौते से हट गया और ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिये।
  • 2019 में ईरानी सेनाओं ने इस क्षेत्र में अमेरिकी सैनिकों की बढ़ती मौजूदगी के जवाब में अमेरिकी सैन्य ड्रोन को मार गिराया।

दुनिया पर प्रभाव

  • तनाव के बढ़ने से छद्म युद्ध में वृद्धि होगी। यह पहले से ही अतिसंवेदनशील क्षेत्र को और अस्थिर कर सकता है।
  • इसके परिणामस्वरूप व्यापक आर्थिक और वित्तीय नुकसान होंगे, जो इस क्षेत्र के परिचालन तथा वित्तपोषण की स्थिति को काफी खराब कर सकते हैं।
  • ईरान ने वैश्विक तेल लदान हेतु एक प्रमुख चैनल होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की धमकी भी दी है। उदाहरण के लिए हाल ही में, ईरान ने फारस की खाड़ी (पर्शियन गल्फ) में विदेशी तेल टैंकरों को जब्त कर लिया। इसने आशंका जताई है कि कोई भी गलत आकलन और जैसे को तैसी प्रतिक्रिया देने के युद्ध में परिवर्तित हो सकती है।
  • इससे नियम आधारित विश्व व्यवस्था भंग होगी।

भारत पर प्रभाव

  • मई 2019 तक भारत ईरान से कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार था। आपूर्ति या मूल्य वृद्धि में किसी भी प्रकार का व्यवधान हमारे देश के विदेशी मुद्रा भंडार को कम कर सकता है।
  • अमेरिका ने भारत को ईरान से तेल खरीदने पर भी प्रतिबंधित कर दिया है।
  • पूरी तरह से युद्ध की स्थिति में खाड़े क्षेत्र में प्रवासी भारतीयों की सुरक्षा तथा संरक्षा खतरे में पड़ जाएगी।
  • पिछले साल भारत को मिले कुल विप्रेषित धन का 50 फीसद से ज्यादा खाड़ी क्षेत्र से था। इस क्षेत्र में किसी भी गड़बड़ी से इस तरह के भुगतान में कमी आएगी।
  • भारत का व्यापार होर्मुज जलडमरूमध्य पर अधिक निर्भर है और इसकी नाकेबंदी से व्यापार पर बुरा असर पड़ेगा।
  • भारत ने चाबबार बंदरगाह, तापी पाइपलाइन समेत ईरान में काफी विकास किया है। इसका असर भारत की परियोजनाओ पर भी पड़ेगा।
  • अमेरिका ने यह दोष लगाते हुए कि वह आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए पर्याप्त कोशिश नहीं कर रहा है, अपनी पश्चिमी एशिया रणनीति के अनुसरा पाकिस्तान को सैनिक प्रशिक्षण पुनः आरंभ करने का आदेश दिया है, जिसे अमेरिका ने 2018 में निलंबित कर दिया था। यह क्षेत्र की समग्र सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है क्योंकि कई आतंकवादी संगठन इस क्षेत्र में सक्रिय हो सकते हैं।

भविष्य की राह

भारत को क्या करना चाहिए

  • अब समय आ गया है कि भारत को दोनों देशों के साथ स्वायत्त तथा आवश्यकता आधारित दृष्टिकोण से तालमेल बिठाना चाहिए।
  • एक उभरती हुई शक्ति के रूप में भारत किसी भी देश के दबाव में नहीं आ सकता।
  • अल्पावधि में भारत की सुरक्षा तथा सामरिक चिंताओं के बारे में अमेरिका के साथ उच्चस्तरीय वार्ता शुरू की गई है।
  • लंबी अवधि में, भारत को ईरान के परमाणु समझौते के अन्य सदस्यों के साथ परमाणु आतंकवाद को समाप्त करने हेतु शांतिपूर्ण समाधान करना सुनिश्चित करना है।
  • भारत को ईरान के साथ अपने संबंधों को और दृढ़ करना चाहिए, और चल रही परियोजनाओं को गति मिलनी चाहिए।
  • ईरान के साथ समझौतों को साझेदारी के स्तर पर ले जाना चाहिए, जैसे फरज़द बी. ऑयल क्षेत्र का विकास।
  • भारत पश्चिम एशियाई ऊर्जा पर अपनी निर्भरता को कम करने हेतु एक व्यापक ऊर्जा नीति भी विकसित करनी चाहिए।
  • क्योंकि भारत ने डी-हाइफेनेशन की कला सीख ली है, अब समय आ गया है की ईरान के लिए सुसंगत और स्वायत्त नीति अपनाई जाए।
  • ईरान और अमेरिका के गतिरोध को सामूहिक रूप से कम करने की जरूरत है। सामूहिक सौदेबाजी ऐसा करने के लिए महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

दशकों से अमेरिका और ईरान के बीच तनाव का माहौल है। इस दुष्चक्र को तोड़ने की दूरदृष्टि वाले राजनीतिज्ञता की दोनों देशों में आवश्यकता है।

प्रीलिम्स के लिए तथ्य

  • इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स सैन्य-दल ईरानी सशस्त्र बलों की एक शाखा है, जो ईरान की नियमित सेना से स्वतंत्र है। इसे पस्दारान के नाम से भी जाना जाता है। इस संगठन का उद्देश्य ईरान के इस्लामी गणराज्य और 1979 की क्रांति के आदर्शों को संरक्षित करना है।
  • क़ुद्स फोर्स क़ुद्स बल इस्लामी रिवॉल्यूशनरी गार्ड सैन्य-दल की एक शाखा है जो मुख्य रूप से अपने विदेशी ऑपरेशन के लिए जिम्मेदार है।
  • JCPOA 2015 में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर ईरान और P5 + 1 समूह (अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, चीन, रूस और जर्मनी) के बीच संयुक्त व्यापक कार्य-योजना (JCPOA) का एक समझौता हुआ।
  • INSTEX (व्यापार विनिमय के समर्थन में साधन) अमेरिका द्वारा परमाणु समझौते से हट जाने के बाद, यह यूरोपीय संघ द्वारा स्थापित एक भुगतान विधि है जो ईरान तथा यूरोपीय संघ के बीच व्यापार स्थापित करने हेतु बनाई गयी है।

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