मार्ले-मिंटो सुधार (Morley-Minto Reforms in Hindi)
By BYJU'S Exam Prep
Updated on: September 13th, 2023

भारत परिषद अधिनियम 1909 को मार्ले-मिंटो सुधार अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है। सन 1905 में लॉर्ड मिंटो को भारत का वायसराय नियुक्त किया गया था और थोड़े ही दिनों के पश्चात जॉन मार्ले को भारत सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। इन्हीं दोनों लोगों के नाम पर भारत परिषद अधिनियम 1909 का नाम मार्ले मिंटो सुधार रखा गया था।
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मार्ले-मिंटो सुधार(Marley-Minto Reforms): प्रमुख प्रावधान
वर्ष 1909 में ब्रिटिश संसद में पारित भारत परिषद अधिनियम, को मार्ले-मिंटो सुधार (Marley-Minto Reforms)अधिनियम के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा अधिनियम था जिसने विधायी परिषदों में कुछ सुधार किए और ब्रिटिश भारत के शासन में सीमित रूप से भारतीयों की भागीदारी में वृद्धि की, अर्थात इस सुधार के बाद ब्रिटिश हुकूमत के कार्यों में भारतीय लोगों की भागीदारी में वृद्धि हुई थी। 1909 ई. में भारतीय संसद द्वारा अधिनियम पारित किया गया। जिसे मार्ले मिंटो सुधार भी कहते हैं। इसके पारित होने के निम्न कारण थे:
- 1892 ई. के अधिनियम के प्रति असंतोष।
- उग्रवादी आंदोलनों का प्रभाव।
- क्रान्तिकारी आंदोलन।
- उदारवादियों को संतुष्ट करने का प्रयास।
- मुस्लिम साम्प्रदायिकता का अर्थ।
- इग्लेण्ड में उदारवादी दल की विजय ।
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इस अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं:
1. इस अधिनियम के तहत चुनाव प्रणाली के सिद्धांत को भारत में पहली बार मान्यता मिली।
2. इस अधिनियम के तहत प्रत्यक्ष एवं सांप्रदायिक निर्वाचन की शुरुआत हुई।
3. इस अधिनियम के तहत गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में पहली बार भारतीयों को प्रतिनिधित्व मिला तथा केंद्रीय एवं विधानपरिषदों के सदस्यों को भी सीमित अधिकार दिए गए।
4. गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक भारतीय सदस्य को नियुक्त करने की व्यवस्था की गयी। पहले भारतीय सदस्य के रूप में सत्येंद्र सिन्हा को नियुक्त किया गया।
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मार्ले मिंटो सुधार(Marley-Minto Reforms): दोष
- केन्द्रीय व्यवस्थापिका सभा का त्रुटिपूर्ण गठन ।
- उतरदायी शासन का अभाव ।
- शक्तिहीन प्रांतीय विधान परिषदें में ।
- दोषपूर्ण निर्वाचन प्रणाली ।
- कुछ प्रदेशों को प्रतिनिधित्व के विकार से वंचित रखना।
मार्ले-मिंटो सुधार(Marley-Minto Reforms): परिणाम
1909 के संसदीय सुधारों से भारतीय राजनैतिक प्रश्न का कोई हल न हो सका। क्योंकि अप्रत्यक्ष चुनाव, सीमित मताधिकार तथा विधान परिषद की सीमित शक्तियों ने प्रतिनिधि सरकार को मिश्रित कर दिया था। इस पर लॉर्ड मार्ले ने कहा कि भारत स्वशासन के योग्य नहीं है। कांग्रेस द्वारा प्रतिवर्ष स्वशासन की मांग करने के पश्चात भी मार्ले ने स्पष्ट तौर पर उसे ठुकरा दिया था।1909 के सुधारों से जनता ने कुछ और ही चाहा था और उन्हें कुछ और मिला। इन सुधारों के संबंध में महात्मा गांधी ने कहा ‘मार्ले-मिंटो सुधारों ने हमारा सर्वनाश कर दिया’।
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