Unemployment: A growing Challenge in India

By Naveen Singh|Updated : July 18th, 2019

Here we will discuss the causes of unemployment and measures that can be taken to tackle the increase.

Unemployment - A Growing Challenge in India

This has been one of the most critical issues that the government has to address with utmost ingenuity. the rate of unemployment in the country is growing significantly.

यहां पर हम बेरोजगारी के कारणों और बढ़ती बेरोजगारी से निपटने हेतु किए जाने वाले उपायों पर चर्चा करेंगे।

बेरोजगारी – भारत में बढ़ती हुई एक चुनौती

यह सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक रहा है जिसे सरकार को अत्यंत सरलता के साथ संबोधित करना है। देश में बेरोजगारी की दर महत्‍वूपर्ण रूप से बढ़ रही है।

मानवता के समुद्र में, भारत को एक अलगे स्‍तर पर स्‍थापित करने के लिए विशेष रूप से युवाओं को एक बल गुणक के रूप में देखा जा रहा है अथवा यदि इसका पर्याप्‍त रूप से उपयोग नहीं किया जा रहा है तो आगामी वर्षों में राष्ट्र के लिए एक अस्तित्व संबंधी आपदा उत्‍पन्‍न हो सकती है।

सरकार ने छूटी हुई नौकरियों और बेरोजगारी की जांच करने के लिए कदम उठाए हैं लेकिन वे उपाय आधार पर वांछित परिणाम देने के लिए उतने सशक्‍त नहीं प्रतीत हुए हैं।

इस मुद्दे को आगामी गद्यांश में चर्चा की गई कार्रवाहियों के साथ बहु स्‍तरों तक पहुँचाने की आवश्‍यकता है।

बढ़ती बेरोजगारी के प्रमुख कारण

भारत में बेरोजगारी का मूल कारण यह है कि देश की आर्थिक वृद्धि दर, देश की जनसंख्‍या वृद्धि दर के साथ बढ़ने में सक्षम नहीं है।

भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था है और इसलिए अधिकांश आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है।

भारत में कृषि अभी भी काफी हद तक वर्षा पर निर्भर है, ये पुरानी,  ​पारंपरिक प्रथाओं का पालन करती है और केवल मौसमी रोजगार का सृजन करती है।

हाल ही के दिनों में, मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम अत्यधिक अनियमित हो गया है और प्राय: किसानों की चिंता का कारण बनता है।

बेरोजगारी का एक और प्रमुख कारण शुरुआत से ही भारत में औद्योगिक क्षेत्र पर कम ध्यान दिया जाना है।

1950 और 1960 के दशक के दौरान चीन और भारत ने अपनी आर्थिक यात्रा को लगभग समान स्तर से शुरू किया था।

भारत ने "हरित क्रांति" लाने पर ध्यान केंद्रित किया था जो कि समय के अनुसार उसकी आवश्‍यकता थी और चीन ने अपने विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने का फैसला किया था।

औद्योगिकीकरण के लिए आर. एंड डी. में बड़े पैमाने पर निवेश, श्रमशक्ति के प्रशिक्षण, कच्चे माल की खरीद, ऊर्जा और महंगी मशीनरी की आवश्यकता होती है जो भारत में अपर्याप्त रूप से उपलब्‍ध थी।

सभी के देखने हेतु दोनों देशों का तुलनात्मक विकास ग्राफ है।

संयुक्त परिवार प्रणाली के टूटने के साथ, छिपा हुआ रोजगार जो हमारे समाज के एक व्यापक हिस्‍से द्वारा किया जा रहा था, जो स्‍वयं को साधारणत: केवल संयुक्त परिवार की कमाई के साथ संलग्न करते थे, वे अब बेरोजगारों के रूप में उजागर हुए हैं।

हाल ही में भारत में बेरोजगारी में हुई वृद्धि

बेरोजगारी की वर्तमान अभूतपूर्व दर, जिसकी घोषणा भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था निगरानी केंद्र (सी.एम.आई.ई.) द्वारा आम चुनावों के ठीक पहले की गई थी जो कि 31 मिलियन है।

कुछ निम्नलिखित कारण हैं:

शिक्षा प्रणाली: भारत में शिक्षा प्रणाली केवल अधिकारी स्‍तर की नैकरियों के सृजन पर ध्‍यान केंद्रित करती है। हमारे कॉलेज और विश्वविद्यालय उन डिग्री धारकों का मंथन कर रहे हैं जो उद्योग के लिए तैयार नहीं हैं। आज के समय में हमारे युवाओं में कौशल ​​की आवश्‍यकता है जिससे कि वे रोजगारपरक बन सकें।

अनौपचारिक क्षेत्र: भारत में अनौपचारिक क्षेत्र अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख हिस्सा है। विमुद्रीकरण और जी.एस.टी. के लागू होने से कुटीर उद्योग, छोटे-अनौपचारिक श्रमिकों और उद्यमियों को भारी झटका लगा है। इन दो कारकों के कारण विशेषकर रियल एस्टेट और सेवा क्षेत्र में काफी लोगो की नौकरियां छूट गई हैं।

राजनीतिक पहलू: देश में ध्रुवीकरण की बढ़ती स्थिति ने असुरक्षा का माहौल विकसित कर दिया है जो घरेलू और विदेशी दोनो निवेशकों को हतोत्‍साहित करता है।

इसके अतिरिक्‍त वे क्षेत्र, जहां भारत बीफ और चमड़े जैसे उत्पादों का एक अंतरराष्ट्रीय उत्पादक था, वे भी देश में प्रचलित एक दक्षिणपंथी लहर की वजह से पीड़ित है। जिसके परिणामस्‍वरूप लाखों नौकरियों का नुकसान होगा क्‍यों कि उद्योग पूर्णतया ध्वस्त हो गया है।

इन सभी कारकों ने देश में बढ़ते रोजगार घाटे में योगदान दिया है।

भारत में बेरोजगारी से निपटने के लिए प्रस्तावित कदम

संशोधित शिक्षा प्रणाली:

नौकरियों के लिए मांग के विकसित होते हुए प्रारूपों को पूरा करने हेतु शिक्षा की वर्तमान प्रणाली में प्रमुख बदलाव करने की आवश्‍यकता है।

यह न केवल वर्तमान में पढ़ाए जा रहे पाठ्यक्रम के पुन: उन्मुखीकरण के लिए आवश्यक है बल्कि समकालीन भारत में उद्योगों द्वारा निर्धारित आवश्यक कौशलों की स्पष्ट मांग को पूरा करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में पाठ्यक्रमों की स्थापना और विविधीकरण की भी जांच करता है।

शिक्षा में सुधार की आवश्‍यकता का वितरण तंत्र:

प्रदान की जा रही शिक्षा की गुणवत्ता और ढांचागत आवश्‍यकताएं, विशेषकर सरकार द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्‍थानों के गहन परीक्षा और प्रखर उन्‍नयन की आवश्‍यकता है।

साधारणत: शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत कमजोर ढांचे और अक्षम शिक्षकों के साथ शिक्षा के प्रति कम प्रेरणा और उत्‍साह वाले और अधिक स्‍कूल खोलना अनुत्‍पादक है।

शिक्षकों का वेतन और भत्ते सबसे ऊँचे स्तर पर होने चाहिए, उन्हें अन्य सिविल सेवकों की तुलना में अधिक ऊँचा दर्जा देना चाहिए। यह ऐसा बिना कहे किया जाना चाहिए कि उनके चयन हेतु अत्‍यंत सख्‍त प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। राष्ट्र के भविष्य को आकार देने की इस महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के लिए सर्वश्रेष्ठ में से सर्वश्रेष्‍ठ का चयन किया जाना चाहिए।

तीव्र औद्योगीकरण की आवश्यकता:

विनिर्माण क्षेत्र को गति प्रदान करने से कई प्रमुख क्षेत्रों में रोजगार सृजन को बढ़ावा मिलेगा।

सरकार द्वारा "मेक इन इंडिया" अभियान के अंतर्गत "विनिर्माण केंद्रो" पर चर्चा की गई है। इसे अतिशीघ्र लागू किया जाना चाहिए।

ये विनिर्माण केंद्र ग्रामीण जनसंख्‍या के बड़े पैमाने पर काम के लिए शहरों की ओर प्रवासन की प्रमुख समस्‍या को हल कर देंगे।

युवाओं का कौशल विकास: विनिर्माण केंद्रो के निर्माण के साथ विशिष्ट नौकरियों के लिए उचित रूप से कुशल युवा प्रदान करने की आवश्यकता होगी।

शिक्षा प्रणाली को इस मांग के अनुरूप होना चाहिए और बच्‍चों को एक विशिष्ट क्षेत्र में प्रशिक्षण के लिए अलग करने हेतु कम उम्र में उनकी योग्यता की पहचान करनी चाहिए।

कौशल विकास हेतु प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना जैसी योजनाओं की बेहतर ढंग से कल्पना की गई है लेकिन उन्हें ठीक प्रकार से लागू नहीं किया गया है।

बेहतर कर्मचारियों की संख्‍या के प्रबंधन और रोजगार हेतु सशक्त ग्रामीण भारत:

हमारी रीढ़ की हड्डी रहे हमारे कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सकता है, प्रौद्योगिकी का प्रयोग करते हुए गहन कृषि, नदियों के जल को आपस में जोड़कर सिंचाई की सुविधा में सुधार करने, भूमि को अधिक कृषि योग्‍य बनाने हेतु सूक्ष्‍म-सिंचाई का प्रयोग करके, ग्रामीण भारत तक सामुदायिक परियोजनाओं जैसे कृषि-ढांचा परियोजना उदा. कोल्‍ड चैन, खाद्य प्रसंस्‍करण आदि के माध्‍यम से रोजगार के अवसरों को बढ़ाया जा सकता है।  

अप्रत्याशित मौसम के कारण कृषि संकट से बचने और मौसमी रोजगार की समस्या को हल करने के लिए भूमि अधिग्रहण और व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण को कम करने की समस्या को दूर करने के लिए सहकारी कृषि संगठन है।

किसानों को वैकल्पिक रोजगार के लिए कुशल होना चाहिए जो इनके आस-पास के क्षेत्रों में "विनिर्माण केंद्रो" में उपलब्‍ध हो सकता है।

लघु स्‍तर के और कुटीर उद्योग, रोजगार के अवसर पैदा करने के अतिरिक्क्‍त किसानों की केवल कृषि पर निर्भरता को कम करने में मदद करेंगे।

योजनाबद्ध तरीके से बनाए गए ग्राम उद्योगों को सरकार द्वारा बनाए जा रहे "विनिर्माण केंदों" में निर्मित वस्तुओं का समर्थन करना चाहिए।

सरकारी योजनाओं के अंतर्गत ढांचा विकास हेतु कमजोर अवधि के दौरान श्रम-शक्ति उपयोग:

कमजोर अवधि के दौरान उपलब्ध अधिशेष श्रम बल का उपयोग वनीकरण, भूमि को कृषि योग्‍य बनाना, कुटीर उद्योगों का विस्तार करना आदि जैसे विभिन्न सार्वजनिक कार्य कार्यक्रमों के लिए किया जा सकता है।

जिन योजनाओं के अंतर्गत उपर्युक्त कार्य किया जा रहा है वो पहले से ही मनरेगा जैसी योजनाओं के समान काम कराने की आवश्‍यकता, समाप्‍त होने पर काम की गुणवत्‍ता और निष्‍पादनकर्ताओं द्वारा निधियों को प्राप्‍त करने की गहन समीक्षा कर रही है।

स्वरोजगार के अवसर: उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए स्टार्ट-अप इंडिया और स्टैंड-अप इंडिया जैसी योजनाओं को बहुत ही खराब ढंग से कार्यान्‍वित किया गया है।

इस योजना के 2016 से उपलब्ध होने के बावजूद, केवल 1368 आवेदन प्राप्त हुए थे, जिनमें से केवल 502 आवेदनों को उद्योग नीति एवं संवर्धन विभाग (डी.आई.पी.पी.) द्वारा अनुमोदित किया गया है।

यह आवश्यक है कि सरकार बेरोजगार युवाओं के लिए अधिक अभिनव और सक्षम स्वरोजगार योजनाओं के साथ आए, जो दूसरों के लिए भी अधिक रोजगार उत्पन्न करने में मदद कर सकता है।

निष्कर्ष

सरकार द्वारा बेरोजगारी की समस्या को दूर करने के लिए यह एक सतत प्रयास रहा है लेकिन एक अनुभागीय दृष्टिकोण के कारण यह सफल नहीं हुआ है, जहां प्रत्येक सरकारी विभाग अलग काम कर रहा है और मुद्दों को संबोधित करने हेतु कुछ मामलों में एक दूसरे के साथ विरूद्ध प्रयोजन करता हैं।

बेरोजगारी से निपटने के तरीकों पर करीब से नजर डालने से पता चलेगा कि सभी प्रस्तावित कार्य एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए हैं।

वांछित क्षेत्र में हासिल की गई दक्षता सहित शिक्षा का वितरण, उद्योगो द्वारा आवश्‍यक कौशल-सेटों से संबंधित है।

अत: जब तक शिक्षा विभाग उद्योग की अपेक्षाओं के आधार पर अपना पाठ्यक्रम तैयार नहीं करता है और उसके अनुसार पूर्व छात्रों को तैयार करे जिससे उनकी शिक्षा अप्रासंगिक होगी।

समान प्रकार से, शहरी प्रवास को रोकने के लिए ग्रामीण समुदायों के निर्माण के लिए स्थानीय अवसंरचनात्मक सुविधाओं के प्रावधानों, कृषि के अतिरिक्‍त विविध रोजगार के अवसरों की आवश्यकता होगी, जो "विनिर्माण केंद्रो" की स्‍थापना से संबंधित है, जो क्षेत्रीय गांवों के कुटीर उद्योग द्वारा समर्थित हैं।

अत: सरकार के कई विभागों को हमारी आबादी के लाभांश का बेहतर उपयोग करने हेतु एक साथ काम करना होगा।

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